सावन शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत 5 अगस्त को, जाने कैसे करें पूजा।
श्रीनारद मीडिया, दारौंदा, सिवान, (बिहार)।
सिवान जिला सहित दारौंदा प्रखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में पुत्रदा एकादशी व्रत 5 अगस्त मंगलवार को श्रद्धा के साथ मनाई जाएगी।
सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पुत्रदा एकादशी या पवित्रा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और यह एकादशी व्रत 5 अगस्त मंगलवार को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि 4 अगस्त को दिन में 09:52 बजे से प्रारम्भ होकर 5 अगस्त को दोपहर 11:28 बजे तक रहेगी। शास्त्र सम्मत उदया तिथि (सूर्योदय आधारित) माना जाता हैं। अतः व्रत 5 अगस्त को ही रखा जायेगा। एकादशी व्रत का पारण 6 अगस्त को दिन में 12:41 बजे तक।
धर्मशास्त्रों के अनुसार इस व्रत का पालन करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी का महत्व :-
पुत्रदा एकादशी को लेकर मान्यता है कि इस दिन वैवाहिक दंपति को व्रत रखना चाहिए और विधिपूर्वक, पूरे नियम धर्म के साथ पूजा पाठ करनी चाहिए। इससे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है, जो पवित्रता एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।
ऐसी मान्यता हैं कि इस दिन व्रत रखने और विष्णु जी की पूजा करने से निःसंतान दम्पति को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
इसके साथ ही भगवान विष्णु और शिवजी अपने भक्तों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
यही नहीं एकादशी व्रत करने वाले के दुख-दर्द भी दूर होते हैं ।
सावन के महीने में मनाई जाने वाली पुत्रदा एकादशी का अपना महत्व है। जहां एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है वहीं अभी सावन का महीना चल रहा है, जिसमें भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसे में सावन की पुत्रदा एकादशी पर भगवान शिव और विष्णु दोनों की कृपा पाने का मौका होता है तथा भगवान मनोकामना भी पूरी करते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में रहते हैं और उनके भक्त इस दिन व्रत रखकर विशेष पुण्य अर्जित करते हैं। यह व्रत चातुर्मास के दौरान आने वाला एक प्रमुख व्रत होता है, जो संयम, भक्ति और सेवा का प्रतीक है।
पूजा विधि:-
इस दिन व्रती को प्रातःकाल स्नान करके। घर के पूजा स्थल को स्वच्छ कर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक जलाकर पूजा करें। उन्हें पीले पुष्प, तुलसी दल, पंचामृत, फल, मिष्ठान्न आदि अर्पित करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। दिनभर व्रत रखने के बाद रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन करें। अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात स्वयं पारण करें।
विशेष बातें:-
इस दिन चावल, मसूर की दाल, लहसुन-प्याज आदि तामसिक चीजों से परहेज करें। व्रत न रख पाने वाले भी सात्विक भोजन कर भगवान विष्णु की उपासना करें।
पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान की प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए रखा जाता हैं। यह व्रत भक्ति और आत्मशुद्धि का श्रेष्ठ मार्ग है, जो भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।