केकसी पुत्र विधर्मी रावण

केकसी पुत्र विधर्मी रावण

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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ऐसी मान्यता है कि विष्णु के द्वारपाल जय – विजय को श्रापवश तीन बार क्रमशः हिरण्यकशिपु – हिरण्याक्ष, रावण – कुंभकर्ण तथा शिशुपाल-दंतवकाम के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा।

प्रस्तुत आख्यान रावण से संबंधित है । सोने की लंका के राजा रावण को अपने दस सिरों के कारण दशग्रीवा और दस मुखों के कारण दशानन के नाम से भी जाना जाता है। रावण के पिता का नाम विश्रवा था,जो कि महर्षि पुलस्त्य के पुत्र थे। रावण की माता का नाम कैकसी था और वह राक्षस कुल से थी। इस प्रकार रावण ब्राह्मण पिता और राक्षसी माता की संतान था। शूर्पणखा रावण की बहन और कुंभकर्ण तथा विभीषण उसके दो भाइयों के अतिरिक्त एक तीसरा भाई खर भी था,जिसका सेनापति दूषण था।

यह उल्लेखनीय है कि रावण के पिता विश्रवा ने केकसी को अपनाने के पहले भरद्वाज की पुत्री देववर्णिनी से भी विवाह किया था, जिससे वैश्रवण नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। वैश्रवण ने तपस्या करके ब्रह्मा से चतुर्थ लोकपाल(धनेश) का पद और पुष्पक भी प्राप्त किया था। कैकसी ने रावण को प्रेरित किया कि तुम भी अपने भाई विश्रवण की भांति जुट जाओ। तब मां की प्रेरणा से रावण अपने भाइयों के साथ गोकर्ण में तपस्या करने लगा।

रावण ने अपना एक एक सिर काट कर अग्नि को समर्पित किया,वह अपना दसवां सिर भी काटने वाला था कि ब्रह्मा उससे संतुष्ट होकर वर देने के उद्देश्य से प्रकट हुए।रावण ने पहले अपने लिए अमरत्व मांगा परन्तु ब्रह्मा के अस्वीकार करने पर उसने यह वर मांग लिया कि मैं सुपर्ण ,नाग,यक्ष,दैत्य, दानव,राक्षस और देवताओं द्वारा अवध्य हो जाऊं।

परन्तु ब्रह्मा ने रावण को यह कह कर वरदान दिया था कि वानर और नर को छोड़ कर कोई भी तुम्हारा वध नहीं कर पाएगा। इसके अतिरिक्त ब्रह्मा ने उसके नौ सिर लौटा दिए और उसे कामरूपी होने का वर प्रदान किया। विभीषण ने धार्मिकता का वर मांग लिया और ब्रह्मा ने उसे अमरत्व भी प्रदान कर दिया। कुंभकर्ण ने सरस्वती की प्रेरणा से निद्रा मांग ली। इस पर रावण ने आपत्ति जताई।

तब ब्रह्मा ने कुंभकर्ण को छह महीने की निद्रा और एक दिन का जागरण का वरदान प्रदान कर कहा कि एक दिन के जागरण वाले दिन कुंभकर्ण का बल और भक्षण दोनों अद्भुत होंगे लेकिन यदि कच्ची नींद से जगाया जाएगा तो वह निश्चित ही मर जाएगा।(नोट: यह उल्लेखनीय है कि प्राचीनकाल से रावण को शिवभक्त माना गया है,इसलिए अनेक रचनाओं में यह दर्शाया गया है कि रावण ब्रह्मा के स्थान पर शिव से वरदान प्राप्त करता है।)

वैसे तो वर प्राप्ति के पहले से रावण लोगों को सताया करता था लेकिन वर प्राप्ति के बाद तो उसके अत्याचारों और भी बढ़ गए। लंका पर अधिकार प्राप्त करने के बाद तो वह देव ऋषियों,यक्ष और गंधर्वों का वध करके उनके उद्यानों को नष्ट करने लगा। जब विश्रवण को इस बात की जानकारी मिली तो उसने अपना दूत भेज कर रावण को समझाने का प्रयास किया लेकिन इससे रावण क्रुद्ध हो गया और उसने उस दूत का वध कर दिया तथा विश्रवण के पास कैलाश पहुंच कर उसे द्वन्द्वयुद्ध में परास्त कर तथा उससे पुष्पक विमान हथिया कर लंका लौट गया।

ब्रह्मा के वरदान के कारण रावण को केवल वानर और नर को छोड़ कर कोई और नहीं मार सकता था। इसी कारण भगवान विष्णु को राम के रूप में अवतार लेना पड़ा। यह भी उल्लेखनीय है कि ब्रह्मा ने इस बारे में रावण को सचेत करने के ध्येय से उसे दर्शन देकर यह बताया था कि दशरथ और कौशल नरेश की पुत्री कौशल्या का शीघ्र विवाह होने वाला है, इन दोनों का पुत्र ही तुम्हारा वध करेगा।

इसके बाद रावण ने कौशल्या का हरण कर लिया और उसे एक पेटिका में बंद कर द्वीप में तिमिंगल नामक भयंकर मत्स्य के पहरे में छोड़ दिया। बाद में तिमिंगल और अन्य मत्स्यों के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ। उधर दशरथ और सुमंत्र जैसे कैसे उस द्वीप में पहुंच जाते हैं और मौका पा कर पेटिका को खोल कर कौशल्या को मुक्त कर लेते हैं।

इसके बाद दशरथ और कौशल्या परस्पर गंधर्व विवाह कर लेते हैं। उधर रावण अहंकार और मद में चूर हो कर ब्रह्मा के समक्ष डींग हांकते हुए उन्हें सूचित करता है कि मैंने दशरथ और कौशल्या के विवाह को एक युक्ति द्वारा असंभव बना दिया है। रावण की बात सुन ब्रह्मा जी हंसते हैं और कहते हैं कि उन दोनों का विवाह तो हो चुका है,तेरी युक्ति विफल रही, अब तू सावधान हो जा और अपनी फिक्र कर।

(आख्यान का स्रोत : फादर कामिल बुल्के लिखित रामकथा के अनुच्छेद ६४४,६४७,६४८,६४९,६५१और ३३७)

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