‘प्रखर प्रवीण पत्रकार श्री बुद्धदेव तिवारी जी हुए स्वर्गवासी’
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
आलेख – धनंजय मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार, सीवान ।

* ऊं शांति! अत्यंत ही दु:खद! ईश्वर उनकी पुण्यात्मा को चिर शांति और परिजनों को यह अपार दु:ख सहने की असीम शक्ति दें! सादर नमनांजलि! मेरे पत्रकारीय जीवन के परम स्नेही रहे बंधुवर श्रद्धेय श्री बुद्धदेव तिवारी जी! उनसे मेरी सहृदय एवं अंतरंगता की प्रतीति का प्रतीक यह छोटी-सी बात ही प्रासंगिक व श्रेयस्कर होगी! जो यह कि करीब पच्चीस वर्षों से अधिक अवधि तक ‘राष्ट्रीय सहारा’ हिंदी दैनिक,नई दिल्ली प्रकाशन का ‘जिला संवाददाता’ और इस अखबार के पटना से प्रकाशन के पश्चात सीवान का ‘ब्यूरो चीफ’ रहने तक, श्री तिवारी जी जब भी सीवान शहर आते थे! तब वे अपनी व्यस्तता के बावजूद मुझसे दस मिनट भी जरूर मिलकर ही जाते थे! जब मेरे पास वे आते थे। तब अक्सर यह अपनी बात वे दोहराते भी थे !
जो वे यह कहते थे कि भाई धनंजय जी, आपसे अजीब एक ‘स्नेह-सम्मान’ भाव मन में विद्यमान हो गया है! अगर हम सीवान आएं और अपनी अति-व्यस्ततावश कभी-कभार आपसे बगैर भेंट किए, अपने घर लौट आते हैं। तब आपसे नहीं मिलकर आने पर, बेहद अफसोसजनक प्रतीत होता है!
भाई आप बहुत स्नेहमयी आदमी हैं! तब सम्मानपूर्ण सुभाव से मैं उन्हें सिर्फ इतना ही कह पाता था! भाईश्री जी, सच बात तो यह है कि मेरे प्रति आपका सहृदय अपार ‘परम-प्रेम-भाव’ है! तब वे हर्षित हो जाते थे। यद्यपि इतना ‘स्नेह-भाव’ होने के बावजूद, जब भी अपने कार्यालय में उनके लिए कुछ जलपान मंगाते थे। तब वे अक्सर कहते थे। भाई जी, जब मैं आपके पास आता हूं। तब अक्सर आप यह चाय-नाश्ता मत मंगवाइए। तब मैं उन्हें यह कहकर आश्वस्त करता था।
अरे भाईजी, यह सब ‘सहारा इंडिया परिवार’ की भारतीय ‘संस्कार-संस्कृति’ है! तब वे ‘सहारा संस्था’ की विशेषता की प्रशंसा भी करने लगते थे! तब किसी ने कब सोचा था कि ‘विश्व की विशालतम सहारा इंडिया परिवार’ की ऐसी कभी दुर्गति भी होगी ! वस्तुत: ‘समय होत बलवान’! हां, असली बात तो उनकी तब की यह थी कि वे जब भी मेरे पास आते थे !
तब जो भी अपनी विशेष खबर लिखकर बतौर संवाददाता वे ‘दैनिक जागरण’ अखबार के लिए लाते थे। उसकी एक प्रति मेरे लिए भी लाते थे। तब यह कहते हुए मुझे वह प्रति देते थे कि भाई जी, आप माहिर आदमी हैं। इस खबर को आप अपना और बढ़िया बना लीजिएगा। मैं कुछेक बार चाहा भी कि बसंतपुर से उन्हें मैं अपना संवाददाता प्रतिनियुक्त कर दूं। पर, वे कहने लगते थे।
भाई जी, मैं आपका संवाददाता नहीं बन सकता हूं! क्योंकि, मुझे लगता है कि ‘राष्ट्रीय सहारा’ का संवाददाता बन जाऊं ! तब कहीं संबंधित कार्यों की जिम्मेवारी की विवशता के कारण हम द्वय के बीच ऐसा बंधुत्व का फिर भाव रहे या न रहे..! वस्तुत: ऐसे थे। हमारे परम प्रिय बंधुवर श्री तिवारी जी! श्रद्धेय भ्राताश्री तिवारी जी, अब यही प्रार्थना है कि ईश्वर आपको अपने श्रीचरणों में स्थान दें ! अश्रुपूरित सादर श्रद्धांजलि!!
आलेख – धनंजय मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार, सीवान ।
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