स्वतंत्रता @79 : स्व का तंत्र हो विकसित
स्वतंत्रता हमें जिम्मेदारियों का बोध कराता है
✍️ राजेश पाण्डेय
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आदरणीय देशवासियों! आज हम अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। आज ही के दिन हम सैकड़ों वर्षों की परतंत्रता से मुक्त हुए थे। प्रत्येक भारतीयों के प्रयास से हमारा देश स्वतंत्र हुआ। इसके लिए हमारे देश के पूर्वजों ने असहनीय पीड़ा का सामना किया है। अब हम स्वतंत्र हो गए हैं,हमारी जनता संप्रभु राष्ट्र की तरह व्यवहार करती हैं। पूरे विश्व में हमारी संस्कृति एवं सभ्यता की अलग पहचान है।
स्वतंत्रता ने हमें स्वराज, सुराज, स्वदेशी, स्वभाषा, आत्मनिर्भरता, स्वालंबन का पाठ पढ़ाया है। यह स्व महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारी जड़ों की याद दिलाता है।
एक अरब 45 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश में सभी संविधान को मानते हैं। इन वर्षों में देश के आधारभूत संरचना का विकास हुआ है। खाद्यान्न के मामले में हम आत्मनिर्भर हुए हैं। विज्ञान की क्षेत्र में प्रगति से हमारा जीवन सुगम हुआ है। देश के उन्नत शिक्षा संस्थानों ने बेहतर कर्मचारी, अधिकारी, पदाधिकारी उपलब्ध करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने अनुसार सभी प्रकार के दिनचर्या हेतु आवश्यक सामग्री को सुगमता से प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती है
आत्ममंथन की आवश्यकता।
अपना देश अमृतकाल में प्रवेश कर गया है यानी हम 2047 तक एक विकसित देश के रूप में विश्व पटल पर उभर कर आएंगे, ऐसा सरकार ने लक्ष्य रखा है। लेकिन हमें कुछ आत्म मंथन करने की आवश्यकता है। स्वतंत्रता ने हमें स्वच्छंदता की ओर मोड़ दिया है। हम मानसिक रूप से बंट गए है। इन 79 वर्षों में देश की तरक्की से अधिक हमने अपना व्यक्तिगत विकास किया है। क्षेत्र, भाषा, विचार, पंथ, धर्म एवं जाति के नाम पर हमने अपने को बांट लिया है।
– भ्रष्टाचार हमारे दिनचर्या का अंग बन गया है। बस-ट्रेन में हम टिकट नहीं लेते, अपने कार्य के प्रति हम कटिबंध नहीं है, कार्य में लालफीताशाही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था, निर्माण कार्य विभाग भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं।
– नीतियों में कमियां होने से माफियाओं का जन्म हुआ है। आउटसोर्सिंग एवं ठेकेदारी प्रथा ने समाज को विचलित कर रखा है।
– विचारधारा के स्तर पर हम बंट गए है। विचार सकारात्मक संवाद के लिए है लेकिन हमने इसे एक हथियार एवं उपकरण की तरह समाज को बांटने में उपयोग कर लिया है।
– विभिन्न धर्मो के आपसी समन्वय में निरंतर ह्रास दिखाई दे रहा है। शासन एवं प्रशासन की बंदूक ने इसे कानून व्यवस्था के नाम पर संभाल रखा है।
– देश को कई प्रकार के सुधार की आवश्यकता है। इसमें ‘एक देश एक चुनाव’, ‘समान सिविल संहिता’ प्रमुख रूप से है।
– न्याय व्यवस्था खर्चीली, लंबी एवं उबाऊ है। इस तंत्र में होने वाले भ्रष्टाचार को सभी अनुभव करते हैं लेकिन जिसका एक बार इस व्यवस्था से पाला पड़ जाता है उसकी दुर्गति हो जाती है।
– जिस हिंदी एवं उसकी बोलियां ने 90 वर्षों तक स्वतंत्रता की लड़ाई हेतु कठोर संघर्ष किया, उस भाषा को लेकर हम देश का भूगोल बांटना चाहते हैं।
विडंबना है कि हम एक अजीब प्रकार के राष्ट्र निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं। संसद में दिए आंकड़े के अनुसार आंकड़ों के अनुसार 2011 से अभी तक 18 लाख भारतीयों ने अपने देश की नागरिकता को छोड़ दिया है उनका मानना है कि व्यापार करने हेतु कड़े कानून, श्रमिकों की मनोवृत्ति, कार्यस्थल का वातावरण, सरकार की नीतियां एवं कानून व्यवस्था की कारण ऐसी समस्या उत्पन्न हुई है।
बहरहाल हमारा देश भौगोलिक एवं राजनीतिक इकाई से बढ़कर सामाजिक-सांस्कृतिक इकाई है। जिसे हम राष्ट्र के रूप में जानते- समझते-पहचानते हैं। इससे हमारा संबंध भावुकता का है। क्योंकि हमारी कई पीढ़ियों ने इसे उन्नत बनाने में अपने जीवन को खफाया है।
आज के दिन हम सभी यह संकल्प लें कि एक विकसित राष्ट्र के निर्माण में अपनी महती भूमिका का निर्वहन करेंगे।
जय हिंद!