चपरासी पद के लिए क्‍यों अप्‍लाई कर रहे PhD धारक?

चपरासी पद के लिए क्‍यों अप्‍लाई कर रहे PhD धारक?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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 देश के सामने बड़े पैमाने पर रोजगार के मौके और नौकरियां पैदा करने की चुनौती है। मेक इन इंडिया के तहत देश में मैन्युफैक्चरिंग का एक मजबूत आधार खड़ा करने की दिशा में प्रयास हो रहा है।

इस दिशा में एक बड़ी बाधा देश में कौशल की कमी भी है। इसका एक उदाहरण एपल के लिए  आईफोन बनाने वाली ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन है। फॉक्सकॉन ने चेन्नई में प्लांट लगाया है, लेकिन इसके लिए जरूरी उच्च कौशल वाले पेशेवरों की भारत में कमी है। कंपनी को चीन और ताइवान से पेशेवरों को बुलाना पड़ रहा है।

इंस्टीट्यूट फॉर कंपीटीटिवनेस (Institute for Competitiveness) द्वारा जारी स्किल्स फॉर द फ्यूचर रिपोर्ट बताती है कि या तो पीएचडी डिग्री धारक चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हैं या युवाओं के पास इंडस्ट्री की जरूरतों के हिसाब से कौशल की कमी है। ऐसे में सवाल उठता है कि देश में रोजगार का संकट है या जरूरी कौशल से लैस युवाओं की कमी है। इसी की पड़ताल आज का अहम मुद्दा है…

उच्च शिक्षा की बदहाली

साल 2024 में उत्तर प्रदेश में पुलिस विभाग में चपरासी की 62 रिक्तियों के लिए कुल 93,000 से अधिक अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। इनमें 3,700 पीएचडी धारक, 5,000 स्नातक और 28,000 परास्नातक थे। इस पद के लिए शैक्षिक योग्यता सिर्फ पांचवीं पास मांगी गई थी।

ग्रुप डी पदों के लिए 55 लाख आवेदन

उत्तर प्रदेश में मई 2023 में आयोजित कर्मचारी चयन आयोग, मल्टी टास्किंग स्टाफ परीक्षा में चपरासी, चौकीदार और माली आदि ग्रुप डी पदों के लिए 55 लाख से अधिक आवेदन आए थे। इन नौकरियों के लिए आवेदन करने वाले कई आवेदकों के पास बी-टेक, एम-टेक, एमबीए और एमएससी की डिग्री थी।

कौशल की कमी से प्रभावित होने वाले सेक्टर

  • हेल्थ केयर: हेल्थकेयर सेक्टर पेशेवरों की भारी कमी से जूझ रहा है।  भारत के कई हिस्से, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्र डाक्टरों की कमी का सामना कर रहे हैं। नर्सों, पैरामेडिक्स और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की बात करें तो यह कमी और भी अधिक चौंकाने वाली है। इससे लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग: भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन में एक प्रमुख देश के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। माइक्रोन, फॉक्सकॉन और टावर सेमीकंडक्टर जैसे वैश्विक समूह देश में महत्वपूर्ण निवेश करने की योजना बना रहे हैं। हालांकि, इस उद्योग को इन सेमीकंडक्टर निर्माण संयंत्रों को संचालित करने के लिए आवश्यक कुशल श्रमिकों की कमी के संदर्भ में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, खासकर शुरुआती चरण में।
  • ग्रीन इकोनॉमी: पूरी दुनिया अब जलवायु परिवर्तन के खतरे पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे तौर तरीके अपनाने का प्रयास कर रही है, जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहे और सतत विकास को बढ़ावा मिले। भारत में भी कंपनियां और संगठन इस दिशा में काम कर रहे हैं। कंपनियों को सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग, कार्बन अकाउंटिंग,नवीकरणीय ऊर्जा नीति और सामाजिक प्रभाव के विश्लेषण के लिए कुशल पेशेवरों की तलाश है। इन क्षेत्रों में डोमेन विशेषज्ञता और व्यावहारिक अनुभव रखने वाले लोगों की भारी कमी है।
  • कृषि: भारत का कृषि क्षेत्र एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। आधुनिक खेती के लिए ड्रोन, एरियल इमेजिंग और रोबोटिक्स जैसी तकनीकों को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, इन क्षेत्रों में कुशल श्रमिकों की भारी कमी है। नैसकॉम के अनुसार, भारतीय ड्रोन बाजार 2026 तक 80.5 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा। हालांकि, केवल 5 प्रतिशत श्रमिकों के पास आवश्यक कौशल है। यह ड्रोन संचालन, आधुनिक कृषि और रोबोटिक्स रखरखाव जैसे क्षेत्रों में कौशल विकास की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। इससे किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

क्‍या बहुआयामी कौशल की कमी है?

भारत में कौशल की बहुत ज्‍यादा कमी बहुआयामी है। हर वर्ष लाखों युवा नौकरी के बाजार में प्रवेश करते हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश के पास रोजगार हासिल करने के लिए इंडस्ट्री से जुड़ा कौशल नहीं है।

आईटी, मैन्युफैक्चरिंग, स्वास्थ्य सेवा और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में कंपनियों को योग्य प्रतिभा खोजने में मुश्किल हो रही है। सॉफ्ट स्किल, व्यावहारिक प्रशिक्षण और डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण लगभग 50 प्रतिशत स्नातक नॉलेज इकोनॉमी में रोजगार योग्य नहीं हैं।

भारत में कैसे खत्म होगा रोजगार का संकट?

वर्ष 2047 तक विकसित होने की महत्वाकांक्षा के साथ विश्व के सबसे युवा देशों में शुमार भारत की आधी आबादी 28.7 वर्ष से कम उम्र की है। भारत आज जिस सामाजिक-आर्थिक संक्रमण काल से गुजर रहा है, उसमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि करोड़ों युवाओं की आकांक्षाएं रोजगार से क्यों नहीं जुड़ पा रही हैं?

चौथी औद्योगिक क्रांति के द्वार पर खड़े भारत के लिए यह मुद्दा केवल आंकड़ों, योजनाओं या राजनीतिक वादों तक सीमित नहीं है बल्कि देश की उत्पादकता, सामाजिक प्रगति और भविष्य की वैश्विक प्रतिस्पर्धा की बुनियाद से जुड़ा मसला है। इसलिए इस पर अलग तरीके से न सिर्फ सोचना होगा, बल्कि तेजी से एक्‍शन भी लेना होगा।

भारत में सरकारी नौकरी के लिए की जाने वाली तैयारी किसी कौशल विशेष पर केंद्रित न होकर सूचनाओं की जानकारी पर आधारित होता है। इसलिए तैयारी में फंसे विद्यार्थी बाजार की मांग के लिए अनुपयुक्त रह जाते हैं। सरकार यदि प्रतियोगी परीक्षाओं में कौशल आधारित विषयों की डाले तो बाजार आधारित कौशल विकास सुनिश्चित होगा। -शिवेश प्रताप, लोक नीति विश्लेषक एवं तकनीकी प्रबंधन सलाहकार

समाज को कौशल आधारित शिक्षा की ओर उन्मुख करने की है ताकि छात्रों को सही प्रकार की नौकरियों के लिए कुशल बनाया जाए। अगर सिर्फ सरकारी नौकरी को ही रोजगार मानना है तो ही संकट है वरना निजी क्षेत्र में अवसरों की कमी नहीं है, बस छात्रों और उनके माता-पिता को विभिन्न क्षेत्रों में उभरते हुए नौकरी के अवसरों से अवगत कराना और उन्हें उपयुक्त कौशल प्रदान करने वाले संस्थान का चयन करने में मदद करने की जरूर है।  -अनिल भारद्वाज, सेक्रेटरी जनरल, फिस्मे एंव सदस्य, आर्थिक सलाहकार ग्रुप, उत्तर प्रदेश शासन

डराने वाले हैं ये आंकड़े

  • 40 करोड़ लोगों को प्रशिक्षण देना था 2022 तक पीएम कौशल विकास योजना के तहत
  • 1.38 करोड़ युवाओं को ही मिला है प्रशिक्षण साल 2023 तक
  • 18-22 प्रतिशत को ही रोजगार मिल पाया है प्रशिक्षित युवाओं में से

 

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