कभी ऐसे नेता भी बिहार में हुआ करते थे- सुरेंद्र किशोर
डा.श्रीकृष्ण सिंह के जन्म दिन पर विशेष
21 अक्तूबर 1887–31 जनवरी 1961
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

डा.श्रीकृष्ण सिंह के शासन काल में चर्चित अंग्रेजी दैनिक ‘सर्चलाइट’ के संपादक एम.एस.एम.शर्मा छद्म नाम से पहले पेज पर एक बहुत ही तीखा काॅलम लिखा करते थे। उसमें मुख्य मंत्री के खिलाफ कभी-कभी आपत्तिजनक बातें रहती थीं।
मुख्य मंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंह के एक खास समर्थक नन्द किशोर सिंह ने श्रीबाबू से कहा कि ‘‘आप उस अखबार के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं करते ? आपके खिलाफ अखबार इतनी गंदी-गंदी बातें लिखता है।फिर भी आप उसे सहन करते हैं।’’
इस पर मुख्य मंत्री ने कहा कि ‘‘मैंने उस अखबार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर दी है।’’ यह पूछने पर कि आपने क्या कार्रवाई की है ? श्रीबाबू ने कहा कि मैंने सर्चलाइट पढ़ना बंद कर दिया है।समर्थक उदास होकर उनके पास से चले गए।
श्रीबाबू एक विरल व्यक्तित्व
चम्पारण के कुछ कांग्रेसी नेता सन 1957 में श्रीबाबू से मिले।उनसे कहा कि आप अपने पुत्र शिवशंकर सिंह को विधान सभा चुनाव लड़ने की अनुमति दीजिए। श्रीबाबू ने कहा कि मेरी अनुमति है। किंतु तब मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। क्योंकि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को चुनाव लड़ना चाहिए। शिवशंकर सिंह श्रीबाबू के निधन के बाद ही विधायक बने।बाद के वर्षों में कर्पूरी ठाकुर ने भी इसी तरह की बात कही थी जब उनके दल ने सर्वसम्मत से आग्रह किया कि आप रामनाथ ठाकुर को चुनाव लड़ने की अनुमति दीजिए।
धन संग्रह में रूचि नहीं
सन 1961 में डा.श्रीकृष्ण सिंह के निधन के 12 वें दिन राज्यपाल की उपस्थिति में उनकी निजी तिजोरी खोली गयी थी।
तिजोरी में कुल 24 हजार 500 रुपए मिले। वे रुपए चार लिफाफों में रखे गए थे। एक लिफाफे में रखे 20 हजार रुपए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लिए थे।दूसरे लिफाफे में तीन हजार रुपए थे मुनीमी साहब (बिहार सरकार में मंत्री थे।)की बेटी की शादी के लिए थे।
तीसरे लिफाफे में एक हजार रुपए थे जो महेश बाबू (बिहार सरकार में मंत्री थे।)की छोटी कन्या के लिए थे।
एक लिफाफे में 500 रुपए श्रीबाबू के विश्वस्त नौकर के लिए थे।श्रीबाबू ने अपनी कोई निजी संपत्ति नहीं खड़ी की।
जातिवाद से दूर
श्रीबाबू के मुख्य मंत्रित्व काल में आई.सी.एस.अफसर एल.पी.सिंह लंबे समय तक राज्य सरकार के मुख्य सचिव रहे थे।
एल.पी.सिंह राजपूत थे। श्रीबाबू के बाॅडी गार्ड भी राजपूत ही थे। उनके निजी सचिव रामचंद्र सिंहा कायस्थ थे।श्रीबाबू के कार्यकाल में मुख्य मंत्री सचिवालय में कोई भूमिहार अफसर या सहायक प्रतिनियुक्त नहीं था।हां,श्रीबाबू के कुछ स्वजातीय नेताओं पर जातिवाद का आरोप जरूर लगता था,किंतु खुद मुख्य मंत्री पर नहीं। मुख्य मंत्री वैसे थे ही नहीं ,ऐसा उनके समकालीन लोगों ने लिखा हैं।
प्रशासन से संबंध
सन 1948 से 1956 तक बिहार के मुख्य सचिव रहे एल.पी.सिंह ने श्रीबाबू की प्रशासनिक दक्षता व कार्यनीति को याद करते हुए एक बार लिखा था कि‘‘श्रीबाबू अफसरों की अनुशासनहीनता के सख्त खिलाफ थे।एक बार एक एस.डी.ओ.ने अपने तबादले को कुछ महीने के लिए स्थगित कर देने का सरकार से आग्रह किया।उसने लिखा कि उसने अपनी बेटी की शादी तय कर दी है।शादी का सारा प्रबंध वहीं किया गया हैं।
यह आग्रह उस अफसर ने उचित आधिकारिक माध्यम से किया।
पर साथ -साथ उस अफसर ने एक प्रभावशाली विधायक के जरिए भी मुख्य मंत्री के यहां तबादला स्थगित करने के लिए पैरवी करवाई।उस समय इस आचार संहिता का पालन होता था कि कोई सरकारी सेवक विधायक -सांसद से पैरवी नहीं करवाएगा।’’एल.पी.सिंह के अनुसार ‘श्रीबाबू ने बेटी की शादी के कारण तबादला तो स्थगित कर देने का आदेश दे दिया,पर विधायक की पैरवी को अनुचित माना।मुख्य मंत्री ने आदेश दिया कि आचार संहिता के उलंघन के लिए उस अफसर के निंदन की टिप्पणी दर्ज कर दी जानी चाहिए।’
परिवार के प्रति रुख
एक व्यक्ति ने बहुत पहले इन पंक्तियों के लेखक को बताया था कि श्रीबाबू के परिवार के एक अत्यंत करीबी सदस्य ने जब पटना में अपना मकान बनवाया तो मुख्य मंत्री ‘घर भोज’ में भी नहीं गये।श्रीबाबू का कहना था कि मुझे इस बात पर शक है कि उसने अपनी वास्तविक निजी कमाई से ही वह घर बनवाया है।
मतदाताओं से विशेष रिश्ता
डा.श्रीकृष्ण सिंह अपने विधान सभा चुनाव क्षेत्र में कभी अपने लिए वोट मांगने नहीं जाते थे।फिर वे कभी चुनाव नहीं हारे। वे आम दिनों मंे अपने चुनाव क्षेत्र में जरूर जाते थे। लोगों से उनका संपर्क और संबंध जीवंत तथा अनौपचारिक था। वे सन 1952 में मुंगेर जिले के खड़ग पुर क्षेत्र से विधान सभा के लिए चुने गये थे। खड़गपुर राजपूत वर्चस्व वाला क्षेत्र माना जाता था। पर,भूमिहार परिवार से आने वाले श्रीबाबू को इस कारण चुनाव जीतने में कोई कठिनाई नहीं हुई। वह जमाना भी कुछ और था।श्रीबाबू वहां के राजपूत परिवारों से भी आजादी के आंदोलन के दिनों में काफी घुले-मिले थे।एक कहावत है कि ‘‘ गलती करना मानव का स्वभाव है।’’
संभव है कि श्रीबाबू ने भी अपने जीवनकाल में कुछ गलतियां की होंगी।
पर, जितनी अधिक खूबियां ऊपर मैंने गिर्नाइं,उनमें से कोई दो गुण भी आज के जिस जीवित व सत्ताधारी नेता में है,उसकी हमें सराहना करनी चाहिए।जैसे, नीतीश कुमार पैसे और परिवारवाद से दूर हैं।अभी तो लग रहा है कि कुछ ही अपवादों को छोड़ कर देश-प्रदेश की पूरी राजनीति रसातल की ओर जा रही है।
लगता है कि पूरे कुएं में भांग पड़ चुकी है !बिहार विधान सभा के मौजूदा चुनाव में अधिकतर छोटे -बड़े नेताओं के ‘आचरण’ को देख कर लगता है कि नयी पीढ़ी को हमारे राज्य के महान नेताओं डा.राजेंद्र प्रसाद,डा.अनुग्रह नारायण सिंह,डा.श्रीकृष्ण सिंह,कर्पूरी ठाकुर,सदृश्य नेताओं की जीवनी पढ़नी चाहिए।शायद उनसे प्रेरित होकर नई पीढ़ी ही कभी देश-प्रदेश में स्वच्छ राजनीति की स्थापना के लिए काम करेगी !!


