परिसीमन से बदल जाएगा लोकसभा सीटों का गणित, कैसे?
दक्षिण भारतीय राज्य क्यों कर रहे हैं विरोध?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
क्या है परिसीमन?
अब तक कितनी बार हुआ है परिसीमन?
अब तक भारत में चार बार- 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन हुआ है। साल 1976 तक प्रत्येक जनगणना के बाद लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों की विधानसभाओं की सीटें नए सिरे से तय की जातीं थीं। हालांकि, 1976 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने सीटों का आवंटन इसलिए फ्रीज कर दिया कि परिवार नियोजन की नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू करने वाले राज्यों को प्रतिनिधित्व के मोर्चे पर नुकसान न हो।
क्या परिसीमन से प्रतिनिधित्व पर पड़ेगा असर
परिसीमन आबादी के आधार पर संसदीय सीटों की संख्या तय करेगा। उत्तर भारत के राज्यों को अधिक सीटें मिलेंगी और दक्षिण भारत के राज्यों की संसदीय सीटों की संख्या में मामूली बदलाव होगा। माना जा रहा है कि तमिलनाडु इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। 2024 लोकसभा चुनाव के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि सरकार दो प्रमुख काम करेगी। राष्ट्रीय जनगणना और परिसीमन।
परिसीमन के बारे में क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 में परिसीमन प्रक्रिया को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश तय किए गए हैं।
- अनुच्छेद 82: इसमें कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना के बाद संसद लोकसभा क्षेत्रों की सीमाएं और संख्या नए सिरे से तय करने के लिए परिसीमन अधिनियम पारित करे।
- अनुच्छेद 170: यह अनुच्छेद विधानसभा सीटों के परिसीमन के बारे में है। इसके तहत आबादी के आंकड़ों के आधार पर हर राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या तय की जाती है।
कितना बदल जाएगा सीटों का गणित?
साल 2026 तक उम्मीद है कि भारत की आबादी करीब 150 करोड़ हो जाएगी। दक्षिण भारत में कर्नाटक की लोकसभा सीटें 28 से बढ़कर 36 हो सकती हैं। तेलंगाना की सीटें 17 से बढ़कर 20 और आंध्र प्रदेश की सीटें 25 से बढ़ कर 28 हो सकती हैं। तमिलनाडु की लोकसभा सीटें 39 से बढ़ कर 41 हो सकती हैं। केरल में आबादी बढ़ने की दर सबसे कम है।
केरल की सीटें 20 से घटकर 19 हो सकती हैं। वहीं, उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश की सीटें 80 से बढ़कर 128 और बिहार की सीटें 40 से बढ़कर 70 हो सकती हैं। दक्षिण भारत के राज्य इसीलिए परिसीमन का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि परिसीमन से उनकी सीटें कम हो सकती हैं और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी आवाज कमजोर होगी।
मिली लगभग समान सीटें
1971 की जनगणना के हिसाब से बिहार और तमिलनाडु को उनकी आबादी के अनुपात में करीब करीब बराबर लोकसभा सीटें मिलीं। बिहार को 40 और तमिलनाडु को 39 सीटें मिलीं। इस तरह एक व्यक्ति, एक वोट का लोकतांत्रिक सिद्धांत बना रहा। दोनों राज्यों में हर एक लोकसभा क्षेत्र में आबादी करीब 10 लाख थी।
पांच दशक बाद कितनी बढ़ी आबादी?
करीब पांच दशक के दौरान बिहार की जनसंख्या तमिलनाडु की तुलना में तेजी से बढ़ी है लेकिन लोकसभा क्षेत्र की संख्या में बदलाव नहीं हुआ है। इसका नतीजा यह है कि बिहार में एक लोकसभा क्षेत्र में 32 लाख लोग हैं वहीं तमिलनाडु में एक लोकसभा क्षेत्र में 20 लाख आबादी है। साल 1971 के बाद भारत की आबादी 150 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है। लेकिन आबादी की ग्रोथ रेट पूरे देश में एक समान नहीं रही है।