बटला हाउस में हुई मुठभेड़ ने देश में हलचल मचा दी थी,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दिल्ली में 19 सितंबर 2008 को बटला हाउस इलाके में हुई मुठभेड़ की एक घटना ने देश में राजनीतिक हलचल मचा दी थी। इस मुठभेड़ में इंडियन मुजाहिदीन के दो आतंकवादी मारे गए थे जबकि दिल्ली पुलिस के निरीक्षक मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए थे। तेरह सितंबर 2008 को दिल्ली में अलग-अलग स्थानों पर हुए बम विस्फोटों की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली थी।
इन्हीं धमाकों की जांच के दौरान यह मुठभेड़ हुई थी। 2008 के बटला हाउस मुठभेड़ में शहीद हुए इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा उन 35 दिल्ली पुलिस कर्मियों में शामिल हैं जिन्हें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उनकी सेवाओं के लिए पुलिस पदक से सम्मानित किया गया है। शर्मा को मरणोपरांत सातवीं बार वीरता पदक से सम्मानित किया गया है।
दिल्ली के जामिया नगर का बाटला हाउस इलाका। एक संकरी गली में एल-18 मकान की 65 सीढ़ियां चढ़ने के बाद तीसरे फ्लोर पर वो फ्लैट है, जहां 19 सितंबर 2008 की सुबह दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों के बीच एनकाउंटर हुआ था। 13 सितंबर 2008 को दिल्ली में हुए सिलसिलेवार धमाकों के ठीक एक हफ्ते बाद हुए इस एनकाउंटर में इंडियन मुजाहिदीन के दो आतंकी मारे गए थे। इस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए थे।
तब दिल्ली पुलिस ने दो आतंकियों के भागने का दावा भी किया था। इनमें से एक आरिज खान भी था, जिसे 2018 में नेपाल से गिरफ्तार किया गया था। सोमवार को दिल्ली के साकेत कोर्ट ने आरिज खान को फांसी की सजा सुनाई है। जब अदालत फैसला सुना रही थी, तब एल-18 में सन्नाटा पसरा था। यहां ज्यादातर फ्लैट्स पर ताले लटके हैं। जिन फ्लैट में लोग रह रहे हैं, वे भी एनकाउंटर के बारे में बात करने से कतराते हैं। दरवाजा खटखटाने पर एक अपार्टमेंट से एक महिला बाहर निकलती है, लेकिन एनकाउंटर का जिक्र होते ही सॉरी कहकर भीतर चली जाती है।
यहां आबादी बेहद घनी है। मकानों के बाहर निकले छज्जे हर बढ़ती मंजिल के साथ एक-दूसरे के करीब आते जाते हैं। बीच में बिजली के तारों का जाल बिछा है। यहां अपने कामों में लगे लोग बाटला हाउस एनकाउंटर के सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं। एनकाउंटर के दिन यहां मौजूद रहे सामाजिक कार्यकर्ता शारिक हुसैन कहते हैं, ‘उस एनकाउंटर के बाद यहां खौफ का माहौल पैदा हो गया था। सबसे ज्यादा वे स्टूडेंट्स डरे हुए थे जो बाहर से आकर यहां रहकर पढ़ाई कर रहे थे। वे फ्लैट छोड़कर यहां से वापस जा रहे थे। तब हमने उन्हें समझाया था कि डरने की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा।’
अदालतों ने बाटला हाउस एनकाउंटर को सही पाया
बाटला हाउस एनकाउंटर को लेकर भले ही स्थानीय निवासी और कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता सवाल उठाते रहे है। लेकिन NHRC से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक एक तरह से इसे क्लीन चिट दे चुके हैं। 2009 में एक एनजीओ Act Now For Harmony and Democracy ने एनकाउंटर की पुलिस थ्योरी पर सवाल उठाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दायर की। हाई कोर्ट के निर्देश पर NHRC ने जांच की और 30 पेज की रिपोर्ट कोर्ट में जमा की।
NHRC ने अपनी रिपोर्ट में कहा -‘हमारे सामने उपलब्ध तथ्यों के आधार पर नहीं लगता कि पुलिस की ओर से मानवाधिकार का उल्लंघन हुआ है। ’26 अगस्त 2009 को हाई कोर्ट ने NHRC की क्लीन चिट को स्वीकार करते हुए न्यायिक जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया। सितम्बर 2009 में हाई कोर्ट के इस आदेश को एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
लेकिन, 30 अक्टूबर 2019 को तत्कालीन CJI केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये कहते हुए न्यायिक जांच से इनकार कर दिया कि ‘हजारों पुलिसकर्मी मारे जाते हैं। न्यायिक जांच के आदेश से पुलिस फोर्स के मनोबल पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।’
इसी बीच साकेत कोर्ट ने 30 अप्रैल 2013 को पुलिस की ओर से पेश सबूतों और दलीलों को सही ठहराते हुए एक आरोपी शहजाद को उम्रकैद की सजा मुकर्रर की थी। और अब 15 मार्च 2021 को साकेत कोर्ट ने ही आरिज खान को फांसी की सजा सुनाई है।
वहीं उस समय दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल का नेतृत्व कर रहे और ईडी के पूर्व निदेशक रहे करनल सिंह ने अपनी किताब बटला हाउस- एन एनकाउंटर दैट शॉक द नेशन में लिखा था कि एनकाउंटर पर उठे सवालों ने न सिर्फ पुलिस का मनोबल गिराया बल्कि इस आतंकवादी संगठन के खिलाफ पुलिस की जांच के भटकने का खतरा भी पैदा किया।