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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी अखंड चेतना के साधक है-डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव। - श्रीनारद मीडिया

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी अखंड चेतना के साधक है-डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव।

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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के मनाई गई 44 वीं पुण्यतिथि

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी, बिहार में बनकट स्थित गांधी भवन परिसर के नारायणी कक्ष में हिंदी विभाग के द्वारा हिंदी साहित्य सभा द्वारा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की पुण्यतिथि शुक्रवार को मनाई गई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की कृतियों के अध्ययन से यह दृष्टि निकलती है कि भारत के साहित्य में समग्रता है। भारत में सबका अस्तित्व एक साथ है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एक अखंड चेतना के साथ हैं। भारत का प्रत्येक महापुरुष अखंड चेतना का पुजारी है। द्विवेदी जी अखंड चेतना की साधना करते हैं। हमारा अतीत सदैव साथ रहता है। हमारी चेतना सबको समन्वित भाव से लेकर चलती है, समाज समन्वित चेतना से चलता है। मैं इस अवसर पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।

वही हिंदी विभाग में सहायक आचार्य डॉ आशा मीणा ने कहा कि हजारी प्रसाद की कृतियाँ हिंदी साहित्य की स्तरीय लेखन है। लेकिन उनकी ‘कबीर’ कृति में एक नई दृष्टि है। अगर आपको कबीर को समझना है तो द्विवेदी जी की पुस्तक को अवश्य पढ़ना होगा। द्विवेदी जी समन्वयवादी प्रवृत्ति के लेखक हैं। उनके लेखन में सरसता,सरलता सदैव विद्यमान रहती है।


जबकि कई शोधार्थियों ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के कृतियों का अध्ययन करना भारत की समेकित संस्कृति को समझना है। उनके निबंध, उपन्यास भारतीयता का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपन्यास ‘अनामदास का पोथा’, ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, निबंध में ‘अशोक के फूल’, ‘नाखून क्यों बढ़ते है’, हमारे पाठ्यक्रमों में काफी लोकप्रिय हैं। हिंदी साहित्य पर उनकी पुस्तक ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’ व ‘हिंदी साहित्य का आदिकाल’, जैसे पुस्तक भारतीय समाज के समेकित संस्कृति, समन्वयवादी प्रवृत्ति को प्रस्तुत करते हैं।

आलोचना में उन्होनें ‘कबीर’ नाम की पुस्तक से आलोचना को एक नई दृष्टि दी है। आकादमिक जगत में उन्होनें कबीर को स्थापित किया है। साहित्य के विद्वानों का कहना है कि तुलसीदास के समानांतर उन्होंने कबीर को स्थापित किया। यह कहा जा सकता है कि वैधनाथ से हजारी प्रसाद द्विवेदी की जो उनकी यात्रा है वह उसी प्रकार है जिस प्रकार सिद्धार्थ से गौतम की है।
जबकि परास्नातक के कई छात्रों ने अपनी कविता, संस्मरण को सुनाया। कार्यक्रम का सफल संचालन हिंदी साहित्य सभा के सचिव सोनू ठाकुर ने किया। जबकि स्वागत वक्तव्य शोधार्थी श्रीप्रकाश ने दिया।

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