सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर फैसला सुनाया

सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर फैसला सुनाया

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

WhatsApp Image 2025-08-14 at 5.25.09 PM
previous arrow
next arrow
WhatsApp Image 2025-08-14 at 5.25.09 PM
00
previous arrow
next arrow

सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर अपना फैसला सुनाया। इसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने पूछा था कि क्या कोई संवैधानिक अदालत राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय कर सकती है।

दरअसल, भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के अंतर्गत प्रेसिडेंशियल रेफरेंस तय किया गया है। यह एक प्रकार की विशेष प्रक्रिया होती है। इसके तहत राष्ट्रपति देश के सर्वोच्च न्यायालय से किसी कानून या किसी भी संवैधानिक मुद्दे पर सलाह मांगने का अधिकार रखते हैं।

प्रेसिडेंशियल रेफरेंस क्या है?

आसान भाषा में समझें, तो जब सरकार को किसी कानून मुद्दे, जनहित से जुड़े किसी बड़े सवाल या राज्यों और केंद्र के बीच किसी विवाद को लेकर कोई भी संदेह होता है, तो वह प्रेसिडेंसियल रेफरेंस का सहारा लेती है। इसका सीधा मतलब है कि वैसे मामले को सुप्रीम कोर्ट भेजा जाता है, जहां उस पर विचार किया जाता है और फिर कोर्ट अपनी राय राष्ट्रपति को भेज देता है।

चूंकि सरकार संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के नाम पर काम करती है, ऐसे में मामला पहले राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। यहां से राष्ट्रपति हस्ताक्षर और मुहर के साथ सवालों को सुप्रीम कोर्ट के पास विचार लिए भेज देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को ही प्रेसिडेंसियल रेफरेंस कहा जाता है।

क्या है अनुच्छेद 143?

भारत के संविधान का अनुच्छेद 143 कहता है कि राष्ट्रपति के पास यह अधिकार है कि अगर कोई ऐसा सवाल है, जो देश के लिए अहम हो; तथा वह कानून से जुड़ा हो, तो वह सुप्रीम कोर्ट से राय मांग सकता है। इस पूरी प्रक्रिया को ही प्रेसिडेंसियल रेफरेंस कहा जाता है।

 संविधान का अनुच्छेद 143(2) यह अधिकार देता है कि भारत के राष्ट्रपति कुछ ऐसे विवादों को भी सुप्रीम कोर्ट के पास राय के लिए भेज सकते हैं, जो अनुच्छेद 131 के प्रावधान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के मूल क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं।

तमिलनाडु राज्यपाल विवाद से आया प्रेसिडेंसियल रेफरेंस का मुद्दा

गौरतलब है कि तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल आरएन रवि से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल अप्रैल के महीने में अहम फैसला सुनाया। अपने निर्णय में न्यायालय ने सदन से पारित बिलों पर मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों को तीन महीने की अधिकतम अवधि निर्धारित की थी।

इस फैसले में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति महादेवन की पीठ ने कहा था कि जब राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को उस तारीख से 3 महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।

राष्ट्रपति ने फैसले पर जताई थी चिंता

इसके बाद राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन मानते हुए चिंता जताई और सर्वोच्च न्यायालय से 14 सवालों पर सलाह भी मांगी कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करते हुए विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोक सकते हैं।

राष्ट्रपति के 14 सवाल क्या हैं?

टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से प्रेसिडेंशियल रेफरेंस का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे गए हैं।

  1. जब राज्यपाल के पास कोई विधेयक संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत हस्ताक्षर के लिए आता है, तो उनके पास कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं?
  2. राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह मामना आवश्यक है?
  3. संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की ओर से लिए गए निर्णयों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है?
  4. संविधान का अनुच्छेद 361 राज्यपाल के अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की कोर्ट की एस जांच पर पूरी तरह रोक लगाता है?
  5. अगर संविधान में राज्यपाल के फैसले लेने का समय और तरीका तय नहीं किया गया है, तो क्या अदालत अपने आदेश से समय सीमा और तरीका तय कर सकती है?
  6. क्या राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 201 के तहत लिए गए फैसलों (जो राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों से जुड़े होते हैं) की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है?
  7. न्यायालय अपने आदेशों से राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 201 के तहत निर्णय लेने की समय सीमा और तरीका तय कर सकती है?
  8. जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को मंजूरी लेने के लिए भेजा जाता है, तो क्या राष्ट्रपति को उस पर फैसला लेने से पहले सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी होती है?
  9. राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए निर्णयों की समीक्षा उस समय की जा सकती है जब विधेयक अभी कानून नहीं बना हो? क्या न्यायालय किसी विधेयक की सामग्री पर उसके कानून बनने से पहले विचार कर सकती है?
  10. संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश से राष्ट्रपति या राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों की जगह ले सकता है?
  11. राज्य विधानसभा द्वारा पारित कोई विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के बिना कानून माना जा सकता है?
  12. क्या यह अनिवार्य नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ यह जांच करे कि कोई मामला संविधान की व्याख्या से जुड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है और उस कम से कम पांच जजों की पीठ को भेजा जाए। जैसा की संविधान के अनुच्छेद 145 (3) में कहा गया है?
  13. क्या अनुच्छेद 142 सिर्फ प्रक्रिया संबंधी मामलों तक सीमित है या सुप्रीम कोर्ट ऐसे आदेश भी दे सकता है जो संविधान के मौजूदा प्रावधानों (सामग्री या प्रक्रिया दोनों) के खिलाफ हों?
  14. सर्वोच्च न्यायालय केंद्र और राज्यों के बीच विवाद को अनुच्छेद 131 के अंतर्गत मूल वाद के अलावा किसी और तरीके से नहीं सुलझा सकता है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!