विश्वकर्मा पूजा 2025: हर साल 17 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है विश्वकर्मा पूजा का पर्व

विश्वकर्मा पूजा 2025: हर साल 17 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है विश्वकर्मा पूजा का पर्व

इस बार आराधना के लिए क्या है शुभ मुहूर्त.

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कैसे करें पूजा… यहां जान लीजिए सब कुछ

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

 

हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम वास्तुकार और देव शिल्पी कहा गया है. ब्रह्मा जी के पुत्र विश्वकर्मा जी निर्माण और तकनीकी कला के देवता माने जाते हैं. भगवान विश्वकर्मा को मानने वाले लोग उन्हें दुनिया का पहला इंजिनियर मानते हैं.ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही द्वारका नगरी, इंद्रलोक, पांडवों का इंद्रप्रस्थ, भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, रावण की स्वर्ण लंका, रावण के लिए पुष्पक विमान और कई रथ व महल बनाए. इसलिए इस दिन लोग अपने कार्यस्थल और औजारों को पवित्र करके भगवान विश्वकर्मा से तरक्की, सफलता और सुरक्षा की कामना करते हैं.

 

मान्यता है कि इस दिन वाहन, मशीनों और औजारों की विधिवत पूजा करने से कारोबार में प्रगति मिलती है. भगवान विश्वकर्मा पूजा का त्योहार बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा और झारखंड राज्यों में जोर-शोर से मनाया जाता है. 17 सितंबर को ही क्यों होती है विश्वकर्मा पूजा दूसरे पर्व-त्योहारों के विपरीत, विश्वकर्मा पूजा का त्योहार केवल एक दिन के लिए मनाई जाती है.

विश्वकर्मा पूजा सौर कैलेंडर के अनुसार निर्धारित की जाती है जबकि दूसरे पर्व चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं. मान्यता है कि विश्वकर्मा पूजा के दिन ही भगवान विश्वकर्मा का प्राकट्य हुआ था. इसी कारण इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं. जिस दिन सूर्य ग्रह गोचर करके कन्या राशि में पहुंचते हैं. उसी दिन विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि कन्या संक्रांति के दिन ही भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था. सूर्य ग्रह का कन्या राशि में गोचर हर साल 17 सितंबर को ही होता है.

यही वजह है कि विश्वकर्मा जयंती हर साल 17 सितंबर को ही मनाई जाती है भगवान विश्वकर्मा की पूजा के लिए क्या है शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग के मुताबिक सूर्य इस साल 17 सितंबर की देर रात 01:55 बजे बुध की राशि कन्या में प्रवेश करेंगे. इसी वजह से विश्वकर्मा पूजा इस वर्ष 17 सितंबर 2025 को मनाई जाएगी. इस दिन पूजा के लिए तीन शुभ मुहूर्त हैं. ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:33 से 05:20 बजे तक रहेगा. विजय मुहूर्त दोपहर 12:18 से 03:07 बजे तक रहेगा. गोधूलि मुहूर्त शाम 06:24 से 06:47 बजे तक रहेगा.

इस बार विश्वकर्मा पूजा पर पूरे 100 सालों बाद अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग, शिवयोग और एकादशी का संगम एक ही दिन पड़ रहा है. यह अनोखा योग पूजा की महत्ता और फल को कई गुना बढ़ा देगा. इस बार विश्वकर्मा पूजा के दिन राहुकाल का संयोग भी रहेगा. 17 सितंबर को राहुकाल दोपहर 12:15 बजे से शुरू होकर 1:47 बजे तक रहेगा.

इस अवधि में पूजा-पाठ या किसी भी शुभ कार्य को करना वर्जित माना जाता है विश्वकर्मा पूजा की विधि 1. विश्वकर्मा पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
2. इसके बाद मशीन, औजार, वाहन या कार्यस्थल को अच्छी तरह साफ करें.
3. फिर पूजा स्थल पर कलश, फूल, माला, चंदन, धूप, अक्षत, सुपारी और पीली सरसों रखें.
4. इसके बाद भगवान विष्णु का स्मरण कर उन्हें फूल अर्पित करें.
5. फिर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा के सामने बैठकर पूजा आरंभ करें.
6. ऊं आधार शक्तपे नमः, ऊं कूमयि नमः, ऊं अनंतम नमः, ऊं पृथिव्यै नमः, ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः का जाप करें.
7. मंत्र के बाद अक्षत और फूल भगवान को अर्पित करें.
8. पीली सरसों की चार छोटी पोटलियां बनाकर चारों दिशाओं में बांधें.
9. पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद बांटें.
10. अगले दिन प्रतिमा का विसर्जन करें.

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