गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी आई है,कैसे?

गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी आई है,कैसे?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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 विश्व बैंक ने अप्रैल, 2025 में अपनी एक रिपोर्ट में भारत में गरीबी रेखा के नीचे गुजारने वाले लोगों की आबादी में भारी कमी आने की बात कही थी। बाद में पीएम नरेन्द्र मोदी ने कई बार सार्वजनिक मंच से इस रिपोर्ट का हवाला दिया। अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की हालिया बुलेटिन रिपोर्ट (सितंबर 2025) में भी इस बात की तरफ इशारा किया गया है कि भारत में 2011-12 से 2022-23 के बीच गरीबी के स्तर में कमी दर्ज की गई है।

आरबीआई के पूर्व गर्वनर सी रंगराजन की अध्यक्षता में गठित समिति की पद्धति पर आधारित इस आकलन रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी घटाने में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। इसमें बिहार का प्रदर्शन सबसे उल्लेखनीय है क्योंकि इसने ना सिर्फ उत्तर भारत के राज्यों बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात जैसे विकसित राज्यों के मुकाबले भी बेहतर रहा है।

ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले शहरी क्षेत्र में ज्यादा गरीबी

रिपोर्ट में इसके पीछे की वजहों पर गहराई से नजर नहीं डाला है हालांकि इसका जिक्र जरूर है कि इसमें सरकारी योजनाओं और नीतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें यह बात सामने आती है कि कई राज्यों में ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले शहरी क्षेत्र में गरीबी ज्यादा है जो इन राज्यों के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।

गरीबी में कमी का किया गया दावा

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं कौस्तुभ, सतद्रु दास, पवन गोपालकृष्णन और देबोज्योति मजुमदार द्वारा किए गए अध्ययन में विभिन्न समूहों के बीच खपत व्यय और गरीबी में उल्लेखनीय कमी का दावा किया गया है। यह आकलन सीधे रिजर्व बैंक का नहीं इन शोधार्थियों का है जिसमें डाटा केंद्र सरकार के सांख्यिकी व कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर गणना की गई है।

क्या कहते हैं आंकड़े?

इसके मुताबिक बिहार ने 2011-12 से 2022-23 के बीच गरीबी में सबसे त्वरित कमी दर्ज की है। ग्रामीण बिहार में गरीबी का स्तर 40.1 फीसद से घटकर 5.9 फीसद हो गया, जो 85.3 फीसद की कमी को दर्शाता है। शहरी बिहार में भी गरीबी 50.8 से घटकर 9.1 फीसद रह गई, जो 82.1 फीसद की कमी है।

यह प्रदर्शन मध्य प्रदेश (ग्रामीण: 78.8 फीसद, शहरी: 72.4 फीसद), महाराष्ट्र (ग्रामीण: 49.8, शहरी: 49.4), और ओडिशा (ग्रामीण: 82.9 और शहरी: 71.9) से बेहतर है। इस आकलन रिपोर्ट में अन्य राज्यों में भी गरीबी में कमी की तस्वीर काफी सकारात्मक है।

उत्तरप्रदेश ने ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का स्तर इस दौरान 38.1 से घट कर 5.7 फीसद और शहरों में 45.7 से घट कर 9.9 फीसद आने की बात कही गई है। यह क्रमश: 85 फीसद और 78.3 फीसद की कमी है, जो जो बिहार के समकक्ष है।

आंध्र प्रदेश ने ग्रामीण क्षेत्रों में 90.6 फीसद और शहरी क्षेत्रों में 85.9 फीसद की कमी के साथ सबसे बेहतर प्रदर्शन किया।

ओडिशा और मध्य प्रदेश ने भी क्रमश: 82.0 फीसद और 78.8 फीसद (ग्रामीण) की कमी दर्ज की, लेकिन महाराष्ट्र में कमी अपेक्षाकृत कम (49.8 फीसद ग्रामीण, 49.4 फीसद शहरी) रही, क्योंकि वहां शुरुआती गरीबी स्तर पहले से ही कम था।

रंगराजन समिति के फॉर्मूले का किया इस्तेमाल

इन शोधार्थियों ने वर्ष 2022-23 के लिए अलग अलग राज्यों में गरीबी का स्तर तय करने के लिए रंगराजन समिति के फार्मूले का ही इस्तेमाल कर हर राज्य के लिए गरीबी रेखा की राशि तय की है। जैसे वर्ष 2011-12 में बिहार के संदर्भ में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 971 रुपये व शहरी क्षेत्रों के लिए 1229 रुपये प्रति माह आय की सीमा तय की गई है। यह राशि वर्ष 2022-23 में बढ़ कर क्रमश: 1724 व 2277 रुपये हो गई है।

यूपी की बात करें तो वर्ष 2011-12 से वर्ष 2022-23 के दौरान ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के लिए आय की सीमा 890 रुपये से 1622 रुपये व 1330 से 2429 रुपये तय की गई है।

पंजाब के लिए यह राशि 1127 से 2048 व 1479 से 2622 रुपये तय की गई है। आकलन रिपोर्ट में एक उल्लेखनीय तथ्य यह सामने आया है कि कई राज्यों में शहरी क्षेत्रों में गरीबी का स्तर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक बना हुआ है।

उदाहरण के लिए, बिहार में शहरी गरीबी 9.1 फीसद, मध्य प्रदेश में 11.6 फीसद, ओडिशा में 10.2 फीसद व उत्तर प्रदेश में 9.9 फीसद जबकि इन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में यह क्रमश: 5.9 फीसद, 9.6 फीसद, 8.6 फीसद व 5.7 फीसद है।

पारंपरिक तौर पर शहरी गरीबी से निपटना ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती है क्योकि इसके आवास, स्वास्थ्य सेवाओं और कौशल विकास पर अधिक ध्यान देना पड़ता है।

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