पिछले पैंतीस वर्ष में बहुत कुछ बदला परन्तु पाक की नीति नहीं बदली,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत से तीन युद्ध हारने के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर हासिल करने के लिए आतंकवाद का सहारा लिया और भारत के खिलाफ अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ दिया। पिछले 35 वर्ष में बहुत कुछ बदला लेकिन पाकिस्तान की भारत को लेकर नीति नहीं बदली।
अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारों ने अलग-अलग समय पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के प्रयास किए। भारत को इसके बदले कभी कारगिल, तो कभी पठानकोट। हाल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद हर भारतीय की जुबान पर एक ही सवाल है कि इस पाकिस्तान का इलाज क्या है,
अल्लाह, आर्मी और चीन
पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन वास्तविक सत्ता चुनी हुई सरकार के पास नहीं रही है। कहा जाता है कि पाकिस्तान को अल्लाह, आर्मी और अमेरिका चलाते हैं। अमेरिका का पाकिस्तान पर वैसा प्रभाव नहीं रह गया है, जैसा एक दशक पहले हुआ करता था। एक हद तक अमेरिका की जगह चीन ने ली है। आज के लिहाज से यह कहना ज्यादा सही होगा कि अल्लाह, आर्मी और चीन पाकिस्तान को चला रहे हैं।
भारत को हजार घाव देने की रणनीति
1948 और 1965 युद्ध के बाद 1971 के युद्ध में शर्मनाक हार और देश के दो टुकड़े होने के बाद पाकिस्तान भारत को थाउजेंड कट यानी हजार घाव देने की रणनीति पर अमल शुरू किया। पाकिस्तान ने बीसवीं सदी के आठवें दशक में पंजाब में खालिस्तानी अलगाववाद को हवा दी और सदी के अंतिम दशक में राज्य की नीति के तौर पर कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू किया।
पूरे भारत को बनाया निशाना
तत्कालीन वैश्विक व्यवस्था भी उस समय पाकिस्तान के अनुकूल थी। सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका एकमात्र महाशक्ति था। उसी समय भारत कमजोर अर्थव्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। भारत की ओर से मजबूत जवाबी कार्रवाई न होने से पाकिस्तान का हौसला बढ़ा और उसने पूरे भारत
में आतंकी घटनाओं का अंजाम देना शुरू कर दिया। 1993 में मुंबई का बम धमाका, 2002 में संसद पर हमला और 2008 का 26/11 मुंबई हमला पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क की क्षमता दिखाता है।
सैन्य, आर्थिक, कूटनीतिक दबाव जरूरी
- भाषा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयो आतंकवाद का जवाब देने और उसे रोकने के लिए राजनयिक, आर्थिक, रणनीतिक और कानूनी जैसे कई विकल्प मौजूद हैं। सबसे पहले भारत को पाकिस्तान के प्रति वैश्विक स्तर पर “कूटनीतिक अलगाव” की नीति अपनानी चाहिए, जिससे पकिस्तान को अलग- थलग किया जा सके।
- इसके अंतर्गत द्विपक्षीय वार्ता को निलंबित करें सिंधु जल समझौते के साथ-साथ पूर्व में हुई महत्वपूर्ण संधियों को रद्द करना चाहिए जिससे पाकिस्तान के प्रति भारत के नरम रुख को अब पुनः परिभाषित करने का मौका मिलेगा तथा सात दशकों से चली आ रही जम्मू-कश्मीर समस्या का भी समाधान किया जा सकता है।
- आतंकवाद के खिलाफ भारत की चिंताओं के प्रति सहानुभूति रखने वाले देशों के साथ गठबंधन को मजबूत कर पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रायोजक देश घोषित करने के लिए भारत को वैश्विक समर्थन जुटाना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय राय को अपने पक्ष में करके भारत संयुक्त राष्ट्र, जी20 और एफएटीएफ (वित्तीय कार्रवाई कार्य बल) जैसे मंचों पर प्राक्सी आतंकवाद के लिए पाकिस्तान के कथित समर्थन को उजागर करने के लिए सहयोगियों के साथ काम कर सकता है तथा निरंतर या बढ़े हुए प्रतिबंधों और निगरानी के लिए दबाव भी डाल सकता है।
- आज भारत सैन्य रूप से काफी शक्तिशाली और आधुनिक राष्ट्र है। सैन्य और सुरक्षा विकल्प के तहत भारत को व्यापक स्तर पर कारवाई करते हुए गुलाम कश्मीर के साथ पाकिस्तान के अंदर मौजूदा आतंकी नेटवर्क और उनके बुनियादी ढांचे के खिलाफ लक्षित सैन्य कार्रवाई करनी चाहिए। हालांकि इससे दो परमाणु शक्ति संपन्न राज्यों के बीच तनाव बढ़ने का जोखिम है, परंतु भारत को ऐसे जोखिम भरे कदम लेने से पीछे नही हटना चाहिए।
- कानूनी और बहुपक्षीय कार्रवाई के लिए भारत को बहुपक्षीय एजेंसियों को अपने साथ शामिल करना चाहिए। इसके तहत पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी वित्तपोषण उपायों और अनुपालन की निरंतर एफएटीएफ से जांच के लिए दबाव डालना, आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ अपर्याप्त कार्रवाई के लिए पाकिस्तान को “ग्रे लिस्ट” में रखने के लिए एफएटीएफ (वित्तीय कार्रवाई कार्य बल) जैसे मंच पर वैश्विक दबाब बनाना शामिल है, जिससे पकिस्तान को वैश्विक आर्थिक सहयोग तथा मदद मिलनी मुश्किल होगी।
- पाकिस्तान को दी जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता को निलंबित या कम करने के लिए भारत को अपने वैश्विक भागीदारों के साथ काम करना चाहिए, जिसमे भारत पकिस्तान के साथ ना सिर्फ अपने द्विपक्षीय व्यापार को निलंबित करें बल्कि अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबन्ध भी लगवाना चाहिए। लंबे समय तक आर्थिक प्रतिबन्ध तथा वैश्विक आर्थिक अलगाव से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
- आतंकवाद से निपटना एक गंभीर और संवेदनशील मामला है। कूटनीतिक, रणनीतिक, आर्थिक तथा कानूनी माध्यमों के अलावा पकिस्तान को चलाने वाले तीन एम “मिलिट्री- मिलिटेंट- मुल्ला” गठजोड़ के लिए अकेले सैन्य या दंडात्मक कार्रवाई पर्याप्त नहीं होगी। इस आतंकी गठजोड़ को मजबूत करने वाले वैचारिक, सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारकों को भी सीमित करना होगा।
रणनीतिक विखंडन से ही सुधरेगा आतंकी देश
- पाकिस्तान इस समय बहुआयामी का सामना कर रहा है। आंतरिक असंतोष, आर्थिक पतन और घटती अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता के बीच वह एक खतरनाक और जानी-पहचानी रणनीति का सहारा लेता दिख रहा है। यह रणनीति है बाहरी खतरों का निर्माण और धार्मिक दरारों का दोहन।
- पहलगाम में हुआ आतंकी हमला पाकिस्तानी सेना का घरेलू स्तर पर मजबूत बनने का हताश प्रयास है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से भारत, इस नाटक को एक अलग संकल्प के साथ देख रहा है।
- कोर कमांडर के घर लूट, पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के दिल पर एक प्रतीकात्मक हमला था। यह पाकिस्तान की जनता के गुस्से और सेना के अधिकार के क्षरण को रेखांकित करता है। यह अभूतपूर्व घटना 1971 के ऐतिहासिक आघात को प्रतिध्वनित करती है, जहां पूर्वी पाकिस्तान में सेना की कठोर प्रतिक्रिया पाकिस्तान की टूटने का कारण बनी।
- वर्तमान में इमरान खान जैसे राजनीतिक विपक्षी नेताओं को नजरबंद करने से जनता में आक्रोश और बढ़ गया है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने आर्थिक संकट की वजह से पहले से कायम अनश्चितता में अस्थिरता की एक और परत जोड़ दी है। अंतरराष्ट्रीय बेलआउट के लिए हाथ पांव मारने के सरकार के प्रयास को बढ़ते संदेह के साथ देखा जा रहा है। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान कितनी गहराई तक आर्थिक दलदल में फंस चुका है।
- अफगानिस्तान के साथ पश्चिमी सीमा पर तालिबान और बलूचिस्तान में विद्रोह सुरक्षा खतरे इस चुनौती को और गंभीर बना रहे हैं। संकटों के इस संगम में पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। अब वह जो कदम उठाएगा, उससे उसका भविष्य तय होगा।
- पाकिस्तान के अशांत इतिहास और स्थायी अस्थिरता के कारण क्षेत्र के रणनीतिक दृष्टिकोण में एक साहसिक और निर्णायक बदलाव की आवश्यकता है। आकांक्षा अब केवल “स्थिर” पड़ोसी नहीं होनी चाहिए, बल्कि मौजूदा पाकिस्तानी राज्य के रणनीतिक विखंडन के माध्यम से क्षेत्रीय परिदृश्य को मौलिक रूप से नया आकार देना चाहिए।
- पाकिस्तान को पश्चिमी पंजाब के अपने जातीय केंद्र तक सीमित कर देना चाहिए। अन्य विशिष्ट जातीय संस्थाओं बाल्टिस्तान से लेकर सिंध और बलूचिस्तान को स्वतंत्र मातृभूमि के रूप में उभरने में मदद करनी चाहिए।
- इस रणनीतिक उद्देश्य के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसकी शुरुआत लक्षित सर्जिकल स्ट्राइक और प्रमुख आतंकी सरगनाओं को मिटा कर आतंकवाद के केंद्रों को बेअसर करने के लिए एक निर्णायक अभियान से होती है।
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