क्या जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभाओं का परिसीमन हो सकता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक मार्च 2027 को जनगणना पूरी होने के बाद लोकसभा और विधानसभाओं का परिसीमन भी हो सकता है। आगामी परिसीमन में न सिर्फ लोकसभा और विधानसभाओं की सीटें बढ़ेंगी, बल्कि महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों के आरक्षण को भी लागू किया जाएगा।जानकारों का मानना है कि जनगणना के डिजिटल आंकडों और डिजिटल मैपिंग की उपलब्धता के कारण परिसीमन की प्रक्रिया डेढ़ साल के भीतर पूरी हो सकती है।

बढ़ाई जा सकती हैं लोकसभा की सीटें

दरअसल, 2002 में 84वें संविधान संशोधन के द्वारा 2026 तक लोकसभा और विधानसभाओं के सीटें बढ़ाने पर रोक लगा दी गई थी। इसमें उसके बाद होने पहली जनगणना के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन करने का प्रविधान किया गया था, जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं की सीटें बढ़ाई जा सकती हैं।

जनगणना के बाद परिसीमन का रास्ता भी हो जाएगा साफ

  • अब चूंकि जनगणना फरवरी 2027 में होने जा रही है, इसीलिए इसके आंकड़ों के आधार पर परिसीमन का रास्ता साफ हो जाएगा। लोकसभा और विधानसभाओं की सीटें कितनी बढ़ेगी, इसका फैसला तो परिसीमन आयोग के गठन के समय ही तय होगा, लेकिन माना जा रहा है कि लोकसभा की सीटें 800 से अधिक हो सकती हैं, जो अभी 543 हैं।दरअसल पिछला परिसीमन संप्रग सरकार के दौरान 2008 में हुआ था।
  • इसे 2002 में संसद से पारित परिसीमन कानून के अनुसार किया गया था, जिसके तहत 2001 की जनगणना के आधार पर सिर्फ राज्यों के भीतर ही मौजूदा लोकसभा और विधानसभा के सीटों के क्षेत्र में बदलाव किया गया। यानी सिर्फ राज्यों के भीतर मौजूदा सीटों को भी समान जनसंख्या के आधार पर विभाजित किया गया था।
  • इसके पहले 1951 से लेकर 1971 तक जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन होता रहा और लोकसभा और विधानसभाओं की सीटें बढ़ती रही थी। लेकिन 1976 में 2001 तक परिसीमन पर रोक लगा दिया गया था।

डिजिटली होगी अगली जनगणना

जानकारों का मानना है कि जनगणना पूरी तरह से डिजिटल होने के कारण क्षेत्रवार आबादी के आंकड़े एक से डेढ़ के महीने के भीतर जारी हो सकते हैं, पहले जिसे जारी करने में दो साल तक समय लग जाता था। जाहिर है परिसीमन आयोग उसके बाद ही काम करना शुरू करता था।
यही कारण है 2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर 2008 में सीटों का परिसीमन किया जा सकता था। लेकिन इस बार जनगणना के आंकड़े जल्दी आने के साथ ही देश के कोने-कोने की डिजिटल मैपिंग भी उपलब्ध होगी। ऐसे में परिसीमन आयोग डेढ़ साल के भीतर अपनी सिफारिश दे सकता है। एक बार सरकार द्वारा सिफारिशों को स्वीकार करने के बाद नए परिसीमन के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव का रास्ता साफ हो जाएगा।

दक्षिण के राज्यों का रखा जाएगा ख्याल

जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावी तरीके नियंत्रण के कारण लोकसभा में हिस्सेदारी कम होने की दक्षिण राज्यों की आशंका का भी नए परिसीमन में ख्याल रखा जाएगा। गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह संसद के भीतर और संसद के बाहर भी दक्षिण के राज्यों की लोकसभा की सीटें अधिक जनसंख्या वृद्धि वाले उत्तर भारत के राज्यों के समानुपात में बढ़ाने का भरोसा दिया है।
इसके तहत दक्षिण भारत के राज्यों में लोकसभा की सीटें उत्तर भारत के राज्यों के अनुपात में कम जनसंख्या पर ही निर्धारित की जाएंगी। संविधान इसकी अनुमति भी देता है। मौजूदा समय में भी पूर्वोत्तर के राज्यों समेत अंडमान निकोबार जैसे कई केंद्र शासित प्रदेशों में अपेक्षाकृत कम जनसंख्या पर लोकसभा की सीटें हैं।

केंद्र सरकार 16 जून को अगली जनगणना को लेकर अधिसूचना जारी कर सकती है। वैसे जमीन पर ‘जनगणना-2027’ की प्रक्रिया 2026 में शुरू होगी और इस तरह से इसमें छह साल की देरी होगी, जिसके लिए मुख्य तौर पर कोविड महामारी को जिम्मेदार माना जा सकता है। क्योंकि, जनगणना का काम तब जो लटका, वह लटकता ही चला गया।

इस बार की जनगणना के भरोसे राजनीतिक तौर पर कम से कम दो अहम चीजें लटकी हुई हैं। एक तो कानून के मुताबिक 2026 के बाद होने वाली जनगणना को ही आधार मानकर निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन होना है। क्योंकि, देश में आबादी के हिसाब से जनप्रतिनिधियों की संख्या काफी कम है और निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या के आंकड़ों में भी बड़ी असमानताएं उभर रही हैं। दूसरी तरफ संसद ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण की व्यवस्था की है, यह भी तभी संभव है जब निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन हो। लेकिन, मौजूदा परिस्थितियों में कहना मुश्किल है कि यह सब 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए संभव हो सकेगा।

जनगणना के आंकड़े पहले के मुकाबले जल्द भी आ जाएं और परिसीमन आयोग 2029 के चुनाव से पहले अपना काम शुरू भी कर देता है, तो भी इसे परिसीमन के काम में लंबा वक्त लग सकता है। जैसे 2001 की जनगणना के बाद 2002 में परिसीमन आयोग बना था। उसने उसी जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाया और इसके गठन से लेकर काम पूरा करने में मोटे तौर पर साढ़े तीन साल लग गए और 2007 में जाकर काम पूरा हुआ, जो कि 2008 से प्रभावी हुआ। मतलब, 2009 के लोकसभा चुनावों इसकी ओर से किया गया बदलाव अमल में आ पाया।

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