व्यवस्था की मारी एक अबला बेचारी 

व्यवस्था की मारी एक अबला बेचारी 

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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पिछले दिनों उड़ीसा में एक दिल दहलाने वाली घटना हुई। बीस वर्षीय सौम्या श्री विसी की चित्कार व्यवस्था और फाइलों में दब गई। समय की इस मार के आगे विवश होकर उसने अपने को आग के हवाले कर दिया। सौम्याश्री जैसी अनेकों बेटियां सिस्टम के आगे मजबूर होकर सरेंडर कर देती है या अपनी अस्मत को बचाने के लिए खुद मौत को गले लगा लेती है।

सौम्या श्री ने भी यही किया जब बीएड विभाग के (HOD) एचओडी ने छुटृटी परीक्षा के एवज में अस्मत की मांग किया। सौम्या श्री ने उसका विरोध किया। हर तरह से अनुनय-विनय किया मगर परिणाम ढांक के तीन पात।तब उसने शासन प्रशासन, राज्य से लेकर देश की सरकार से गुहार, राज्यपाल-राष्ट्रपति, मानवाधिकार आयोग -महिला आयोग तक ले गुहार लगाई परंतु सिस्टम और फाइलों में ही उसकी आवाज दबकर रह गई। अपनी लज्जा बचाने के लिए उसने मरना पसंद किया मगर झुकना नहीं।

सौम्या श्री अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की सदस्य थी। राज्य और केंद्र में या यूं कहें कि नीचे से लेकर उपर तक संघ की कथित अनुसांगिक इकाई भाजपा की सरकार है।सारे सिस्टम और प्रशासनिक व्यवस्था में कथित तौर पर संघी भरे हुए हैं फिर भी एक चिंगारी समा बनने से पहले ही बुझ गई। जीते जी किसी ने भी सुध लेना या समस्या के निवारण के लिए प्रयास नहीं किया।

जब वह मरणासन्न अवस्था में थी तो महामहिम राष्ट्रपति जी उसे देखने के लिए गई थी तब तक उसकी सांसें व्यवस्था से लड़ते-लड़ते थक चुकी थी।आज वह सिस्टम की बलि वेदी पर वह चढ़ चुकी थी। राज्य के मुखिया ने बीस लाख की राशि भेजकर अपनी भी पीढ थपथपा ली। वह तनलोलुप एच ओ डी सलाखों के पीछे है।
लेकिन आज भी वे अधुरे सवाल जबाव ढुंढ रहे हैं कि क्या इसी तरह सिस्टम की मारी के आगे बेटियां अपनी अस्मत बचाने के लिए जलती रहेगी?
-सांत्वना के दो पुष्प चढ़ाकर ये सरकारे अपनी अन्य जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेगी?

अगर यही घटना बंगाल या देश के दुसरे हिस्सों में घटित हुई होती तो क्या राजनीतिक शोर इतने ही जोर से सुनाई देते जितने उड़ीसा या बिहार के सिवान जिले में सुनाई दे रहें है?

कुछ इसी से मिलती जुलती घटना हमारे गृह जिले सिवान के हसनपुरा थाना क्षेत्र के करमासी गांव में भी हुई है। जिसमें कथित तौर पर शांतिप्रिय समाज के एक सोहदे ने गांव की एक पिछड़ी समाज की एक लड़की की लज्जा लुट ली।उस लड़की ने आत्मग्लानि और सामाजिक लज्जा के कारण आत्महत्या कर ली है।मगर स्थानीय प्रशासन चुप्पी साधे बैठा है। स्थानीय विधायक कर्णजीत सिंह ने जब पुलिस प्रशासन से घटना की निष्पक्ष जांच और गिरफ्तारी की मांग किया तो पुलिस प्रशासन में कुछ हलचल दिखाई दिया।

यहां के अन्य कथित सामाजिक संगठन, राजनीतिक दल और बुध्दिजीवी कान में तेल डालें सो रहे है।चुंकि वह लड़की पिछड़े समाज से आती है।उसकी कोई सामाजिक/राजनीतिक विषाद उस तरह की नहीं है कि उसके लिए बड़े मंचों से आवाज उठाई जा सके।इस वजह से ये लोग मौन साधना ही बेहतर समझ रहे है।ताकि दुसरे शांति प्रिय पक्ष का वोट हमें मिल जाएगा। ऐसा नहीं है कि स्थानीय स्तर पर इस घटनाक्रम को लेकर विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ है मगर वह नाकाफी है।

दोनों ही घटनाएं हमारे सिस्टम, कानून व्यवस्था और शासन प्रशासन की शैली पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है और चीख चीखकर यह कह रही है कि-
“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आंचल में दुध और आंखों में है पानी “- जयशंकर प्रसाद

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