पुस्तकों के समीक्षा की पोटली ‘अरथू अमित अति आखर थोरे’

पुस्तकों के समीक्षा की पोटली ‘अरथू अमित अति आखर थोरे’

राजेश ओझा की पुस्तक पर त्वरित प्रतिक्रिया

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पुस्तक लेखन समाज के जीवन्तता का प्रमाण है

✍🏻 राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

क्वाॅर की उमस और नवरात्रि का मौसम इस अवसर पर इन दिनों अवकाश है। परिवार में बड़ी मां के निधन से सारे मांगलिक कार्य 8 अक्टूबर तक स्थगित है। ऐसे में राजेश ओझा कृत पुस्तक ‘अरथू अमित अति आखर थोरे’ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रकाशक श्वेतवर्णा की अच्छी गलती के कारण यह पुस्तक मेरे पास पहुंच गई। यह किताब लखनऊ जानी थी परन्तु पता गलत अंकित होने के कारण मेरे पास आ गई।

रचनाकार राजेश ओझा की कृति ‘अरथू अमित अति आखर थोरे’ पुस्तक हम सभी को उपलब्ध हो गई है। किताब 52 अध्यायों में विभाजित होकर कुल 216 पृष्ठों में संकलित है। श्वेतवर्णा प्रकाशन नोएडा उत्तर प्रदेश ने इसे प्रकाशित किया है। पुस्तक का मूल्य 349 रखा गया है।

मूल रूप से उत्तर प्रदेश में गोन्डा जनपद के मुकुलपुर ग्राम के रहवासी पेशे से अधिवक्ता राजेश ओझा पुस्तक में अपनी बात शीर्षक से उद्धृत करते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपनी चेतना क्षमता के अनुरूप किसी भी तत्व पर अपनी राय रखता है, यह उसकी दृष्टि होती है….. उसकी राय होती है यही मैं भी किया।”

लेखक के पास कई प्रकार की पुस्तक समय-समय पर पहुंचती रहती है। वह उसे बड़े तालीनता से पढ़ते हैं मनन करते हैं चिंतन करते हैं और अपनी समझ से त्वरित प्रतिक्रिया रखते हैं, उसका ही एक गुलदस्ता है यह पुस्तक। और अंततः लेखक राजेश ओझा जी का सारगर्भित कथन “ईमानदार समीक्षाएं साहित्यिक प्रेम पैदा करती हैं” अपने आप में अनूठा है।


बहरहाल पुस्तक सारगर्भित है। इसके 52 अध्यायों में से तीन अध्याय की पुस्तक एवं उसके लेखक से मैं पूर्णतः परिचित हूं।
इसमें आठवीं अध्याय ‘पूर्ण पथ पर एक दृष्टि’ के लेखक बिहार के गोपालगंज में कवतरही ग्राम निवासी सर्वेश तिवारी श्रीमुख है, जो मेरे मित्र हैं। उनके फेसबुक पर समय-समय पर टिप्पणी, तंज अद्भुत होती है।

वहीं 25 वां अध्याय ‘लोक जीवन का प्रतिनिधि साहित्य है: रुकना नहीं राधिका’ के लेखक बिहार में सीवान‌ जिले के बड़हरिया रहवासी शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी रमेश चंद्रा हैं। यह पुस्तक कहानी संग्रह ‘जेन-जी’ को सदैव प्रेरणा देती रहेगी, पुस्तक ‘रुकना नहीं राधिका’ संकल्पों की दृढ़ता और अवसर की कुंजी है। यह कथा संग्रह अपने आप में व्यक्ति को तर्कशील बनाती है।

जबकि 47वें अध्याय में उद्धृत कृति मेरे मित्र व बड़े भाई मनोज कुमार वर्मा की अनमोल कृति ‘अठन्नी एक प्रेम कथा से है। अध्याय ‘एक उदास लेकिन गुदगुदाती प्रेम कथा का जादुई प्रवाह है: अठन्नी एक प्रेम कथा’ में उक्त पुस्तक की समीक्षा अद्भुत है। इस कहानी में आपने उपकृत किया है की ‘प्रकृति ने हर व्यक्ति को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए देह की भाषा दी है।’बेबाक और बेलौस संवाद पुस्तक की जान है।

 

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