महाकुंभ का संदेश,एकता से ही अखंड रहेगा देश

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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कुम्भ पर्व के समय वातावरण में शुभ तरंगे सर्वत्र विद्यमान रहती हैं। इससे मनुष्य के मन की शुद्धि होती है तथा उसमें उत्पन्न विचारों द्वारा कृत्य भी फलदायी होता है, अर्थात ‘कृत्य एवं कर्म’ दोनों की शुद्धि होती है। पवित्र स्थान या नदी तो निश्चय ही मोक्षदायिनी तीर्थ होेते हैं। तीर्थों में भाव की स्थिरता और मन की पवित्रता पर अधिक बल दिया गया है और यह जिसके पास नहीं है, वह तीर्थ में निवास करते हुए भी पुण्य की प्राप्ति का अधिकारी नहीं माना गया है। सप्त पुरियां, सप्त पर्वतों, सप्त नदियों आदि की कल्पना सम्पूर्ण देश की मौलिकता, एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण रखने में सहायक सिद्ध हुई हैं।

भारतीय परम्परा है, ‘अनेकता में एकता’ और इसी एकता को पोषित करने में हिन्दु धर्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। धर्म वह है जो धारण किया जाए, धर्म श्रद्धा पर आधारित रहता है। हिन्दु धर्म में न केवल श्रद्धा की दृष्टि से अपितु सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से मेलों और त्योहारों का विशेष योगदान रहा है।

महाकुम्भ नाम से प्रसिद्ध ऐसा ही एक धार्मिक उत्सव विराट मेले के रूप में तीर्थराज प्रयागराज में इन दिनों चल रहा है, जो बस समापन की ओर है। कुम्भ पर्व में स्नान करने से अनंत पुण्यलाभ होता है, इसीलिए करोडों श्रद्धालु एवं साधु-संत इस स्थान पर एकत्रित देखे जा सकते हैं। मान्यताओं के अनुसार कुम्भ के समय अनेक देवता, पुण्यात्मा, ऋषि-मुनि, दिव्य शक्तियां जागृत रहती हैं, इससे उनके आशीर्वाद मिलते हैं। गंगाजी का कार्य ही है ‘पितरों को मुक्ति देना’, इस कारण कुम्भ पर्व में गंगा स्नान सहित पितृ तर्पण करने की धर्माज्ञा है। वायुपुराण में कुम्भ पर्व श्राद्धकर्म के लिए अतिउपयुक्त बताया गया है।

कुम्भ पर्व के समय वातावरण में शुभ तरंगे सर्वत्र विद्यमान रहती हैं। इससे मनुष्य के मन की शुद्धि होती है तथा उसमें उत्पन्न विचारों द्वारा कृत्य भी फलदायी होता है, अर्थात ‘कृत्य एवं कर्म’ दोनों की शुद्धि होती है। पवित्र स्थान या नदी तो निश्चय ही मोक्षदायिनी तीर्थ होेते हैं। तीर्थों में भाव की स्थिरता और मन की पवित्रता पर अधिक बल दिया गया है और यह जिसके पास नहीं है, वह तीर्थ में निवास करते हुए भी पुण्य की प्राप्ति का अधिकारी नहीं माना गया है।

सप्त पुरियां, सप्त पर्वतों, सप्त नदियों आदि की कल्पना सम्पूर्ण देश की मौलिकता, एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण रखने में सहायक सिद्ध हुई हैं। भारतीय परम्परा है, ‘अनेकता में एकता’ और इसी एकता को पोषित करने में हिन्दु धर्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। धर्म वह है जो धारण किया जाए, धर्म श्रद्धा पर आधारित रहता है।

हिन्दु धर्म में न केवल श्रद्धा की दृष्टि से अपितु सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से मेलों और त्योहारों का विशेष योगदान रहा है। महाकुम्भ नाम से प्रसिद्ध ऐसा ही एक धार्मिक उत्सव विराट मेले के रूप में तीर्थराज प्रयागराज में इन दिनों चल रहा है, जो बस समापन की ओर है। कुम्भ पर्व में स्नान करने से अनंत पुण्यलाभ होता है, इसीलिए करोडों श्रद्धालु एवं साधु-संत इस स्थान पर एकत्रित देखे जा सकते हैं।

मान्यताओं के अनुसार कुम्भ के समय अनेक देवता, पुण्यात्मा, ऋषि-मुनि, दिव्य शक्तियां जागृत रहती हैं, इससे उनके आशीर्वाद मिलते हैं। गंगाजी का कार्य ही है ‘पितरों को मुक्ति देना’, इस कारण कुम्भ पर्व में गंगा स्नान सहित पितृ तर्पण करने की धर्माज्ञा है।

वायुपुराण में कुम्भ पर्व श्राद्धकर्म के लिए अतिउपयुक्त बताया गया है। कुम्भ मेले में भारत के विविध पीठों के शंकराचार्य, अखाडों के तपोनिष्ठ साधु, महामंडलेश्वर, शैव तथा वैष्णव संप्रदाय के अनेक विद्वान, संन्यासी, संत-महात्मा एकत्रित आते हैं। इस कारण कुम्भ मेले का स्वरूप अखिल भारतवर्ष के संतों के सम्मेलन के समान भव्य-दिव्य होता है। किसी ने बखूबी कहा है, इतनी करो वर्षा प्र्रेम की, यह सृष्टि और निखर जाए, कि सृष्टि का रचियता खुद सृष्टि में आने को ललचाए। दिव्य महाकुम्भ भव्य महाकुम्भ ने पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

 

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