सावधान! सायं ढलते ही रघुनाथपुर- आन्दर मार्ग आम जनता के लिए बाधित है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

किसी शायर ने क्या खूब कहा है-
साहब को जनमानस की फिक्र है लेकिन आराम आराम के साथ।

जी हां ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है इन दिनों सीवान में गिरती कानून व्यवस्था को लेकर। समाचार पत्रों एवं अन्य सूत्रों के अवलोकन से समझने को मिला है कि कई थानों के प्रभारी को इंस्पेक्टर रैंक में पदोन्नति कर दी गई है,कप्तान साहब ने कलगी लगाकर सम्मानित भी किया है।
सब कुछ स्थिर हो सकता है समय नहीं। समय ने इस पदोन्नति को एक अवसर दिया है। लेकिन पिछले कुछ समय से आखिर यह कानून व्यवस्था पर समाज उंगलियां क्यों उठा रहा है? सांय ढलते ही दियारा क्षेत्र के मार्ग से आपका शहर आना मुश्किल हो जाता है, मोटरसाइकिल की छिनतई एवं राहगीर से मारपीट व पैसे लूटने की बात आम हो गई है।

प्रथम सूचना प्रतिवेदन दर्ज होगी तो दबाव बनेगा अगर नहीं हुई तो सब कुछ ठीक-ठाक है,लेकिन एक जनता के मानस पटल पर भी अंकित होती जाती है।
बहरहाल गिरती कानून व व्यवस्था का खौंफ व्यक्तिगत तौर पर मुझे रविवार को सुनने को मिला जब मैं पंजवार रघुनाथपुर स्थित प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज के कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए गया था,वहां से मैं रघुनाथपुर आया तो कुछ मित्रों ने बताया कि आप जल्द से जल्द सीवान निकल जाइए नहीं तो आपके साथ रास्ते में कुछ भी हो सकता है,क्योंकि इन दिनों मामला कुछ अधिक ही खराब है। मुझे यह सुनकर बड़ा आश्चर्य लगा क्योंकि मेरे मित्र समाज के चितेरा है, समाज की नब्ज पर पिछले तीस वर्षों से उनका हाथ है उन्होंने समाज को जिया है। उनका मानना है कि यह तो मैं नहीं कह सकता हूं कि एक बार फिर से जंगल राज आएगा परन्तु उसकी कुछ आहट सुनाई दे रही है लेकिन इस बार कारण सामाजिक नहीं आर्थिक है।

मैंने पूछा ऐसा क्यों? उन्होंने कहा की शराब की धंधे ने सभी की सोचने समझने की शक्ति को कुंठित कर दिया है, नैतिकता-अनैतिकता की दूरियां को मिटा दिया है,साथ ही स्मैक,चरस और गांजा का व्यापार और इससे जुड़े कुछ लोगों ने समाज में आर्थिक अपराध को कई गुना बढ़ा दिया है,इसमें सभी लिप्त हो गये है।पैसा कमाने की होड़ में व्यक्ति समाज के ताने-बनी छिन्न-भिन्न कर रहा है।
विद्वान समाजशास्त्रियों का मानना है कि अपराध के लिए जमीन समाज ही तैयार करता है।

किसी भी व्यक्ति के साथ कोई भी घटना कर देने में कई प्रकार के तत्व समाहित होते हैं इसमें अपराधियों की मनोवृत्ति, कानून व व्यवस्था की गिरती स्थिति, अपराध में प्रयुक्त होने वाले हथियार एवं उपकरण साथ ही सीने(छाती) में फलता-फूलता वह क्रोध जो समय व्यतीत होने के साथ-साथ मुरब्बा में तब्दील हो जाता है। परन्तु हमारे समाज में पुलिस की प्रासंगिकता है। हमें विकास करने के लिए अमन-चैन व शांति की आवश्यकता है और किसी भी समाज के विकास में यह आवश्यक शर्त है। आशा करनी चाहिए की शासन- प्रशासन इस पर संज्ञान लेते हुए आमजन को लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से उन्हें अवश्य लाभान्वित करेंगे।

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