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दिल्ली में एक्साइज नीति में बदलाव से ‘आप’ ने बहुत कमाई की है,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

दिल्ली में एक्साइज नीति में बदलाव से ‘आप’ ने बहुत कमाई की है,कैसे?

दिल्ली में एक्साइज नीति में बदलाव से ‘आप’ ने बहुत कमाई की है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

रेवड़ी मामले में केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने कल्याणकारी राज्य के संवैधानिक प्रावधानों की दुहाई दी। वहीं दूसरी तरफ अनुच्छेद-47 में शराबबंदी के संवैधानिक निर्देशों को धता बताते हुए आप पार्टी ने दिल्ली को शराब की राजधानी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शराब पीने की न्यूनतम उम्र को 25 साल से 21 साल करने के बाद उसे 18 साल करने की कोशिश हुई, ड्राई-डे की संख्या को 23 से कम करके 3 दिन करने के साथ रिहायशी इलाकों में शराब की दुकानों का विस्तार किया गया।

ड्रग्स, तम्बाकू और शराब की आमदनी को बैड-मनी कहा जाता है। अन्ना के अनुयायियों ने युवाओं, महिलाओं और मजदूर वर्ग में शराब की सप्लाई बढ़ाकर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के चैम्पियन बनने का दावा किया। इस विरोधाभास को संविधान, जनकल्याण और नैतिकता के लिहाज से कैसे जायज माना जा सकता है? इस मामले में जेपी के शागिर्द नीतीश ने स्पष्ट रवैया अपनाते हुए कहा कि शराबबंदी से बिहार में महिलाओं की सुरक्षा के साथ अपराधों में कमी भी आई है।

एक्साइज नीति में अनियमितता के साथ भ्रष्टाचार होने का सच सामने आने में समय लगेगा। लेकिन इस विवाद के बाद आप पार्टी के दोहरे रवैए और ऑपरेशन लोटस के आरोपों से आने वाले चुनावों का गणित जरूर बन-बिगड़ सकता है। यहां गवर्नेंस और संविधान से जुड़े 6 बिंदुओं को समझने की जरूरत है-

1. जीएसटी के दायरे से बाहर होने की वजह से शराब पर टैक्स राज्यों की आमदनी का मुख्य साधन है। राज्यों को इससे लगभग 2.25 लाख करोड़ रुपए की आमदनी होती है। दिल्ली में कुल टैक्स की 14.1% जबकि मिजोरम में 58% आमदनी शराब के टैक्स से होती है। विवादों के बाद शराब की बिक्री में कमी की वजह से दिल्ली सरकार को हर महीने 193 करोड़ के राजस्व के नुकसान की खबरें हैं। राजस्व में कमी और फ्री की रेवड़ियों की सियासत से राजधानी का स्वरूप बिगड़ा तो खामियाजा देश को भुगतना पड़ सकता है।

2. दिल्ली में शराब का विस्तार हो या गुजरात-बिहार वाली शराबबंदी की नीति? शराब के कानूनी-गैरकानूनी कारोबार में नेताओं, पुलिस और अफसरों के साथ माफिया की मिलीभगत होती है। दिल्ली में शराब माफिया की जांच अगर तार्किक मुकाम तक पहंुची तो इसका प्रभाव पड़ोसी राज्यों के साथ पूरे देश पर पड़ेगा।

3. पीने की न्यूनतम उम्र, टैक्स की दरें और दुकानों के खुलने के समय के बारे में अखिल भारतीय नीति बने तो राज्यों के बीच शराब बेचने की अंधी दौड़ कम हो सकती है। शराब की राजनीति पर अंकुश के लिए इससे जुड़े सभी राज्यों के राजस्व का कैग ऑडिट हो।

4. बिहार, झारखंड, बंगाल समेत कई राज्यों में विपक्ष के नेताओं और समर्थकों के यहां से नोटों की गड्डी के साथ AKK-47 की बरामदगी हो रही है। भाजपा के आरोपों को सही मानें तो दिल्ली में एक्साइज नीति में बदलाव से आप नेताओं ने बड़ा माल कमाया, जिसके इस्तेमाल से पंजाब की सत्ता हासिल की गई। दूसरी तरफ महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में विधायकों के सामूहिक दलबदल से सरकार बनाने से साफ है कि गड्डियों के खेल में भाजपा भी चैम्पियन है।

5. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि सरकार बनाना आसान है, लेकिन देश बनाना कठिन है। सत्ता की राजनीति के लिए भ्रष्ट माफिया के साथ पक्ष-विपक्ष की सभी पार्टियों ने गलबहियां कर रखी हैं। राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए अन्ना हजारे ने आंदोलन शुरू किया था। एक्साइज घोटाले में भले किसी को सजा न मिले, लेकिन इन आरोपों के बाद आप पार्टी की नैतिक श्रेष्ठता का भाव कुंठित हुआ है। जयप्रकाश के बाद अन्ना के अनुयायियों की विफलता से व्यवस्था में सुधार और देश-निर्माण की उम्मीदें धूमिल होने से जनता में बेचैनी और निराशा है।

6. चुनावों के पहले और तख्तापलट के संक्रमण काल में विपक्ष के खिलाफ आईटी, सीबीआई, ईडी का दुरुपयोग अब आम बात हो गई है। पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता दिलीप घोष ने कहा है कि सीबीआई अधिकारियों की टीएमसी नेताओं के साथ सेटिंग के बाद ईडी को मैदान में उतारना पड़ा। जांच एजेंसियों के दुरुपयोग से पुलिसिया ताकतों को बढ़ावा मिलने के साथ कानून का शासन आहत होता है। इससे अदालतों में भी बेवजह की मुकदमेबाजी बढ़ रही है। पक्ष-विपक्ष के भ्रष्ट और आपराधिक नेताओं और माफिया पर कार्रवाई हो तभी देश का इकबाल बुलंद होगा।

अन्ना के अनुयायियों ने युवाओं, महिलाओं और मजदूर वर्ग में शराब की सप्लाई बढ़ाकर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के चैम्पियन बनने का दावा किया। इस विरोधाभास को कैसे जायज माना जा सकता है?

 

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