पीएम मोदी 7 साल बाद 31 अगस्त 2025 को चीन जाएंगे

पीएम मोदी 7 साल बाद 31 अगस्त 2025 को चीन जाएंगे

एक जगह अगर जमा हो गए तीनों- अमर, अकबर, एंथोनी

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

WhatsApp Image 2025-08-14 at 5.25.09 PM
01
previous arrow
next arrow
WhatsApp Image 2025-08-14 at 5.25.09 PM
01
previous arrow
next arrow

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन शहर में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन का दौरा करेंगे। 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद यह उनकी पहली चीन यात्रा होगी। उन्होंने पिछली बार 2019 में चीन का दौरा किया था।एससीओ सदस्य देशों के साथ चर्चा में क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और व्यापार जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। भारत-चीन संबंधों में स्थिरता और संवाद बहाल करने के प्रयास किए जाएँगे।

शिखर सम्मेलन के दौरान रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अनौपचारिक मुलाकात की संभावना है। इससे पहले, अक्टूबर 2024 में, प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में मिले थे। इसके बाद, दोनों देशों के बीच सीमा तनाव कम करने के प्रयासों में तेज़ी आई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इस वर्ष की शुरुआत में आयोजित एससीओ बैठकों में भाग लिया था।

जयशंकर ने बीजिंग में शी जिनपिंग से मुलाकात की थी और उन्हें भारत-चीन संबंधों में हालिया घटनाक्रमों से अवगत कराया था, साथ ही द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने में निरंतर नेतृत्व मार्गदर्शन के महत्व पर ज़ोर दिया था। मई 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के बीच रिश्ते बेहद खराब हो गए थे। इस झड़प में 20 भारतीय जवानों की जान चली गई थी और चीनी पक्ष में भी कई लोग हताहत हुए थे।

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनूर मालूम है, जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा। भारत ने अमेरिका को पैगाम साफ साफ दे दिया है। सवाल है कि अमेरिका बार बार अमेरिका के हुनर का इम्तिहान क्यों ले रहा है? इम्तिहान कुछ ऐसा कि जो जवाब मिला है वो पचा नहीं पाएंगे। डोनाल्ड ट्रंप अब भारत पर टैरिफ लगा रहे हैं। रूस से तेल क्यों लेते हो ये कहकर आंखें दिखा रहे हैं।

नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं। एक बार चाणक्य ने विदेशी संबंधों को लेकर कहा था कि किसी भी देश को ऐसी मित्रता या गठबंधन तुरंत समाप्त कर देना चाहिए। जिससे भविष्य में उसे नुकसान हो। अमेरिका से भारत की मित्रता या गठबंधन खत्म तो नहीं हो सकता। लेकिन अमेरिका को भारत ने कुछ चीजें स्पष्ट कर दी है। सबसे पहले तो हमारे लिए हमारा राष्ट्रहित सर्वोपरि है और भारत किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला देश नहीं है।

क्या रूस-चीन-भारत मिलकर बनाएंगे महागठबंधन

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के बयानों ने भारत को ठेस पहुंचाई है और इससे भारत को अपनी रणनीति पर दोबारा सोचने पर मजबूर कर सकता है। अगर ऐसा होता है, तो इसका मतलब भारत की विदेश नीति में बड़ा बदलाव होगा। पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने एक बार कहा था-अमेरिका से दुश्मनी भारी होती है और दोस्ती जानलेवा। भारत के लिए चीन से संबंधों में सुधार अच्छा कदम है।

विश्व के मानचित्र पर एक नजर डालें तो पता चल जाएगा कि रूस, चीन और भारत कितने बड़े देश हैं। ये अगर एक साथ हों, तो एक नए विश्व की संरचना संभव है। ज्यादातर विदेश नीति जानकार मानते हैं कि भारत-अमेरिका के रिश्ते सिर्फ ट्रंप के कार्यकाल तक सीमित नहीं हैं। ये रिश्ते सालों में बने हैं और दोनों देशों के बीच गहरी रणनीतिक साझेदारी है।

चीन के साथ अच्छे संबंध ठीक हैं, लेकिन चीन भारत का मुख्य रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी बना रहेगा। हालांकि ट्रम्प की टैरिफ नीति और भारत, रूस, और चीन के संभावित गठजोड़ का वैश्विक शक्ति संतुलन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यदि यह गठजोड़ सफल होता है, तो यह वैश्विक व्यापार और भू-राजनीति में अमेरिका के एकध्रुवीय वर्चस्व को चुनौती दे सकता है। ब्रिक्स और एससीओ जैसे मंच इस गठजोड़ को और मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!