सिंचाई और फसल के बीच क्या संबंध है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में कृषि में लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि सिंचाई के विस्तार से स्वतः जल-गहन फसलों (जैसे- धान, गन्ना) की ओर रुझान बढ़ता है, लेकिन वित्त वर्ष 2011-12 से 2022-23 के आँकड़ों से पता चलता है कि सिंचाई और फसल संबंधी निर्णय एक साथ लिये जाते हैं, जो वर्षा तथा बाज़ार की स्थितियों जैसे तात्कालिक कारकों से प्रेरित होते हैं।
- सिंचाई निवेश को अधिक प्रभावी और सतत् बनाने के लिये इस गतिशीलता को समझना महत्त्वपूर्ण है।
सिंचाई और फसल के बीच क्या संबंध है?
- सिंचाई और फसल पद्धति: विश्वसनीय सिंचाई किसानों को पारंपरिक निर्वाह फसलों (जैसे- कदन्न (मिलेट्स)) से उच्च मूल्य वाली फसलों (जैसे- फल, सब्ज़ियाँ और नकदी फसलें जैसे गन्ना और कपास ) की ओर स्थानांतरित करने में सक्षम बनाती है।
- सिंचाई मानसून पर निर्भरता कम कर डबल या ट्रिपल क्रॉपिंग (एक वर्ष में दो/तीन फसलें) को संभव बनाती है, जिससे भूमि उपयोग दक्षता बढ़ती है।
- बेहतर सिंचाई अवसंरचना वाले क्षेत्र (जैसे- पंजाब, हरियाणा) नहरों और ट्यूबवेलों में हरित क्रांति निवेश द्वारा समर्थित, समतल भू-भाग तथा उपजाऊ मिट्टी से लाभान्वित होते हैं।
- ये क्षेत्र मध्य और पूर्वी भारत के बड़े पैमाने पर वर्षा आधारित क्षेत्रों की तुलना में अधिक गहन तथा व्यावसायिक फसल पैटर्न को प्रदर्शित करते हैं।
- उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYV) को सुनिश्चित जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है। सिंचाई ऐसी किस्मों को अपनाने में सहायक है, खासकर हरित क्रांति वाले क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में।
- सिंचाई का समय: सिंचाई तब सबसे प्रभावी होती है जब यह बुवाई के मौसम के साथ संरेखित होती है। जब बुनियादी ढाँचा एक या दो वर्ष की देरी से उपलब्ध होता है, तो इसका प्रभाव कमज़ोर या नकारात्मक हो जाता है।
- किसान क्या और कब बोना है, यह तय करते समय वर्तमान वर्षा, कीमतों, बीज तथा उर्वरक की उपलब्धता एवं नीतिगत संकेतों पर विचार करते हैं। ऐसे परिदृश्यों में देरी से सिंचाई करने से उन्हें कोई मदद नहीं मिलती।
- सिंचाई अवसंरचना से परे फसल विकल्प: यद्यपि सिंचाई महत्त्वपूर्ण है, लेकिन किसानों का फसल विकल्प अक्सर केवल सिंचाई अवसंरचना पर ही नहीं, बल्कि जल उपलब्धता, मौसम, इनपुट पहुँच और बाज़ार मूल्य जैसे वास्तविक समय कारकों पर निर्भर करता है।
भारत में सिंचाई और फसल उत्पादन के रुझान क्या हैं?
- सकल सिंचित क्षेत्र (GIA): इसे वर्ष 2011-12 में 91.8 मिलियन हेक्टेयर से बढ़ाकर वर्ष 2022-23 में 122.3 मिलियन हेक्टेयर किया गया।
- GIA कृषि वर्ष में विभिन्न मौसमों में सभी फसलों के तहत सिंचित क्षेत्रों का कुल योग है, GIA के तहत, एक ही वर्ष में दो/तीन बार सिंचित क्षेत्र को दो/तीन बार गिना जाता है।
- सकल बोया गया क्षेत्र (GSA): इसी अवधि के दौरान यह 195.8 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 219.4 मिलियन हेक्टेयर हो गया।
- सिंचित क्षेत्र का हिस्सा 46.9% से बढ़कर 55.8% हो गया।
- GSA एक कृषि वर्ष में विभिन्न मौसमों में सभी फसलों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों का कुल योग है, GSA के तहत, एक ही वर्ष में दो/तीन बार बोए गए क्षेत्र को दो/तीन गुना के रूप में गिना जाता है।
- फसल उपज: 841 किग्रा./एकड़ से बढ़कर 1,009 किग्रा./एकड़ हुई, औसत वार्षिक वृद्धि दर 1.67% रही।
सिंचाई और फसल को समन्वित करने की क्या आवश्यकता है?
- कुशल जल उपयोग: सिंचाई को वास्तविक फसल चक्रों के साथ संरेखित करने से जल की हानि को कम करने में मदद मिलती है और अति-सिंचाई को रोका जा सकता है।
- पंजाब में किसान कपास और मक्का के लिये मृदा नमी सेंसर के साथ ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं, जिससे जल का उपयोग 30% तक कम हो जाता है तथा प्रमुख फसल चरणों को लक्षित करके पैदावार बढ़ जाती है।
- उच्च उत्पादकता: समय पर सिंचाई से फसल की इष्टतम वृद्धि को बढ़ावा मिलता है, विशेष रूप से उच्च उपज देने वाली और जल के प्रति संवेदनशील किस्मों के लिये।
- जलवायु जोखिमों के प्रति अनुकूलन: अनियमित मानसून और बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं के साथ, समन्वित योजना यह सुनिश्चित करती है कि सिंचाई सूखे के दौरान फसल की विफलता को रोकती है।
- लागत प्रभावी अवसंरचना: नहरों, सूक्ष्म सिंचाई या भूजल प्रणालियों में निवेश से बेहतर लाभ मिलता है, जब वे किसानों की वास्तविक समय की फसल संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- पर्यावरणीय स्थिरता: गलत समय पर सिंचाई के कारण होने वाले जलभराव, लवणीकरण और भूजल की कमी के जोखिम को कम करता है।
नोट: सिंचाई राज्य का विषय है और सिंचाई परियोजनाओं की योजना, क्रियान्वयन, वित्तपोषण तथा क्रियान्वयन एवं पूर्णता की प्राथमिकता संबंधित राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में है।
- तथापि, केंद्र सरकार कार्यक्रम के दिशा-निर्देशों के अनुसार चयनित परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करने के लिये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के अंतर्गत राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- PMKSY विभिन्न योजनाओं का एकीकरण है, जैसे- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), PMKSY – हर खेत को पानी (HKKP), PMKSY – प्रति बूँद अधिक फसल (PDMC) (कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित) और PMKSY – वाटरशेड विकास (WD) (भूमि संसाधन विभाग द्वारा कार्यान्वित)।
भारत की सिंचाई योजना को अवसंरचना-केंद्रित दृष्टिकोण से आगे बढ़ते हुए जलवायु-स्मार्ट, किसानोन्मुखी और पारिस्थितिक रूप से सतत् प्रणालियों की ओर विकसित होना चाहिये। इस परिवर्तन के लिये नीतिगत समन्वय, व्यवहार में बदलाव और प्रौद्योगिकी का एकीकरण आवश्यक है, जिसे मज़बूत सामुदायिक भागीदारी तथा संस्थागत सुधारों का समर्थन मिलना चाहिये। केवल तभी सिंचाई वास्तव में सतत् फसल प्रणाली को सक्षम बना सकेगी और भविष्य के लिये जल, खाद्य तथा आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएगी।
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