मानवता ने कभी जीने की खुशी नहीं छोड़ी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कल्पना कीजिए कि आपका जन्म 1900 में हुआ है।
जब आप 14 वर्ष के होते हैं, पहला विश्व युद्ध शुरू होता है
और 18 साल की उम्र तक आते-आते यह समाप्त होता है—
इसमें 2 करोड़ 20 लाख लोग मारे जाते हैं।
इसके तुरंत बाद एक वैश्विक महामारी फैलती है—
“स्पैनिश फ़्लू”,
जो 5 करोड़ लोगों की जान ले लेता है।
आप किसी तरह बच जाते हैं।
अब आप 20 साल के हैं।
फिर, 29 साल की उम्र में,
आप एक वैश्विक आर्थिक संकट का सामना करते हैं—
जो न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के गिरने से शुरू हुआ था।
इससे महँगाई, बेरोज़गारी और भुखमरी फैलती है।
33 साल की उम्र में नाज़ी सत्ता में आते हैं।
जब आप 39 साल के होते हैं,
दूसरा विश्व युद्ध शुरू होता है,
और 45 की उम्र तक आते-आते खत्म होता है।
होलोकॉस्ट में 60 लाख यहूदी मारे जाते हैं।
कुल मिलाकर 6 करोड़ से ज़्यादा मानव जीवन समाप्त हो जाते हैं।
जब आप 52 साल के होते हैं,
कोरियाई युद्ध शुरू होता है।
और जब आप 64 साल के होते हैं,
वियतनाम युद्ध शुरू होता है,
जो आपकी 75 वर्ष की उम्र में जाकर समाप्त होता है।
1985 में जन्मा एक लड़का सोचता है कि उसके दादा-दादी को क्या पता कि जीवन कितना कठिन है,
लेकिन उन्होंने कई युद्ध और भयानक संकट झेले हैं—
और फिर भी जीवित रहे।
2000 में जन्मा लड़का,
जो अब 25 साल का है,
यह सोचकर परेशान हो जाता है कि दुनिया खत्म हो रही है
जब उसका अमेज़न पार्सल तीन दिन से ज़्यादा देर में पहुँचता है
या फेसबुक-इंस्टाग्राम पर फोटो को 15 “लाइक्स” नहीं मिलते।
2025 में, हममें से ज़्यादातर लोग आराम से रह रहे हैं।
हमारे पास घर बैठे मनोरंजन के अनेकों साधन हैं।
अक्सर हमारे पास जरूरत से ज़्यादा चीजें होती हैं।
फिर भी लोग हर बात पर शिकायत करते रहते हैं।
जबकि उनके पास—
बिजली है, फोन है, खाना है, गर्म पानी है, और सिर पर छत है।
ये सब पहले कभी उपलब्ध नहीं थे।
फिर भी—
मानवता ने इससे कहीं ज़्यादा भयानक परिस्थितियों का सामना किया है
और कभी जीने की खुशी नहीं छोड़ी।


