भारतीय गणतंत्र के 76 वर्ष और हमारी पत्रकारिता

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✍️ धनंजय मिश्र

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पत्रकारिता प्रत्येक दौर में चुनौतीपूर्ण कार्य रही है! परंतु उत्तरोत्तर बढ़ते दौरों के दौरान,यह चुनौतियां ज्यादा जटिल होती गई हैं.वस्तुत: समाज में समयानुसार परिवर्तित होती रही परिस्थितियां और परिघटनाएं भी इसके गंभीर होती चुनौतियों का कारक रही हैं! मगर यह भी सच है कि इस क्षेत्र में आकर जिसने भी सुविज्ञता से पत्रकारिता की धर्मिता को आत्मसात किया. अपेक्षाकृत उसकी चुनौतियां बहुत ही कमतर घातक रहीं. किन्तु, वर्तमान दौर में पत्रकारिता अनेक चुनौतियों से जूझ रही है.

मसलन,पुरातन दौर में पत्रकारिता ‘सम्मान’ का परिचायक थी.जबकि आज के दौर में यह पत्रकारिता ‘धनार्जन’ और आकर्षण के साथ ही शानो-शौकत की बानगी बनती जा रही है! नये दौर में पत्रकारिता की गरिमा को धूमिल होने का मुख्य कारण इसमें आई तीव्र अनैतिक धनार्जन की प्रवृति है. इस प्रवृति ने पत्रकारिता की चारित्रिक शुचिता को तार-तार कर दिया है.

पत्रकारिता की गर्त होती गरिमा की दूसरी परेशानी यह है कि आज बहुतेरे पत्रकारजनों में विविध विषयक ज्ञानार्जन की प्रवृति कम और स्व -प्रदर्शन की अत्यधिक बढ़ती जा रही है. यानी जानने की जिज्ञासा कम और सतही जनाने की प्रवृति ज्यादा होती जा रही है.यद्यपि पत्रकारिता की सर्वकालिक आवश्यकता ‘संस्कारिकता’ रही है.जिसकी विशिष्ठता से सुभाषा,सुलेखन, सुस्वभाव और सुचरित्र आदि का सुवर्ध्द्न निरंतर होता रहे !

पत्रकारिता में यह गिरावट भी अब सर्वविदित होती जा रही है कि राजनीति की भांति इसमेंं भी रणनीति और कूटनीति समाहित होती जा रही है! जिससे पत्रकार जनों के अंतस में आपसी स्नेह-सौहार्द कमतर होता जा रहा है.जो हमारी एकजुटता और सबलता के लिए अत्यधिक घातक है. इसके निर्मूलार्थ हमें आपसी द्वेषात्मक भाव का परित्याग आवश्यक है. दूजा, पत्रकारिता में स्व-प्रगति हेतु आपसी प्रतियोगिता का भाव नहीं, अपितु कुशल प्रतिस्पर्द्धा का सुभाव सदैव विकसित होना श्रेयस्कर होता है!

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