अरावली पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय का क्या निर्णय है?

अरावली पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय का क्या निर्णय है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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  • सर्वोच्च न्यायालय ने खनन को विनियमित करने और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के उद्देश्य से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के अंतर्गत गठित एक समिति द्वारा प्रस्तावित अरावली पहाड़ियों एवं पर्वतमालाओं की एक समान, वैज्ञानिक परिभाषा को स्वीकार किया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने संरक्षित क्षेत्रों, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों, टाइगर रिज़र्व और आर्द्रभूमियों जैसे मुख्य/अस्पर्शनीय क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया। हालाँकि, परमाणु खनिजों (प्रथम अनुसूची का भाग-B), महत्त्वपूर्ण एवं रणनीतिक खनिजों (भाग-D) तथा खान एवं खनन (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 की सातवीं अनुसूची में सूचीबद्ध खनिजों के लिये  सीमित अपवाद की अनुमति दी गई है।
  • अरावली पहाड़ियाँ: किसी भी ऐसे स्थलरूप के रूप में परिभाषित की गई हैं जो आसपास के स्थानीय भू-भाग से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई तक उठता हो।
    • स्थानीय उच्चावच का निर्धारण उस स्थलरूप को घेरने वाली सबसे निचली समोच्च रेखा (Contour line) के आधार पर किया जाता है।
    • संरक्षण पूरे पहाड़ी तंत्र तक विस्तारित होगा, जिसमें सहायक ढालें और संबंधित स्थलरूप शामिल हैं, चाहे उनकी ऊँचाई कुछ भी हो।
  • अरावली पर्वतमालाएँ: दो या दो से अधिक ऐसी पहाड़ियों के समूह के रूप में परिभाषित की गई हैं, जो एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हों। इन पहाड़ियों के बीच का पूरा मध्यवर्ती क्षेत्र, जिसमें ढालें और छोटी पहाड़ियाँ भी शामिल हैं, पर्वतमाला का हिस्सा माना जाएगा।
    • इस परिभाषा का उद्देश्य अरावली परिदृश्य में खनन जैसी गतिविधियों के नियमन हेतु स्पष्टता और वस्तुनिष्ठता प्रदान करना था।
  • SC के निर्देश: न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि इस परिभाषा के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में नए खनन पट्टों के जारी करने पर अस्थायी रोक लगाई जाए, जब तक कि भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) द्वारा सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM) तैयार नहीं कर ली जाती।
    • इस योजना में खनन-निषिद्ध क्षेत्र, कड़े रूप से विनियमित खनन क्षेत्र, संवेदनशील आवास एवं वन्यजीव गलियारों की पहचान करना, संचयी पारिस्थितिक प्रभावों एवं वहन क्षमता का आकलन करना तथा पुनर्स्थापन और पुनर्वास उपायों का निर्धारण अनिवार्य होगा।
    • न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि पूर्ण या समग्र प्रतिबंध कई बार अवैध खनन को प्रोत्साहित कर देते हैं। इसी कारण उसने एक संतुलित और विवेकपूर्ण नीति अपनाई, जिसके तहत मौजूदा वैध खनन गतिविधियों को कड़े नियामक प्रावधानों के अंतर्गत सीमित रूप से जारी रखने, नए खनन कार्यों पर रोक लगाने तथा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को स्थायी संरक्षण प्रदान करने पर बल दिया गया।
    • अरावली शृंखला के प्रमुख तथ्य क्या हैं?

      • भूवैज्ञानिक उत्पत्ति और विकास: अरावली शृंखला विश्व की सबसे पुरानी पर्वत प्रणालियों में से एक और भारत की सबसे पुरानी पर्वत शृंखला है, जो लगभग 2,000 मिलियन वर्ष पूर्व प्री-कैम्ब्रियन युग में अस्तित्व में आई थी।
        • यह अरावली–दिल्ली ओरोजेनी के दौरान टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव के कारण बनी थी। वर्तमान अरावली एक बहुत बड़े प्रागैतिहासिक पर्वत प्रणाली के अत्यधिक क्षतिग्रस्त अवशेष हैं, जिन्हें मौसम और अपरदन के कारण लाखों वर्षों में कम कर दिया गया है।
        • माउंट आबू पर गुरु शिखर चोटी अरावली शृंखला की सबसे ऊँची चोटी है (1,722 मीटर)।
        • भौगोलिक विस्तार: यह गुजरात से दिल्ली तक (राजस्थान और हरियाणा होते हुए) 800 किमी से अधिक फैली हुई है।
      • जलवायु और पारिस्थितिक महत्त्व: अरावली थार रेगिस्तान के उत्तर-पश्चिमी भारत में फैलाव के खिलाफ एक प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करती है।
        • निर्वनीकरण और भूमि क्षरण ने कई अंतराल उत्पन्न किये हैं। जिससे रेगिस्तानी रेत उपजाऊ मैदानों की ओर बहती है और वायु प्रदूषण तथा धूल भरी ऑंधियों की समस्या बढ़ती है।
      • जल प्रणाली में योगदान: अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में स्थित, जहाँ वार्षिक वर्षा 500–700 मिमी होती है, अरावली शृंखला प्रमुख जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है और बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर के जल निकासी क्षेत्रों को अलग करती है।
        • जैव विविधता और वन्यजीव महत्त्व: अरावली परिदृश्य शुष्क पर्णपाती वन, घास के मैदान और आर्द्रभूमि का समर्थन करता है, जिसमें सहारा, प्रायद्वीपीय तथा ओरिएंटल जैव विविधता का अनोखा मिश्रण पाया जाता है।
          • यहाँ 22 वन्यजीव अभयारण्यों और तीन बाघ अभयारण्य हैं तथा यह बाघ, तेंदुआ, भारतीय भेड़िया, स्लॉथ बियर तथा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करता है।
        • कृषि, आजीविका और पशुपालन: अरावली क्षेत्र में कृषि वर्षा-निर्भर और जीविकोपार्जन-आधारित है, जिसमें बाज़रा, मक्का, गेहूँ, सरसों तथा दलहन उगाई जाती हैं। वहीं बड़े पैमाने पर पशुपालन और वन संसाधनों पर निर्भरता ग्रामीण आजीविकाओं के लिये पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को अत्यंत महत्त्वपूर्ण बनाती है।
        • आर्थिक और खनिज महत्त्व: अरावली क्षेत्र खनिजों में समृद्ध है, जिसमें 70 से अधिक वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान खनिज शामिल हैं, जैसे जिंक, सीसा, चाँदी, टंगस्टन, संगमरमर और ग्रेनाइट।
          • खनन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि के रूप में उभरा है, विशेषकर राजस्थान में, जो इस शृंखला का लगभग 80% हिस्सा रखता है।
        • औद्योगिक विकास और शहरी दबाव: अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण अरावली बेल्ट में गुरुग्राम, फरीदाबाद, जयपुर, अलवर और अजमेर जैसे प्रमुख औद्योगिक तथा शहरी केंद्र स्थित हैं।
          • यह IT और वस्त्र उद्योग से लेकर ऑटोमोबाइल, रसायन और इस्पात उद्योग तक का समर्थन करता है।
        • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व: अरावली शृंखला में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल जैसे चित्तौड़गढ़ और कुंभलगढ़ किले स्थित हैं।
          • यह पुष्कर, अजमेर शरीफ, माउंट आबू और रानकपुर जैसे प्रमुख धार्मिक केंद्रों का भी क्षेत्र है, जो इसे हिंदू, इस्लामी एवं जैन परंपराओं के लिये पवित्र बनाते हैं तथा इसकी सभ्यतागत महत्ता को मज़बूत करते हैं।
        • क्षरण और पर्यावरणीय गिरावट: दशकों के दौरान, अरावली शृंखला ने गंभीर निर्वनीकरण, खनन, शहरीकरण और चराई के दबाव का सामना किया है।
          • कई पहाड़ पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं, वन आवरण में तीव्र गिरावट आई है तथा वर्षा की अवधि काफी कम हो गई है।
          • इन परिवर्तनों ने मृदा क्षरण, भूमिगत जल स्त्रोतों को नुकसान, मरुस्थलीय अंतराल का विस्तार और वायु प्रदूषण की स्थिति को खराब कर दिया है, जो विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर को प्रभावित करता है।
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