सीवान से गांधी जी का रहा था विशेष जुड़ाव

सीवान से गांधी जी का रहा था विशेष जुड़ाव

सीवान के राजेंद्र बाबू, मौलाना मजहरूल हक साहब, बृजकिशोर बाबू से रहा गांधी जी का विशेष स्नेहपूर्ण संबंध

1001467106
1001467106
previous arrow
next arrow
1001467106
1001467106
previous arrow
next arrow

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर उनके सिवान से जुड़ाव पर आधारित विशेष आलेख

✍️ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, सीवान (बिहार):

ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के क्रम में सीवान की भी विशेष भूमिका रही है। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर सिवान की विभूतियों डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरूल हक साहब, बृजकिशोर प्रसाद ने अपनी चमकती वकालत को छोड़ा तो भारत छोड़ो आंदोलन के पूर्व गांधी जी के सिवान आगमन के समय महिलाओं ने अपने परम् प्रिय आभूषणों तक को गांधी जी के सुपुर्द कर दिया ताकि राष्ट्रीय आंदोलन की गति जारी रह सके। गांधी जी सिवान के विभूतियों की मेधा शक्ति और विद्वता से भी बेहद प्रभावित रहते थे। सिवान में राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में गांधी जी का आना तो महज तीन बार ही हुआ। लेकिन राजेंद्र बाबू, मौलाना साहब और बृजकिशोर बाबू से उनका निरंतर संवाद बना रहता था।

तीन बार सीवान आए गांधी जी

गांधी जी के राष्ट्रीय आंदोलन के समय में तीन बार बिहार आने के ऐतिहासिक संकेत मिलते हैं। पहली बार चंपारण सत्याग्रह के क्रम में संभवत 1917 में गांधी जी राजेंद्र बाबू के गांव जीरादेई आए थे। फिर 1927 में महाराज गंज आना हुआ था। उसके बाद भारत छोड़ो आंदोलन के पूर्व गांधी जी मैरवा आए थे। उस समय आज के मैरवा जंक्शन के सामने के मैदान में एक जलसा को भी संबोधित किया था। उस समय सिवान की महिलाओं ने अपने जेवर तक को आजादी की लड़ाई के लिए गांधी जी के सुपुर्द कर दिया था। गांधी जी सिवान की महिलाओं के राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्र बोध से बेहद प्रभावित भी हुए थे।

बिहार विद्यापीठ की स्थापना में सीवान की विभूतियों की रही थी विशेष भूमिका

गांधी जी शिक्षा के रचनात्मक स्वरूप और राष्ट्रीय तेवर के प्रति विशेष संजीदा थे। असहयोग आंदोलन के दौर में उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना का आह्वान किया था। गांधी जी के सपनों को साकार करने के लिए बिहार विद्यापीठ की स्थापना पटना में हुई। इस विद्यापीठ की स्थापना में सिवान के राजेंद्र बाबू, मौलाना साहब, बृजकिशोर बाबू की सबसे बड़ी भूमिका रही। गांधी जी सिवान के इन मेधा शक्ति के प्रति विशेष स्नेह भी रखते थे।

राजेंद्र बाबू में अपनी छवि देखते थे गांधी जी

राजेंद्र बाबू की पहली मुलाकात गांधी जी की 1915 में हुई थी। 1916 के लखनऊ अधिवेशन में राजेंद्र बाबू गांधी जी के करीब आए। गांधी जी ने देश के तीन नेताओं पर ज्यादा भरोसा किया। जिसमें जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल और राजेंद्र बाबू शामिल थे। चंपारण सत्याग्रह के क्रम में गांधी जी राजेंद्र बाबू के गांव जीरादेई भी आए थे। चंपारण सत्याग्रह ने गांधी जी को महात्मा बना दिया। इस चंपारण सत्याग्रह के दौरान राजेंद्र बाबू ने गांधी जी को विशेष सहयोग प्रदान किया था। राजेंद्र बाबू ने असहयोग आंदोलन के दौरान अपनी वकालत छोड़ दी। बाद के सविनय अवज्ञा आंदोलन, रचनात्मक कार्यक्रम, कांग्रेस के अधिवेशनों के समय गांधी जी के विशेष सहयोगी रहे राजेंद्र बाबू। गांधी जी राजेंद्र बाबू की विनम्रता और सादगी में अपनी छवि देखा करते थे।

मौलाना साहब को उस दौर की हस्ती माना था गांधी जी ने

महात्मा गांधी के मौलाना मजहरूल हक साहब से भी बेहद मधुर रिश्ते थे। मौलाना साहब ने भी गांधी जी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर अपनी चमकती वकालत छोड़ दी थी। सदाकत आश्रम की स्थापन के लिए निजी जमीन को दान कर दिया मौलाना साहब ने। बिहार विद्यापीठ की स्थापना में अहम योगदान देकर मौलाना साहब ने गांधी जी के विचारों को मूर्त रूप देने का प्रयास किया। पटना आगमन के समय मौलाना साहब के आवभगत से गांधी जी काफी प्रभावित हुए थे।

बृजकिशोर बाबू रहे गांधी जी के ‘द जेंटल बिहारी ‘

बृजकिशोर बाबू को गांधी जी ने अपने आत्म कथा ‘माय एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ’ में द जेंटलमैन बिहारी कहते हुए एक पूरा अध्याय उनके ऊपर लिख डाला। चंपारण सत्याग्रह के लिए चंपारण आने के लिए प्रेरित करने के लिए बृजकिशोर बाबू ने तार्किक तथ्य प्रस्तुत किए थे। चंपारण सत्याग्रह के समय बृजकिशोर बाबू ने गांधी जी को विशेष सहयोग प्रदान किया था।बृजकिशोर बाबू ने भी असहयोग आंदोलन के समय अपनी जमी जमाई वकालत छोड़ दी। नमक आंदोलन के समय बृजकिशोर बाबू की रणनीति ने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था। गांधी जी बृजकिशोर बाबू का बिहार कह कर उन्हें विशेष सम्मान दिया करते थे।

इस तरह गांधी जी का राष्ट्रीय आंदोलन के लिए सीवान से विशेष जुड़ाव रहा। आजादी के अमृत महोत्सव मना रहे राष्ट्र के लिए सीवान के संदर्भ में ये बातें हर सिवानवासी के लिए बेहद गौरवपूर्ण है।

 

यह भी पढ़े

प्राध्यापन अनुभव से वैचारिक आयाम को मिला विस्तार: प्रोफेसर अशोक प्रियंवद

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा भगदड़ का मामला,जनहित याचिका हुई दाखिल

कार्यकर्ताओं ने तेजस्वी प्रसाद यादव का किया भव्य स्वागत।

तीनों शंकराकार्यों ने एक साथ लगाई त्रिवेणी संगम में डुबकी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!