प्रेममय मन-मनसा से ही अहं व ईर्ष्या का क्षरण-तिरोहण’
आलेख – धनंजय मिश्र
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
आदमी चार कारणों से ही ज्यादा ‘गुस्सा’ करता है! जबकि सिर्फ एक ही कारण से ‘ईर्ष्या’ करता है! पहला-अहंकार के कारण! दूसरा-परिजनों या कोई अन्य के द्वारा शिष्टतापूर्ण और आवश्यकतानुसार कौशल-कुशलतापूर्ण एवं मनमुताबिक-कथनानुसार कार्य नहीं हो सकें! तीसरा-जब वह अपनी निजी समस्याओं-परेशानियों से अत्यधिक पीड़ित हो! चौथा-जबकि उसकी सही बातों को भी जब कोई नहीं मानें!
यद्यपि बेशक केवल अपने करीबियों एवं परिचितों की ‘बेहतरी-प्रगति’ को देखकर ही प्रायः इंसान अपने अंतस से उससे ही अक्सर ‘ईर्ष्या’ करते रहते हैं..! दरअसल, प्रायः यह सबको पता है कि हरहाल में ‘अंह एवं ईर्ष्या’ हमेशा ‘दीमक की भांति’ स्वयं के ‘दिलोदिमाग और स्व-शरीर’ का ही अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं! जो अंततः हमारे अनेक बीमारियों के भी ‘खास-सबब’ ही बनते हैं! अतः इन ‘द्वय-अवगुणों’ से वंचित रहने का ‘श्रेयस्कर-सूत्र’ यह हो सकता है कि हम अपने ‘मन-मनसा’ को सदैव ‘औरों’ हेतु भी ‘उदार एवं करूणामयी’ ही बनाते रहें!
क्योंकि, ये दोनों ‘सद्-गुण’ हमारे ‘मन-मस्तिष्क’ को ‘प्रेममय’ ही बनाते हैं! वस्तुत: सहृदय ‘सच्चे-प्रेम’ की यह ‘मूल-प्रकृति’ ही होती है कि वह सदैव हमारे ‘मन-मनसा’ से ‘अहंकार एवं ईर्ष्या’ को निरंतर ही क्षरण-तिरोहित करती रहती है..! जबकि सच यह है कि अक्सर एवं अत्यधिक ‘अहं-ईर्ष्या’ तब स्वयं में जनित होती रहती है!
वस्तुत: जब हम अपने करीबियों एवं परिचितों से ही हमेशा अपनी तुलना करने में ज्यादा मशगूल रहते हैं..! परंतु, अपनी सुशांतिपूर्ण सुजीवन हेतु यह भी सदा ही श्रेयस्कर है कि जो हमसे ‘अहंकार और ईर्ष्या’ करते हैं! जब जो भी जन ऐसा प्रतीत हों, तब तुरंत ही अपने सुविवेकपूर्ण सहृदय से उनसे बहुत ही ‘अपनी-अंतस’ दूरी बना लेनी चाहिए! क्योंकि,ऐसे दुर्जन सदैव हमारा अत्यधिक नुकसान होने की ही अपनी कुंठाग्रस्त मानसिकता रखते हैं!
यह भी पढ़े
सेवानिवृत्त पांच शिक्षकों के सम्मान में विदाई समारोह आयोजित
सिमरन ने राष्ट्रीय कराटा चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर बिहार को किया गौरवान्वित
यूपी की प्रमुख खबरें : पीएम मोदी ने लखनऊ में राष्ट्र प्रेरणा स्थल का किया लोकार्पण
सीवान पुलिस ने चार पहिया वाहन से शराब लाते एक तस्कर को रंगे हाथ किया रफ्तार


