केंद्रीय जांच एजेंसियों व सीबीआई के कार्यकलाप को लेकर गंभीर चर्चा क्यों हो रही है?

केंद्रीय जांच एजेंसियों व सीबीआई के कार्यकलाप को लेकर गंभीर चर्चा क्यों हो रही है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
उन्होंने कहा था, हमें इस सभा में सभी जांच एजेंसियों की भूमिका पर चर्चा प्रारंभ करनी चाहिए, चाहे वह रॉ, सीबीआई, आईबी इत्यादि हो। मैं अन्य जांच एजेंसियों की भूमिका में नहीं जा रहा हूं। ठीक इसी प्रकार दासमुंशी ने एक काफी महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया था, जब वह मेरे मित्र प्रमोद महाजन द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में उत्तर पढ़ रहे थे। प्रश्न था, सीबीआई किन मामलों में सरकार से अनुमति या स्वीकृति प्राप्त करती है? और उत्तर था : कानून के अनुसार, जब कभी भी अनुमति अपेक्षित होती है, सिर्फ उन्हीं मामलों में अनुमति मांगी जाती है।
..सीबीआई एक सांविधिक एजेंसी है। मुख्य रूप से भ्रष्टाचार की जांच के लिए केंद्र सरकार की पुलिस के रूप में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत सीबीआई का गठन हुआ था, परंतु वर्षों से सीबीआई का कार्य-बोझ काफी बढ़ गया है तथा हमारे कानून और संघीय ढांचे के तहत कानून व्यवस्था और जांच का कार्य राज्यों का है। इसलिए सीबीआई के पास स्वयंमेव ही यह अधिकार नहीं है कि वह राज्य में अपनी मर्जी से किसी मामले की जांच करे। ऐसा करने के लिए सीबीआई को राज्य सरकार की स्वीकृति प्राप्त करनी अपेक्षित होती है।
अब ऐसे अनेक मामले हैं, जिन्हें न्यायालय जांच हेतु सीधे सीबीआई को भेज देते हैं। आज जांच एजेंसी के रूप में सीबीआई के पास काफी कार्य है, किंतु वह प्रशासनिक रूप से सरकार के विशेष विभाग, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के प्रति भी उत्तरदायी है। वर्तमान में यह प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन है, यद्यपि यह विभाग गृह मंत्रालय के अधीन है। इस प्रकार, एक काफी महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है, जिसे सरदार सिमरनजीत सिंह मान ने उठाया है कि सीबीआई से संबंधित ऐसे कौन-से मामले हैं, जिनमें सरकार निर्णय ले सकती है। सीबीआई को वास्तव में किन मामलों में सरकारी अनुमति अपेक्षित होती है और इस सभा में सीबीआई के किन कार्यों पर चर्चा की जा सकती है।
यदि सीबीआई के कार्यकरण से संबंधित कतिपय प्रशासनिक मामले हों, तो विभिन्न अनुमतियां लेनी अपेक्षित होती हैं। जहां तक प्रशासनिक कार्यकरण का संबंध है, सीबीआई का आकार क्या होना चाहिए, सीबीआई को सौंपे जाने वाले मामले किस प्रकार के होने चाहिए, सीबीआई को राज्य सरकारों से मंजूरी लेने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाना चाहिए। …जब आपराधिक जांच की बात आती है, तो किस व्यक्ति की जांच की जानी है।
किस धारा के अंतर्गत उसकी जांच की जानी है, किसी अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य की मात्रा क्या है, किस पर आरोप लगाना है और किस पर आरोप नहीं लगाना है, जैसे मामलों में सीबीआई सरकार अथवा संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होगी। यह इसलिए उत्तरदायी नहीं होगी, क्योंकि शक्तियों का पृथक्करण हमारे संविधान के आधारभूत सिद्धांतों में से एक है। न्यायालय विधियां निर्धारित नहीं करते हैं। न्यायालय सरकार की प्रशासनिक नीतियों का निर्णय करने के लिए नहीं हैं। न्यायालय विधानों का निर्णय करने के लिए नहीं हैं। इसी प्रकार, संसद अभियुक्त के दोष अथवा निर्दोष का निर्णय करने के लिए नहीं है। इसका निर्णय न्यायालयों को करना है, न कि अन्य एजेंसियों को करना है।
…आज प्रश्न यह है, पूरा मुद्दा यह है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को किस अपराध के अंतर्गत… आरोप तय करना है। कानून की विधिवत प्रक्रिया का पालन कर लखनऊ  में निर्धारित आरोप को अस्वीकार कर दिया गया है, आरोप पत्र पुन: रायबरेली न्यायालय में भेज दिया गया। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो उस आरोप पत्र के अनुसार, अभियोजन कार्यवाही कर रहा है। किस धारा के अंतर्गत केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को कार्यवाही करनी चाहिए, किस आधार पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को कार्यवाही करनी चाहिए, यह ऐसा मामला है, जिसका निर्णय न्यायालय द्वारा किया जाना है न कि संसद द्वारा। …मेरा केवल इतना कहना है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को निर्देश देना सरकार का काम नहीं है, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की आलोचना करना विपक्ष का काम नहीं है, अपनी क्रियाविधियों का अनुसरण करने का कार्य स्वयं केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए।
1996-97 में सीबीआई डायरेक्टर के तौर पर जोगिंदर सिंह ने बोफोर्स तोप सौदा, चंद्रा स्वामी, सेंट किट्स घोटाला और रक्षा सौदे में घोटाले की जांच की थी। सरकारी दखलंदाजी से जब उन्होंने नाराजगी जताई तो उन्हें पोस्ट से हटा दिया गया। चारा घोटाले में लालू यादव की गिरफ्तारी का ऑर्डर भी जोगिंदर सिंह ने ही दिया था। सिर्फ 11 महीने पोस्ट पर रहे…
– बिहार के चारा घोटाले की जांच भी उन्हीं के टैन्योर में हुई थी। इस मामले में लालू यादव को दोषी ठहराया गया था। सिंह सिर्फ 11 महीने सीबीआई डायरेक्टर रहे। उन्हें साफगोई के लिए जाना जाता है। वो कर्नाटक कैडर से 1961 बैच के आईपीएस थे। तब के प्रधानमंत्री एचडी. देवगौड़ा ने उन्हें सीबीआई डायरेक्टर बनाया था।
– चार साल पहले एक आर्टिकल में जोगिंदर सिंह ने कहा था कि सीबीआई को इलेक्शन कमीशन और कैग जैसे पावर देकर उसे सरकार के दायरे से अलग करना चाहिए क्योंकि कहीं ना कहीं ये सबसे बड़ी एजेंसी प्रेशर में काम करती है।
– इसके अलावा वो आईटीबीपी, सीआईएसएफ, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और आरपीएफ के डायरेक्टर जनरल रह चुके हैं। होम मिनिस्ट्री में स्पेशल सेक्रेटरी भी रहे।
– उन्होंने कुछ किताबें भी लिखीं। इनसाइड सीबीआई एंड आउटसाइड सीबीआई में किए कुछ खुलासों पर विवाद भी हुआ था।
पीएम पर लगाया था दबाव डालने का आरोप
– सिंह ने 1996 में बिहार के चारा घोटाले की जांच की। इसमें लालू यादव गिरफ्तार और बाद में दोषी ठहराए गए थे।
– उस दौरान इंद्र कुमार गुजराल पीएम थे जो लालू की ही पार्टी (उस दौरान जनता दल) के मेंबर थे। जोगिंदर ने एक बार खुलासा किया था कि गुजराल ने उन्हें लालू की गिरफ्तारी ना करने के आदेश दिए थे।
– सिंह ने बताया था, “एक बार गुजराल ने मुझे ऑफिस बुलाया और मिठाई खिलाई। इसके बाद कहा- लालू जी हमारी पार्टी के चीफ हैं। इनका ध्यान रखिएगा। मैंने कहा- आप लिखकर दीजिए। गुजराल बोले- मैं पीएम हूं। मैंने कहा- आप पीएम जरूर हैं लेकिन मुझे ऑर्डर पेपर पर चाहिए।”
– सिंह के मुताबिक- मैं जैसे ही ऑफिस पहुंचा, लालू की गिरफ्तारी के ऑर्डर दे दिए। मीडिया को भी फौरन बता दिया। इसके बाद मेरा ट्रांसफर कर दिया गया।

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