जेल में बंद शेरू सिंह का अपराधों से है सीधा सम्पर्क,कैसे?

जेल में बंद शेरू सिंह का अपराधों से है सीधा सम्पर्क,कैसे?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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बिहार में बढ़ते आपराधिक घटनाओं के बीच चंदन मिश्रा की हत्या शासन और प्रशासन पर बड़े सवालिया निशान उठा रहा है. बिहार के ADG कुंदन कृषणन ने शेरू सिंह से जुड़े कई अहम घटनाओं और हाल में हुई आपराधिक साजिशों का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि कैसे बक्सर और आरा में जेल में रहते हुए शेरू सिंह ने कई आपराधिक घटनाओं में परोक्ष रूप से शामिल रहा.

ADG ने क्या कहा ?

ADG कुंदन कृष्णन ने कहा, “पूरा बक्सर जिला के लोग जानते हैं कि ये गैंग काफी चर्चित रहा है. वर्ष 2008 में 7-8 मर्डर ये दोनों मिलकर इकट्ठे किये थे. साल 2008 में केशरी जी की हत्या में जिला कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई लेकिन हाई कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास में तब्दील किया. इस बीच शेरू सिंह जेल से भागा भी था. उसे नेपाल के सीमावर्ती जिले से पकड़ कर वापस लाया गया. तब से वो आरा और बक्सर जेल में रहा है. हमलोग अलग-अलग जेल में उसका ट्रांसफर करते रहे हैं.”

जल्दी गिरफ्तार होंगे चंदन के कातिल

ADG ने बताया कि शेरू और चंदन पहले साथ अपराध करते थे, लेकिन एक हत्या के मामले में दोनों के बीच दुश्मनी हो गई थी. वर्त्तमान में शेरू सिंह पश्चिम बंगाल की पुरुलिया जेल में बंद है. पिछले मार्च महीने आरा के तनिष्क शोरूम में जो लूट हुई थी उसमे उसका डायरेक्ट कनेक्शन सामने आया था. उसे रिमांड भी किया गया था. शेरू सिंह ने परिजनों ने आरोप लगाया था कि बिहार पुलिस उसे रिमांड पर लेने के बहाने उसकी हत्या कर सकती है. बीते दिनों पारस अस्पताल में चंदन मिश्रा की हुई हत्या के मामले में ADG ने दावा किया कि जल्द ही सभी शूटर गिरफ्तार होंगे और बिहार पुलिस संगठित अपराध पर नियंत्रण पा लेगी.

बक्सर जिले के सेमरी बड़ा गांव का रहने वाला शेरू का असली नाम ओंकार नाथ सिंह है. शेरू और चंदन मिश्रा एक समय में अच्छे दोस्त थे. दोनों का मेल क्रिकेट के मैदान में हुआ था और यही दोस्ती आगे चलकर खूनी रिश्ते में बदल गई. साल 2009 में क्रिकेट खेलते वक्त जब अनिल सिंह नामक युवक से विवाद हुआ तो दोनों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी. दोनों नाबालिग थे इस वजह से जल्द ही बाल सुधार गृह से बाहर आ गए.

बाहर आते ही बने संगठित अपराधी

रिहाई के बाद दोनों ने मिलकर अपना गैंग तैयार किया. फिर रंगदारी और हत्या का सिलसिला शुरू हुआ. अपराध की दुनिया में पैसे के साथ-साथ ताकत भी बढ़ती गई. नए लड़के जुड़ते गए. हथियार जमा होते गए. देखते ही देखते बक्सर और आसपास के इलाकों में इनका आतंक स्थापित हो गया.

2011 में छह मर्डर

साल 2011 दोनों अपराधियों के लिए सबसे खूनी साल रहा. मार्च से अगस्त के बीच में इनके गैंग ने छह बड़ी हत्याएं कीं. इनमें मोहम्मद नौशाद, भरत राय, जेल क्लर्क हैदर अली, शिवजी खरवार, मोहम्मद निजामुद्दीन और चूना व्यापारी राजेंद्र केसरी शामिल थे.

दोस्ती में दरार की शुरुआत कैसे हुई

चूना व्यापारी राजेंद्र केसरी ने रंगदारी देने से इनकार किया तो 21 अगस्त 2011 को उसकी हत्या कर दी गई. हत्या से एक दिन पहले ही चंदन मिश्रा ने धमकी दी थी कि वह उसे जान से मार देगा और उसने ऐसा ही किया. इस हत्याकांड ने चंदन और शेरू के रिश्तों में दरार डाल दी. पैसों के बंटवारे और जातिगत समीकरणों के कारण दोनों के रास्ते अलग हो गए. इसके बाद दोनों ने अपने-अपने अलग गैंग बना लिया.

गिरफ्तारी और सजा के बाद भी जारी रहा आतंक

राजेंद्र केसरी की हत्या के बाद दोनों अपराधी कोलकाता भाग गए. यहां दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद दोनों को बक्सर पुलिस ने कोर्ट में पेश किया. इसके बाद उन्हें पहले भागलपुर और फिर पटना के बेऊर जेल में शिफ्ट किया गया. जेल में रहकर भी उनका अपराधी नेटवर्क चालू रहा. केसरी मर्डर केस में कोर्ट ने शेरू को फांसी और चंदन को उम्रकैद की सजा सुनाई. हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने शेरू की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया.

चंदन मिश्रा ने कोर्ट में भी पुलिस का हथियार छीनकर फायरिंग कर दी थी और फरार हो गया था. बाद में आरा पुलिस ने उसे फिर पकड़ा था.

चंदन अस्पताल में मारा गया

चंदन मिश्रा पाइल्स के इलाज के लिए कोर्ट से पैरोल पर बाहर आया था. उसकी पेरोल 18 जुलाई को खत्म होने वाली थी. लेकिन उससे ठीक एक दिन पहले यानी 17 जुलाई को अस्पताल में उसे गोलियों से भून दिया गया. शेरू गैंग के पांच लोग अस्पताल में घुसे और फिल्मी अंदाज में उसकी हत्या करके फरार हो गए.

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