बिहार की नई पीढ़ी को एआई कौशल से लैस करेगा मगध विश्वविद्यालय : प्रो शाही

प्रो0 डा0 शशि प्रताप शाही

बिहार की नई पीढ़ी को एआई कौशल से लैस करेगा मगध विश्वविद्यालय : प्रो शाही

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बिहार की उच्च शिक्षा में क्रांतिकारी पहल

आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस में डिप्लोमा से पीजी तक शिक्षा

उद्योग, व्यापार और रोजगार से भी जोड़ने के लिए मगध विश्वविद्यालय की विशिष्ट पहल

श्रीनारद मीडिया, पटना (बिहार):

प्रो0 डा0 शशि प्रताप शाही

बिहार के उच्च शिक्षा जगत में एक क्रांतिकारी पहल करते हुए मगध विश्वविद्यालय अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के क्षेत्र में राज्य को नई दिशा देने को तैयार है। आगामी सत्र से विश्वविद्यालय में डिप्लोमा से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट स्तर तक की पढ़ाई शुरू होने जा रही है। इस पहल से मगध विश्वविद्यालय बिहार का ऐसा पहला संस्थान बन जाएगा जो एआई में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा देगा।

 

इस महत्वाकांक्षी योजना के संबंध में मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. शशि प्रताप शाही ने आज बताया कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश की सांसद निधि से विश्वविद्यालय को 2० करोड़ रुपए की राशि प्राप्त हुई थी। इस राशि का उपयोग कर विश्वविद्यालय ने अत्याधुनिक तकनीक और विशेषज्ञ शिक्षकों की व्यवस्था करते हुए एआई के विभिन्न पाठ्यक्रमों की नींव रखी है।

 

डॉ. शाही ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस केवल तकनीकी विषय नहीं है, यह भविष्य की नई भाषा है। जो इसे सीखेगा, वही आने वाले समय में नेतृत्व करेगा। हमारी नई पीढ़ी को एआई की समझ और कौशल के साथ तैयार करना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

 

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय परिसर में एआई शिक्षा के लिए 5०० से 6०० छात्रों की क्षमता को ध्यान में रखते हुए विशेष कक्षाएं निर्धारित की गई हैं। प्रत्येक कोर्स के लिए अलग-अलग शुल्क संरचना (फीस स्ट्रक्चर) तय की गई है, जिससे छात्रों को अपनी योग्यता और रुचि के अनुसार पाठ्यक्रम चुनने की सुविधा मिलेगी। यह पहल न केवल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2०2० के अनुरूप है, बल्कि डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और विकसित भारत 2०47 जैसे अभियानों को भी मजबूती देगी।

 

डॉ. शाही ने इसे मगध विश्वविद्यालय की सबसे महत्वाकांक्षी योजना बताते हुए कहा कि इस पहल से बिहार के छात्रों को देश की तकनीकी क्रांति में भागीदार बनने का अवसर मिलेगा और यहां से निकले युवा वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाएंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की यह पहल मगध विश्वविद्यालय को सिर्फ बिहार नहीं बल्कि पूरे भारत में उच्च तकनीकी शिक्षा के एक नए केंद्र के रूप में स्थापित करेगा।

 

डा. शाही ने कहा कि बिहार के विकास और रोजगार सुलभ कराने में मगध विश्वविद्यालय एक क्रांतिकारी भूमिका निभाने वाला है। यहां भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय तथा मगध विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयास के रूप में तकनीकी स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना की जा रही है जहां मध्यम एवं लघु उत्पादों की मैन्युफैक्चरिग और मार्केटिग को मगध विश्वविद्यालय ग्लोबलाइज करेगा।

 

डॉ. शाही ने बताया कि इसके लिए 27 जून को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष भारत सरकार और मगध विश्वविद्यालय के मध्य मेमो ऑफ अंडरस्टैंडिग ज्ञापन हस्ताक्षरित होगा। उन्होंने कहा कि बिहार में मध्यम एवं लघु उद्योगों के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देने और बिहार की अर्थव्यवस्था को तीव्र गति देने की दिशा में मगध विश्वविद्यालय का यह प्रयास क्रांतिकारी कदम साबित होगा।

 

उन्होंने बताया कि इसके लिए मगध विश्वविद्यालय में 3० हज़ार स्क्वायर फीट में विकसित उर्मिला भवन में स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना की जा रही है। इसका उद्देश्य बिहारी उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराना है। उन्होंने बताया कि जैसे बिहारी उत्पादन अनरसा, तिलकूट या सिलाव का खाजा जैसे खाद्य पदार्थ हो अथवा कोई अन्य लघु एवं मध्यम उद्योग से उत्पन्न उत्पाद, इन्हें संरक्षित करते हुए विश्व स्तर पर पहुंचाने की कोशिश मगध विश्वविद्यालय करेगा।

 

उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि अगर हम चीन को पीछे करना चाहते हैं तो हमें मध्यम और लघु उद्योगों को सहारा देना पड़ेगा और भारत में निर्मित उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर भारत में देवी-देवताओं की मूर्तियां भी चीन से बनकर आ रही है तो यह बेहद दुर्भाग्य की बात है।

 

उन्होंने कहा कि मगध विश्वविद्यालय मेक इन इंडिया योजना के साथ-साथ नई शिक्षा नीति के तहत स्थानीय विधाओं को आगे ले जा रहा है और लोगों को रोजगार के साधन मुहैया करा रहा है। उन्होंने कहा कि बिहार के पारंपरिक खाद्य और हस्तशिल्प उत्पाद जैसे सिलाव का खाजा, अनरसा, गया के तिलकूट, टिकुली कला, मूर्तिकला आदि में असीम संभावनाएं हैं लेकिन इन्हें एक सशक्त मार्केटिग मंच और तकनीकी सहयोग की आवश्यकता है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों को संरक्षित कर इन्हें वैश्विक बाज़ार तक पहुंचाया जाए।

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