मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची महाराष्ट्र सरकार

मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची महाराष्ट्र सरकार

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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 मुंबई में 2006 के दिल दहला देने वाले ट्रेन धमाकों के मामले में महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें 12 आरोपियों को बरी कर दिया गया था।  महाराष्ट्र की एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ की गुहार लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 24 जुलाई की तारीख तय की है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को इस मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा था कि इन आरोपियों के खिलाफ को पुख्ता सबूत देने में अभियोजन पक्ष नाकाम रही है।

क्या था 2006 Mumbai Train Blast Case?

11 जुलाई 2006 को शाम के वक्त, जब मुंबई की लोकल ट्रेनें यात्रियों से खचाखच भरी थीं, सात जगहों पर RDX बम धमाके हुए। ये धमाके खार-सांताक्रूज़, बांद्रा-खार, जोगेश्वरी, माहिम, मीरा रोड-भायंदर, माटुंगा-माहिम और बोरीवली में हुए। सिर्फ 11 मिनट के अंदर इन धमाकों ने शहर को दहला दिया। पहले सात अलग-अलग FIR दर्ज की गईं, लेकिन बाद में मामले को ATS को सौंप दिया गया।

ATS ने गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत चार्जशीट दाखिल की थी। 2015 में निचली अदालत ने 13 में से 12 लोगों को दोषी ठहराया, लेकिन एक शख्स वाहिद शेख को बरी कर दिया गया था। अब हाई कोर्ट के इस फैसले ने बाकी 12 लोगों को भी बेगुनाह करार दिया है।

वर्ष 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में विशेष अदालत से सजा पाए 12 अभियुक्तों को घटना के 19 वर्ष बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को बरी कर दिया।

हाई कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के सभी दावों की धज्जियां उड़ा दीं और कहा कि वह मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और यह विश्वास करना कठिन है कि अभियुक्तों ने कोई अपराध किया है। साथ ही कहा कि यदि अभियुक्त किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं तो उन्हें तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाए। इसके बाद सात अभियुक्तों को विभिन्न जेलों से रिहा भी कर दिया गया।

विशेष अदालत ने 2015 में इनमें से पांच को मौत की सजा और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मौत की सजा पाए एक अभियुक्त की 2021 में मौत हो गई थी। अभियुक्तों ने विशेष अदालत द्वारा दी गई सजा और दोषसिद्धि को चुनौती दी थी।

हाई कोर्ट का फैसला इस मामले की जांचकर्ता एजेंसी महाराष्ट्र एटीएस के लिए बड़ा झटका है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने फैसले को चौंकाने वाला बताते हुए कहा कि उन्होंने वकीलों से चर्चा की है और फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए क्या कहा?

गौरतलब है कि 11 जुलाई, 2006 की शाम मुंबई की सात लोकल ट्रेनों में 11 मिनट के भीतर हुए सात धमाकों में 187 लोगों की मौत हो गई थी और 829 लोग घायल हुए थे।हाई कोर्ट में जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांडक की विशेष पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ में शामिल जस्टिस किलोर ने साफ कहा कि किसी अपराध के वास्तविक अपराधी को दंडित करना आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने, कानून का शासन बनाए रखने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस और आवश्यक कदम है।

लेकिन यह दिखावा करके कि अभियुक्तों को न्याय के कठघरे में लाया गया है और मामले के सुलझाने का झूठा दिखावा करना, समाधान का एक भ्रामक आभास देता है। यह जनता के विश्वास को कमजोर करता है और समाज को झूठा आश्वासन देता है, जबकि वास्तव में असली खतरा बना हुआ है। यह मामला मूलत: यही बताता है।

इकबालिया बयान अस्वीकार्य घोषित

पीठ ने अपने 671 पृष्ठों के फैसले में सभी अभियुक्तों के इकबालिया बयानों को अस्वीकार्य घोषित करते हुए कहा कि अभियुक्तों ने सफलतापूर्वक यह स्थापित किया है कि ये इकबालिया बयान दिलवाने के लिए उन्हें यातना दी गई। साथ ही कहा इकबालिया बयानों की नकल की गई है। हाई कोर्ट ने कहा, यह सर्वविदित है कि अधिकांश मामलों में पुलिस अवैध और अनुचित तरीकों से, जिसमें यातना भी शामिल है, जबरन अपराध स्वीकार करवा लेती है।

अभियोजन बमों का प्रकार भी नहीं बता पाया

लोकल ट्रेनों के प्रथम श्रेणी डिब्बों में हुए इन विस्फोटों के बाद एटीएस ने ये विस्फोट प्रेशर कुकर बम से करवाए जाने की बात कही थी। लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन विस्फोट में प्रयुक्त बमों के प्रकार को बताने में भी विफल रहा। जिन साक्ष्यों पर उसने भरोसा किया, वे अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए निर्णायक नहीं हैं।

पीठ ने कहा कि इकबालिया बयान कई पहलुओं पर अस्पष्ट हैं। जैसे साजिश की योजना, बम किस कंटेनर में भरे गए थे, उनमें कैसे विस्फोट किया गया, बमों को ट्रिगर करने के लिए किस उपकरण का इस्तेमाल किया गया आदि।

पाकिस्तान में ट्रेनिंग की बात भी अभियोजन नहीं कर पाया साबित

एटीएस द्वारा अभियुक्तों में से कुछ के पाकिस्तान जाकर ट्रे¨नग लेने का दावा भी आरोप-पत्र में किया गया था। हाई कोर्ट ने उस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पाकिस्तान जाकर ट्रे¨नग लेने की बात भी जांच एजेंसियां साबित नहीं कर सकीं। साथ ही कहा कि गवाहों के बयान और अभियुक्तों से की गई कथित बरामदगी का साक्ष्य के तौर पर कोई मूल्य नहीं है और इसलिए इसे दोषसिद्धि के लिए निर्णायक नहीं माना जा सकता।

इन गवाहों में वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने कथित तौर पर अभियुक्तों को बम लगाते या उन्हें असेंबल करते देखा था। साथ ही कोर्ट ने बरामद वस्तुओं (मो. फैसल शेख और मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी से बरामद विस्फोटकों और कथित तौर पर बमों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल सर्किट बाक्स) की खराब सी¨लग और रखरखाव पर भी प्रतिकूल टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि यद्यपि अभियोजन पक्ष ने सर्किट बोर्ड के बारे में विशेषज्ञ की तकनीकी रिपोर्ट रिकार्ड पर रखी, लेकिन वह वर्तमान अपराध में प्रयुक्त बमों के प्रकार को स्थापित करने में असफल रहा।

कॉल डिटेल रिकॉर्ड नहीं किया साझा

पीठ ने कहा कि अभियुक्तों के विरुद्ध अभियोजन पक्ष का मामला तब और कमजोर हो गया जब उसने बचाव पक्ष के साथ काल डिटेल रिकार्ड को साझा नहीं किया। अभियोजन ने आरोप दायर करने के लिए काफी हद तक इस पर भरोसा किया था।

दो रिपोर्टों का बचाव पक्ष ने उठाया फायदा

यह आतंकी घटना होने के मुंबई एटीएस इस मामले की जांच में जुटी थी। उसके कुछ वर्ष बाद ही मुंबई पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध शाखा) राकेश मारिया के नेतृत्व में इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) का पुणे माडल ध्वस्त किया गया था। मारिया की टीम ने दावा किया था कि जुलाई, 2006 का ट्रेन विस्फोट कांड पुणे के आइएम माडल ने करवाया था। लेकिन राकेश मारिया की टीम की इस जांच रिपोर्ट को निचली अदालत में चल रही सुनवाई का कभी हिस्सा बनाया ही नहीं गया।

लेकिन 2015 के बाद हाई कोर्ट में शुरू हुई सुनवाई में बचाव पक्ष के वकीलों ने उस रिपोर्ट का आरोपितों के पक्ष में इस्तेमाल किया। वे दो अलग-अलग जांच एजेंसियों की इन विरोधाभासी रिपोर्टों को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने में बखूबी सफल रहे। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के प्रविधान इस मामले पर लागू नहीं होंगे और इसकी मंजूरी बिना सोचे-समझे यांत्रिक तरीके से दी गई थी।

बचाव पक्ष ने जांच को बताया पक्षपातपूर्ण

हाई कोर्ट में बचाव पक्ष की ओर से कुछ अभियुक्तों का पक्ष रख रहे उड़ीसा हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं अब वकील डा. एस. मुरलीधर ने इस मामले में की गई जांच को पक्षपातपूर्ण करार देते हुए कहा कि आतंकवाद से जुड़े मामलों में अक्सर पुलिस का ऐसा ही रवैया देखने को मिलता है। जिसके कारण अनेक निर्दोष लोगों को जेल में जिंदगी गुजारनी पड़ती है। जबकि सरकारी वकील राजा ठाकरे ने इसे ‘रेयरेस्ट आफ द रेयर’ केस बताते हुए निचली अदालत से मृत्युदंड की सजा पाए अभियुक्तों की सजा की पुष्टि की मांग की थी।

विशेष अदालत से इन्हें मिली थी मौत की सजा

कमाल अंसारी (अब मृत), मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान बशीर खान।विशेष अदालत से इन्हें मिली थी उम्र कैद : तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद माजिद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद लतीफुर रहमान शेख।

फैसले के बाद ये अभियुक्त हुए रिहा

हाई कोर्ट के फैसले के बाद एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी और शेख मोहम्मद अली आलम शेख को नागपुर केंद्रीय कारागार; सुहैल महमूद शेख, तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद माजिद मोहम्मद शफी और जमीर अहमद रहमान शेख को अमरावती केंद्रीय कारागार और आसिफ खान बशीर खान को यरवदा केंद्रीय कारागार से रिहा कर दिया गया।

नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद नवीद हुसैन खान के विरुद्ध हत्या के प्रयास का एक मामला लंबित है, इसलिए उसे जेल से रिहा नहीं किया गया। इसी तरह यरवदा जेल में बंद मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख के विरुद्ध भी एक अन्य मामला लंबित है, इसलिए वह भी जेल से रिहा नहीं किया गया।

2015 में यतिन डी. शिंदे की अदालत ने सुनाया था फैसला

वर्ष 2015 में यतिन डी. शिंदे की विशेष मकोका अदालत ने पांच अभियुक्तों को मौत की सजा और सात अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। उस समय सरकारी वकील राजा ठाकरे थे। राजा ठाकरे ने ही हाई कोर्ट में भी इस मामले का सरकार की ओर से प्रतिनिधित्व किया। हाई कोर्ट में बचाव पक्ष की ओर से कुछ अभियुक्तों के वकील डा. एस. मुरलीधर थे। वह उड़ीसा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। अब वकालत करते हैं।

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