राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 पूरे हो रहे हैं। विजयदशमी के दिन संघ 100 वर्षों की यात्रा पूरी कर 101वें वर्ष में प्रवेश कर जाएगा।

1925 से 2025 तक की संघ की यात्रा।

1925: डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर को की स्थापना की घोषणा।

1926: 17 अप्रैल को संगठन को अपना नाम ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ मिला।

1926: 28 मई को नागपुर के मोहितेवाड़ा मैदान में पहली नित्य शाखा शुरू हुई।

1927: मई में ओटीसी नाम से पहला विशेष प्रशिक्षण शिविर शुरू हुआ।

1928: मार्च में पहला दीक्षा समारोह ‘प्रतिज्ञा’ आयोजित किया गया।

1929: नवंबर में डा. हेडगेवार को सरसंघचालक नियुक्त किया गया।

1930: कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की।

हेडगेवार ने सभी शाखाओं को 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निर्देश दिया।

हेडगेवार ने कई स्वयंसेवकों के साथ जंगल सत्याग्रह में भाग लिया और गिरफ्तार हुए।

खाकी टोपी की जगह ‘गणवेश’ के हिस्से के रूप में काली टोपी को शामिल किया गया।

1940: ब्रिटिश सरकार ने संघ की ‘गणवेश’ और रूट मार्च पर प्रतिबंध लगाया। 21 जून को हेडगेवार का निधन।

माधव सदाशिव गोलवलकर दूसरे सरसंघचालक बने।

1947: केन्या में संघ की स्थापना। ‘आर्गनाइजर’ और ‘पांचजन्य’ पत्रिकाएं प्रकाशित की गईं।

1948: महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया।

माधव सदाशिव गोलवलकर और हजारों स्वयंसेवकों को गिरफ्तार किया गया।

1949: 12 जुलाई, 1949 को प्रतिबंध हटा।

संघ का संविधान तैयार हुआ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की स्थापना की गई।

1950: अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की पहली बैठक मार्च में हुई।

1952: गोहत्या पर प्रतिबंध की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी गोरक्षा आंदोलन शुरू हुआ।

वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की।

1954: स्वयंसेवकों ने दादरा और नगर हवेली को पुर्तगाली नियंत्रण से मुक्त कराने में भाग लिया।

1955: भारतीय मजदूर संघ की स्थापना हुई।

1963: 3,000 स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश व बैंड के साथ गणतंत्र दिवस परेड में भाग लिया।

1964: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की स्थापना हुई।

1973: पांच जून को माधव सदाशिव गोलवलकर का निधन।

छह जून को मधुकर दत्तात्रेय देवरस को सरसंघचालक नियुक्त किया गया।

1975: 25 जून को आपातकाल लागू। चार जुलाई को आरएसएस पर दूसरी बार प्रतिबंध। देवरस गिरफ्तार।

आपातकाल के विरुद्ध अखिल भारतीय लोक संघर्ष समिति की स्थापना।

1977: भारतीय जनसंघ का नवगठित जनता पार्टी में विलय। सरकार ने 22 मार्च को संघ पर से प्रतिबंध हटा लिया।

जयप्रकाश नारायण ने तीन नवंबर को पटना में संघ बैठक को संबोधित किया।

1978: दीन दयाल शोध संस्थान की स्थापना।

1980: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठन।1

1981: संस्कार भारती की स्थापना।

1992: बाबरी ढांचा के विध्वंस के बाद 10 दिसंबर को आरएसएस पर फिर प्रतिबंध।

1993: चार जून को प्रतिबंध हटा।अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद की स्थापना।

1994: राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) 15 मार्च को आरएसएस के चौथे सरसंघचालक नियुक्त।

2000: केएस सुदर्शन 11 मार्च को आरएसएस के पांचवें सरसंघचालक नियुक्त।

2009: डॉ. मोहन भागवत को सरसंघचालक नियुक्त।

सुरेश भैयाजी जोशी सरकार्यवाह चुने गए।

2016: स्वयंसेवकों की वर्दी में भूरे रंग की पतलून को शामिल किया।

2021: दत्तात्रेय होसबाले सरकार्यवाह चुने गए।

टैरिफ पर आरएसएस प्रमुख ने क्या कहा?

उन्होंने कहा, “अमेरिका द्वारा लागू की गई नई टैरिफ नीति उनके हितों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। लेकिन हर कोई इससे प्रभावित होता है। दुनिया एक-दूसरे पर निर्भरता के साथ काम करती है। कोई भी देश अलग-थलग नहीं रह सकता। यह निर्भरता मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए। हमें स्वदेशी पर भरोसा करने और आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, फिर भी हमें अपने सभी मित्र देशों के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए, जो हमारी इच्छा से और बिना किसी मजबूरी के होंगे।”

नेपाल हिंसा का भी किया जिक्र

आरएसएस प्रमुख ने नेपाल में हाल ही में हुई अशांति का भी जिक्र किया, जहां एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन के परिणामस्वरूप सत्ता परिवर्तन हुआ। उन्होंने इस हिमालयी देश में जेन-जेड के विरोध प्रदर्शन का जिक्र करते हुए कहा, “पड़ोस में अशांति कोई अच्छा संकेत नहीं है। श्रीलंका, बांग्लादेश और हाल ही में नेपाल में जनाक्रोश के हिंसक विस्फोट के कारण सत्ता परिवर्तन हमारे लिए चिंता का विषय है। भारत में ऐसी अशांति पैदा करने की चाह रखने वाली ताकतें हमारे देश के अंदर और बाहर दोनों जगह सक्रिय हैं।”

उन्होंने कहा, “लोकतांत्रिक आंदोलन बदलाव लाते हैं; हिंसक विद्रोह नहीं। वे उथल-पुथल मचाते हैं, लेकिन यथास्थिति बनी रहती है। इतिहास देखिए। कोई भी क्रांति अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाई। फ्रांस अपने राजा के खिलाफ उठा और नेपोलियन सम्राट बना। कई तथाकथित समाजवादी आंदोलन हुए और ये सभी समाजवादी देश अब पूंजीवादी हो गए हैं। अराजकता विदेशी ताकतों को अपना खेल खेलने का मौका देती है।”

‘मतभेदों को स्वीकार करना चाहिए’

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विविधता भारत की परंपरा है और हमें अपने मतभेदों को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने कहा, “कुछ मतभेद कलह का कारण बन सकते हैं। मतभेदों को कानून के दायरे में व्यक्त किया जाना चाहिए। समुदायों को उकसाना अस्वीकार्य है। प्रशासन को निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए, लेकिन युवाओं को भी सतर्क रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करना चाहिए। अराजकता के व्याकरण को रोकना होगा।” उन्होंने आगे कहा कि ‘हम’ बनाम ‘वे’ की मानसिकता अस्वीकार्य है।

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