तमिलनाडु की गलतियों का खामियाजा मध्य प्रदेश को भुगतना पड़ रहा है-मोहन यादव
53 साल पहले हुई थी 15 बच्चों की मौत
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विषाक्त कोल्ड्रिफ कफ सीरप के सेवन से बच्चों की मृत्यु के मामले में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गुरुवार को तमिलनाडु सरकार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि उनकी गलतियों का खामियाजा मध्य प्रदेश ने भुगता। तमिलनाडु में निर्मित दवा के उपयोग से बच्चों की मृत्यु हुई है। प्रारंभिक जांच में मैन्युफैक्चरिंग स्तर पर त्रुटियों का पता चला है।
हमारी पुलिस ने जिम्मेदार लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन दुर्भाग्यवश तमिलनाडु सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। प्रदेश सरकार मानवीय और प्रशासनिक दोनों आधार पर कार्रवाई जारी रखेगी। किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।
डॉ. यादव ने नागपुर के एम्स में भर्ती बच्चों और उनके परिजनों से मिलने के बाद मीडिया से चर्चा में यह बात कही। उन्होंने सवाल उठाया कि किसने इस कंपनी को ड्रग लाइसेंस दिया? छोटी जगह पर फैक्ट्री कैसे संचालित हो रही थी? बिना जांच के लाइसेंस कैसे रिन्यू किया गया?
उन्होंने कांग्रेस के नेताओं से आग्रह किया कि वे तमिलनाडु जाकर वहां की स्थिति का अवलोकन करें और सरकार के खिलाफ धरना दें। उधर, तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री एमए सुब्रमण्यम ने बताया कि श्रीसन फार्मास्युटिकल का लाइसेंस फिलहाल अस्थायी रूप से निलंबित किया गया है और विस्तृत जांच के बाद इसे स्थायी रूप से रद किया जाएगा।
50 वर्ष बाद भी नहीं चेता तमिलनाडु
कोल्ड्रिफ में मिले डायथिलीन ग्लाइकाल (डीईजी) की वजह से बच्चों की मौत का यह पहला मामला नहीं है। बीते वर्षों में सैकड़ों बच्चे डीईजी की वजह से जान गंवा चुके हैं। इसकी शुरुआत भी तमिलनाडु से ही हुई।
1972 में आया था पहला मामला
स्वास्थ्य विशेषज्ञ दिनेश ठाकुर और एडवोकेट प्रशांत रेड्डी की पुस्तक ‘द ट्रुथ पिल’ के अनुसार भारत में डीईजी की विषाक्तता से बच्चों की मौत का पहला मामला तमिलनाडु में ही वर्ष 1972 में दर्ज किया गया था। उस समय तमिलनाडु में 15 बच्चों की मृत्यु हुई थी। वर्ष 1986 में बंबई (अब मुंबई) में भी कई बच्चों की मौत डीईजी से हुई थी। वर्ष 2019- 20 में जम्मू-कश्मीर में 12 बच्चों की मृत्यु हुई थी।
मध्य प्रदेश में एक दर्जन से अधिक बच्चों की जान लेने वाले कफ सीरप त्रासदी के केंद्र में रही दवा कंपनी श्रीसन फार्मा बिना परीक्षण के कफ सिरप की आपूर्ति करती पाई गई।
कंपनी के सभी उत्पादों पर लगाया प्रतिबंध
सूत्रों ने बताया कि जांच में कंपनी के तमिलनाडु संयंत्र में 364 उल्लंघन सामने आए, जिनमें 38 गंभीर उल्लंघन थे। एक सूत्र ने बताया कि श्रीसन कंपनी के सभी उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसे 2011 में परिचालन का लाइसेंस मिला था।
लाइसेंस का 2016 में नवीनीकरण किया गया था। इसे तमिलनाडु एफडीए द्वारा दिया गया था और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) इसमें शामिल नहीं था, अर्थात केंद्र को इसकी जानकारी नहीं थी।
कफ सीरप से पहली मौत कब हुई?
अनुसंधान से जुड़े एक डॉक्टर के अनुसार, स्वास्थ्य विशेषज्ञ दिनेश ठाकुर और एडवोकेट प्रशांत रेड्डी की पुस्तक ‘द ट्रुथ पिल’ में लिखा है कि भारत में डीईजी के जहरीले दुष्प्रभाव का पहला मामला तमिलनाडु में ही वर्ष 1972 में दर्ज किया गया था, जब वहां 15 बच्चों की मौतें हुई थी। इसमें यह भी लिखा है कि डीईजी के दुष्प्रभाव का निदान करना बेहद कठिन है। वर्ष 2019-20 में जम्मू कश्मीर में ही इससे 12 बच्चों की मौतें हुई थीं। इन बच्चों की उम्र भी पांच वर्ष से कम थी। अब पांच वर्ष बाद मध्य प्रदेश में वही घटना घटी है, लेकिन इसके समाधान के बजाय चारों तरफ सियासी दांव-पेच के घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं।
आग लगने पर कुआं खोदने जैसी कहावत को चरितार्थ करते हुए सरकारी तंत्र सक्रिय हुआ है, लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद यह बताने के लिए कोई तैयार नहीं है कि क्या इन बच्चों की मौत के लिए एक डॉक्टर ही जिम्मेदार है। जब 50 वर्षों से इस दवा ने कई बच्चों को मौत की नींद सुलाया तो फिर आज वही दवा मध्य प्रदेश में कैसे बिक रही है।
खाद्य एवं औषधि नियंत्रण विभाग क्या प्रदेश में सो रहा था। जब 4 सितंबर को पहली मौत हुई, उसके बाद एक माह तक छिंदवाड़ा के कलेक्टर क्या कर रहे थे। वह लगातार इससे इनकार करते रहे कि मौत की वजह सीरप हो सकती है। लापरवाही की कड़ी यहीं से शुरू हुई थी।
केंद्र सरकार का काम भी केवल एडवाइजरी जारी करना ही बचा है, उसे क्रियान्वित कौन कराएगा, इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता है। जब 50 वर्ष पहले से डीईजी बच्चों की जान की दुश्मन बना हुआ है तो फिर बाजार में बिक कैसे रहा है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। ड्रग कंट्रोलर के पद पर पहले सीनियर आईएएस को पदस्थ किया जाता है,
माता-पिता अपने बच्चों को खो चुके हैं और सरकार सफाई देने में व्यस्त है। वैसे मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट को भी यह देखना चाहिए कि केंद्र सरकार ने बच्चों की मौतों के पहले दिन सीरप की गुणवत्ता को सही करार दे दिया था, ऐसा क्यों। क्या इसके पीछे कोई षड्यंत्र था।