क्या बिहार में गलत वोट डालने दिए जाएं-चुनाव आयोग
प्रदेश में 22 साल बाद वोटर लिस्ट का रिवीजन हो रहा है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले पर विपक्षी पार्टियां जमकर विरोध कर रही हैं। विपक्ष के विरोध के बीच चुनाव आयोग ने कुछ गंभीर सवाल उठाए हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाता सूची निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र का आधार होती है तो क्या उसमें सुधार नहीं किया जाना चाहिए?
बिहार चुनाव से पहले मतदाता लिस्ट पुनरीक्षण मामले को लेकर चुनाव आयोग का जवाब सामने आया है। दरअसल चुनाव आयोग के इस फैसले को लेकर कई राजनीतिक पार्टियां सवाल खड़े कर रही थीं। बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बुधवार को कहा था कि चुनाव के बहिष्कार पर विचार हो सकता है।
अब चुनाव आयोग ने अपने आलोचकों को जवाब दिया है। आयोग ने कहा, “भारत का संविधान भारतीय लोकतंत्र की जननी है….तो क्या इन बातों से डरकर, निर्वाचन आयोग को कुछ लोगों के बहकावे में आकर, संविधान के खिलाफ जाकर, पहले बिहार में, फिर पूरे देश में, मृतक मतदाताओं, स्थायी रूप से पलायन कर चुके मतदाताओं, दो स्थानों पर वोट दर्ज कराने वाले मतदाताओं, फर्जी मतदाताओं या विदेशी मतदाताओं के नाम पर फर्जी वोट डालने का रास्ता बनाना चाहिए?”
आयोग ने सवालिया लहजे में कहा, “क्या निर्वाचन आयोग की ओर से पारदर्शी प्रक्रिया से तैयार की जा रही प्रामाणिक मतदाता सूची निष्पक्ष चुनाव और मजबूत लोकतंत्र की आधारशिला नहीं है? इन सवालों पर, कभी न कभी, हम सभी को और भारत के सभी नागरिकों को राजनीतिक विचारधाराओं से परे जाकर, गहराई से सोचना होगा। और शायद आप सभी के लिए इस आवश्यक चिंतन का सबसे उपयुक्त समय अब भारत में आ गया है।”
बिहार में बीते 22 सालों में ये पहली बार है, जब इस तरह से मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जा रहा है। इसका मुख्य मकसद मतदाता सूची को दुरुस्त करना, साफ-सुथरा और पारदर्शी बनाना है। इसके माध्यम से अयोग्य, डुप्लिकेट/फर्जी या गैर-मौजूद प्रविष्टियों को हटाया जाना है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि केवल सभी पात्र नागरिक ही इसमें शामिल हों।
क्या फर्जी मतदाताओं को मतदान करने देना चाहिए’
चुनाव आयोग ने बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले पर हो रही आलोचना को लेकर कहा कि ‘भारत का संविधान, भारतीय लोकतंत्र की मां है। तो क्या विरोध से डरकर चुनाव आयोग को कुछ लोगों के दबाव में भ्रमित हो जाना चाहिए और उन लोगों का रास्ता साफ कर देना चाहिए, जो मृत मतदाताओं के नाम पर फर्जी मतदान करते हैं? जो मतदाता स्थायी तौर पर पलायन कर गए हैं, जो मतदाता फर्जी या विदेशी हैं, क्या उन्हें संविधान के खिलाफ जाकर, पहले बिहार में और फिर पूरे देश में मतदान करने दें?’
चुनाव आयोग ने पूछा कि ‘क्या हमें निष्पक्ष प्रक्रिया के जरिए मतदाता सूची को तैयार नहीं करना चाहिए? मतदाता सूची ही निष्पक्ष चुनाव और मजबूत लोकतंत्र का आधार होती है। इन सभी सवालों पर हम सभी भारतीयों को गंभीरता से और राजनीतिक वैचारिकता से परे जाकर विचार करना चाहिए। इन सभी मुद्दों पर अब गंभीरता से विचार करने का सही समय आ गया है।’
भारत निर्वाचन आयोग ने बताया है कि बिहार में मतदाता सूची संबंधी आदेश के पैरा 7(5) के तहत पृष्ठ 3 पर कहा गया है कि कोई भी मतदाता या कोई मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल को 1 अगस्त से लेकर 1 सितंबर तक एक महीने का समय मिलेगा ताकि वे किसी भी पात्र मतदाता का नाम मतदाता सूची में शामिल करवा सकें, अगर उसका नाम बीएलओ/बीएलए द्वारा छोड़ दिया गया हो। साथ ही किसी भी मतदाता का नाम कटवा सकते हैं अगर बीएलओ/बीएलए द्वारा गलत तरीके से नाम शामिल किया गया हो।
लाखों मतदाताओं के कट सकते हैं नाम
बिहार में चुनाव आयोद द्वारा मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया जा रहा है। जिसका विपक्ष द्वारा विरोध किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि पुनरीक्षण में बिहार में कम से कम 56 लाख मतदाताओं के नाम कट सकते हैं। इसमें 20 लाख मतदाताओं का निधन हो चुका है। 28 लाख ऐसे मतदाताओं की पहचान की गई जो अपने पंजीकृत पते से स्थाई रूप से पलायन कर गए हैं। वहीं, एक लाख मतदाता ऐसे हैं जिनका कुछ पता नहीं है। 7 लाख मतदाता एक से अधिक स्थान पर पंजीकृत पाए गए हैं।
चुनाव आयोग के इस विशेष अभियान से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि करीब 15 लाख मतदाता अभी भी ऐसे हैं जिन्होंने अपने गणना प्रपत्र वापस नहीं किए हैं। इन्हें लेकर चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के साथ गणना प्रपत्र एकत्र करने की कवायद कर रहा है। अब तक 7.7 करोड़ से ज्यादा मतदाता फॉर्म (कुल मतदाताओं का 90.89 फीसदी) मिल चुके हैं और इनकी डिजिटलीकरण भी कर दिया गया है।