मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में सभी बारह आरोपी हुए बरी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सात धमाकों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। करीब 19 साल बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 12 लोगों को बेगुनाह करार देते हुए बरी कर दिया। इनमें से पांच को विशेष अदालत ने मौत की सजा और बाकियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। कोर्ट का कहना है कि अभियोजन पक्ष इस मामले को साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा है।
यह फैसला उस दर्दनाक हादसे के करीब दो दशक बाद आया, जब मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार धमाकों ने सैकड़ों जिंदगियों को तबाह कर दिया था जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांदक की विशेष बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सबूतों और गवाहों के बयानों में कई खामियां थीं, जो इस केस को कमजोर करती थीं।
गवाहों पर कोर्ट को नहीं हुआ यकीन
कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के लगभग सभी गवाहों के बयानों को अविश्वसनीय करार दिया। फैसले में कहा गया कि टैक्सी ड्राइवरों और ट्रेन में मौजूद लोगों के लिए धमाकों के 100 दिन बाद आरोपियों को याद करना मुश्किल था। कोर्ट ने साफ कहा कि इतने लंबे समय बाद दी गई गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा, बम, बंदूकें, नक्शे जैसे सबूतों की बरामदगी को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट का कहना था कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि धमाकों में किस तरह के बम का इस्तेमाल हुआ था। इसलिए ये बरामद सबूत मामले से जुड़े नहीं माने गए।
क्या था 2006 मुंबई ब्लास्ट केस?
11 जुलाई 2006 को शाम के वक्त, जब मुंबई की लोकल ट्रेनें यात्रियों से खचाखच भरी थीं, सात जगहों पर RDX बम धमाके हुए। ये धमाके खार-सांताक्रूज़, बांद्रा-खार, जोगेश्वरी, माहिम, मीरा रोड-भायंदर, माटुंगा-माहिम और बोरीवली में हुए। सिर्फ 11 मिनट के अंदर इन धमाकों ने शहर को दहला दिया। पहले सात अलग-अलग FIR दर्ज की गईं, लेकिन बाद में मामले को ATS को सौंप दिया गया।
ATS ने गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत चार्जशीट दाखिल की थी। 2015 में निचली अदालत ने 13 में से 12 लोगों को दोषी ठहराया, लेकिन एक शख्स वाहिद शेख को बरी कर दिया गया था। अब हाई कोर्ट के इस फैसले ने बाकी 12 लोगों को भी बेगुनाह करार दिया है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले के 12 दोषियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा है। मामले पर एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा है कि सरकार उन जांचकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करेगी, जिन्होंने 189 लोगों की जान लेने वाले ट्रेन बम बिस्फोटों की जांच की थी।
हैदराबाद से सांसद ने कहा कि 12 मुस्लिम लोगों ने 18 साल जेल में उस अपराध के लिए बिताए, जो उन्होंने किया ही नहीं। उन्होंने ये भी कहा कि मारे गए लोगों के परिवारों के लिए अभी भी कोई क्लोजर नहीं है। एक्स पर पोस्ट करते हुए ओवैसी ने लिखा, “12 मुस्लिम पुरुष एक ऐसे अपराध के लिए 18 साल जेल में रहे जो उन्होंने किया ही नहीं, उनका सुनहरा जीवन चला गया, 180 परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया, कई घायल हुए, उनके लिए कोई क्लोजर नहीं। क्या सरकार इस मामले की जांच करने वाले महाराष्ट्र एटीएस के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी?”
निर्दोष लोगों को भेज दिया जाता है जेल’
उन्होंने कहा, “निर्दोष लोगों को जेल भेज दिया जाता है और फिर सालों बाद जब वे जेल से रिहा होते हैं तो उनके जीवन के पुनर्निर्माण की कोई संभावना नहीं होती। पिछले 17 सालों से ये आरोपी जेल में हैं। वे एक दिन के लिए भी जेल से बाहर नहीं निकले हैं। उनके जीवन का अधिकांश हिस्सा बर्बाद हो गया है।”
उन्होंने आगे कहा, “ऐसे मामलों में जहां जनाक्रोश होता है, पुलिस का तरीका हमेशा पहले दोषी मान लेना और फिर आगे बढ़ना होता है। पुलिस अधिकारी ऐसे मामलों में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और जिस तरह से मीडिया मामले को कवर करता है, वह एक तरह से अपराध का फैसला तय करता है। ऐसे कई आतंकी मामलों में जांच एजेंसियां बुरी तरह से विपल हो चुकी हैं।”
बॉम्बे हाई कोर्ट ने किस मामले में आरोपियों को किया रिहा?
11 जुलाई, 2006 को मुंबई की अलग-अलग ट्रेनों में 11 मिनट के अंदर सात बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में प्रेशर कुकर का इस्तेमाल किया गया था। पहला धमाका शाम 6 बजकर 24 मिनट पर और आखिरी धमाका 6 बजकर 35 मिनट पर हुआ था। चर्चगेट से आने वाली ट्रेनों के फर्स्ट क्लास के डिब्बों में बम रखे गए थे। ये बम माटुंगा रोड, माहिम जंक्शन, बांद्रा, खार रोड, जागेश्वरी, भयंदर और बोरीवली स्टेशनों के पास फटे।
2015 में निचली अदालत ने इस मामले में 12 लोगों को दोषी ठहराया था, जिसमें पांच को मौत की सजा और अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। आज उनकी सजा भी रद्द कर दी गई।