दबाव में व्यापार ठीक नहीं- संघ प्रमुख मोहन भागवत

दबाव में व्यापार ठीक नहीं- संघ प्रमुख मोहन भागवत

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अमेरिकी टैरिफ के बाद स्वदेशी के लिए पहल करने की अपील की और सरकार को सलाह दी कि किसी के उकसावे में न आएं। भागवत ने ट्रंप को भी नसीहत देते हुए कहा कि दबाव में व्यापार नहीं किया जाता। दरअसल भागवत नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय कार्यक्रम ‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने लोगों से बाहर के बने उत्पादों की बजाय घर के बने पेय और खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करने की अपील की।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि मंदिर, पानी और श्मशान में कोई भेद नहीं होना चाहिए। उन्होंने हिंदुत्व और हिंदू विचारधारा पर भी बात की। भागवत ने कहा कि हिंदुत्व क्या है? हिंदू विचारधारा क्या है? संक्षेप में कहें तो दो शब्द हैं, सत्य और प्रेम। दुनिया एकता पर चलती है; यह सौदों से नहीं चलती, यह अनुबंधों से नहीं चलती, यह चल ही नहीं सकती।

उन्होंने कहा, “हिंदू राष्ट्र का जीवन-लक्ष्य क्या है? हमारा हिंदुस्तान, इसका उद्देश्य विश्व कल्याण है। विकास के क्रम में, दुनिया ने अपने भीतर खोजना बंद कर दिया… अगर हम अपने भीतर खोजेंगे, तो हमें शाश्वत सुख का स्रोत मिलेगा जो कभी मिटता नहीं। इसे पाना ही मानव जीवन का परम लक्ष्य है और इससे सभी सुखी होंगे। सभी एक-दूसरे के साथ सद्भाव से रह सकेंगे। दुनिया के कलह समाप्त हो जाएंगे। दुनिया में शांति और सुख होगा।

मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भी तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति आज दिखाई देती है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं स्थायी शांति स्थापित नहीं कर पाई हैं। इसका समाधान केवल धर्म संतुलन और भारतीय दृष्टि से ही संभव है। उन्होंने कहा कि हमें तब तक आगे बढ़ते रहना चाहिए जब तक हम सम्पूर्ण हिंदू समाज को एक करने के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते। और हम यह कैसे कर सकते हैं? इसे चार मार्गदर्शक सिद्धांतों में अभिव्यक्त किया जा सकता है – मैत्री , उपेक्षा, आनंद और करूणा।

उन्होंने कहा कि अगर सभी उपभोग के पीछे भागने लगे तो स्पर्धा होती है, आपस में झगड़े होते हैं। दुनिया नष्ट होने की नौबत आती है, जबकि हमारी विचारधारा है कि सबका भला हो। धर्म सार्वभौमिक है, यह सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है। यह आप पर है कि आप मानो या न मानो लेकिन यह विश्व को शांति देने वाला धर्म है। परिवार में बैठकर सोचें कि अपने भारत के लिए हम क्या कर सकते हैं। अपने देश समाज के लिए किसी भी प्रकार से कोई भी कार्य करना। पौधा लगाने से लेकर वंचित वर्ग के बच्चों को पढ़ाने तक का कोई भी छोटा सा कार्य करने से देश और समाज से जुड़ने का मानस बनेगा।

भागवत ने कहा कि आज की दुनिया में लोग संवाद को महत्व नहीं देते, बल्कि बस अपनी इच्छाओं को थोपना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “अगर हम उनकी राय से सहमत नहीं होते, तो वे हमें रद्द कर देते हैं।” उन्होंने एक ऐसी घटना पर प्रकाश डाला जो उनके अनुसार एक वैश्विक समस्या बन गई है और माता-पिता भी अपने बच्चों पर इसके प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।

आरएसएस प्रमुख ने इस असहिष्णुता के लिए व्यक्तिवाद के अत्यधिक उदय को जिम्मेदार ठहराया, जिसने अनियंत्रित उपभोक्तावाद और भौतिकवाद के साथ मिलकर संयम और पारंपरिक मूल्यों को नष्ट कर दिया है। अपने भाषण में, उन्होंने महात्मा गांधी की ‘सात सामाजिक पापों’ के बारे में शाश्वत चेतावनी का उल्लेख किया और जोर देकर कहा कि उनके सत्य-जैसे विवेक के बिना सुख और नैतिकता के बिना व्यापार-आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।

 

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