बाबा बर्फानी के गुफा के पास पहुंच कर सभी भाव विभोर हो गए-अजय पाण्डेय

बाबा बर्फानी के गुफा के पास पहुंच कर सभी भाव विभोर हो गए-अजय पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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इसके पहले 2023 में हमारी श्री अमरनाथ यात्रा की मुकम्मल तैयारी हुई थी । तीन दिनों तक गोरखपुर सदर हस्पताल का चक्कर लगाने के बाद ” मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट ” मिला । ” मेडिकल सर्टिफिकेट ” मिलने के बाद ‘ रजिस्ट्रेशन ‘ हुआ और यात्रा – पर्ची निकली । इसके बाद रेल में आरक्षण कराया गया । छह आदमियों के ग्रुप में एक सीट ‘ कन्फर्म ‘ मिला , बाकी पांच ‘ वेटिंग ‘ था ।

इंतजार शुरू हुआ कि कब ‘ वेटिंग ‘ , ‘ कन्फर्म ‘ हो और
इसी इंतजार के साथ लिस्ट बनना शुरू हुआ कि क्या – क्या ले जाना है ।

जूते चाहिए थी , बढ़िया ‘ ग्रिप ‘ वाली और ‘ वाटर – प्रूफ ‘ भी । कितने बनियान चाहिए , कितने कच्छे , कितने ‘ टी शर्ट ‘ और कितने पेंट । गरम कपड़े , वूलन जुराब और टोपी , दवाइयां और मेवे भी रखने थे । रोज दो – चार चीजें लिस्ट में बढ़ जातीं ।

कागज पर बजाप्ता लिख – लिख कर प्लान बनता कि कपड़े कितने सेट दरकार होंगे और उतारे गए कपड़ों को कहां रखा जायेगा । मेरा मन था कि जितने भी रिजेक्ट करने योग्य कपड़े हों , उन्हें हीं ले जाऊं और यूज कर के फेंक दूं । सुनते हीं श्रीमती जी ने आंखे लाल – लाल कर मेरी तरफ देखा ।

” क्या बात है जी , काहे आँखें लाल कर रही हो ?”

” अपना कपड़ा फेंका जाता है कहीं ? कहां से आपके दिमाग में ऐसी बात आ गई ?”

” इसमें दिक्कत क्या है , तुम्हे ?”

” नहीं फेंकना है , ‘ बाउर ‘ होता है और इन्हीं पुराने कपड़ों पर फोटो खिंचाइएगा ?”

मैं समझ गया , एक तो ‘ बाउर ‘ होता है और दूसरे फोटो खिंचाना है ।

हर बार की तरह बिना किसी ‘ आर्गुमेंट ‘ के मैं उनकी बात मान गया और फोटो खिंचाने लायक कपड़ों की व्यवस्था में लग गया ।

बाबा को शायद मंजूर नहीं था हमारा उस बार का जाना । तमाम तैयारियों के बावजूद 2023 वाली हमारी यात्रा नहीं हो पाई ।

पहाड़ों पर बहुत बरसात हुई थी और सभी जत्थों को जम्मू बेस – कैंप पर रोक दिया गया । जम्मू बेस – कैंप पर जब क्षमता से बहुत अधिक भीड़ हो गई तो सरकार ने जम्मू की तरफ आने वाली सभी ट्रेनों को रद्द कर दिया । हमें जिस ट्रेन से जाना था वह भी रद्द हो गई थी । सारी तैयारियां धरी की धरी रह गई । हमारे एक सहयात्री ने कार से चलने की राय दी , लेकिन उसमें भी लोचा था कि कही कार को भी जम्मू में सरकार ना घुसने दे तो हम ना घर के रहेंगे ना घाट के । मन को इस बात की तसल्ली दी गई कि इस बार बाबा को मंजूर नहीं था कि हम उनके घर आए और हम अपने – अपने घर से हीं बाबा को प्रणाम कर लिए ।

उसके अगले साल मकान बनवा रहा था , इसलिए नहीं जा पाए और अब जा के 2025 में बाबा के घर जा रहे हैं । इस बार पांच लोगों का ग्रुप है । 15 जुलाई को यात्रा शुरू हुई है । 16 को जम्मू पहुंचेंगे । 16 को वही यात्री – निवास में रात्रि विश्राम करेंगे और 17 की अहले सुबह माता वैष्णो देवी के दरबार में हाजिरी लगाएंगे । 17 को अर्धकुमारी में रात को रुकेंगे और 18 को सुबह वापस कटरा और फिर वहां से जम्मू , भगवतीनगर बेस कैंप पहुंच जाएंगे ।

18 को हीं भगवतीनगर बेस-कैंप से पहलगांव के लिए बस की टिकट ले लेंगे और 19 की सुबह तीन – चार बजे सेना की ‘ कानवाय ‘ के साथ पहलगांव के लिए रवाना हो जाएंगे ।
पहलगांव से 20 की सुबह चंदनवाड़ी पहुंचेंगे और उसी दिन सभी कागजातों की चेकिंग के बाद पैदल यात्रा शुरू हो जाएगी ।

हमारे साथ मेरी श्रीमती जी को लेकर तीन महिलाएं है । अभी तक तो सबका विचार बाबा की गुफा तक पैदल हीं जाने का है , लेकिन जब ये लोग एक – आध किलोमीटर चलेंगी तब पता चलेगा कि इन्हें घोड़े पर लाद के ले जाना पड़ेगा कि पालकी पर ।

अंबाला में हमारी नींद खुली।

पूरी रात शांत पड़ा कूपा कसमसाने लगा था । चाय – चाय की कर्कश ध्वनि , जो नीद लेना चाहते थे , उन्हें भी उठा दे रही थी । गांव – कस्बों में भोर की दस्तक घर के अगवाड़े – पिछवाड़े बांक देने वाले मुर्गे देते थे । मुझे तो ये चाय वाले भी सुबह – सुबह बांक देते मुर्गे लगते हैं । चाय – चाय के पीछे – पीछे समोसे और ब्रेड पकौड़े वाले कूपे में ताजा तले हुए समोसे और पकौड़े की खुशबू बिखेरने लगते हैं । पर मुझे आकर्षित करते हैं , ब्रेड – कटलेट और ब्रेड – आमलेट वाले । यदि खाना होता है तो वही खाता हूं ।

एक लड़का झाड़ू ले कर कूपे में घुसा और झाड़ू लगाने लगा ।कल से एक युनिफॉर्म वाला आ कर बढ़िया से सफाई कर था , मुझे उसी का इंतजार था । यह बाहरी झाड़ू वाला झाड़ू से कचरा समेटता हुआ मेरे बर्थ तक आया और पैसे मांगने लगा । जब मैने उसे कुछ देने से इनकार किया तो मेरी तरफ गुस्से से देखते हुए कचरा मेरी बर्थ के पास हीं छोड़ कर चला गया ।

गुस्सा तो मुझे बहुत आया लेकिन परदेश में गुस्सा करके भी क्या करता । थोड़ी देर के बाद युनिफॉर्म वाला आया और बढ़िया से कचरा निकाल कर ले गया । मैने उसे बुलाया और उसकी पीठ ठोक कर चाय पीने के लिए कुछ पैसे दे दिए । वह पैसे ले नहीं रहा था , लेकिन मैने उसकी जेब में पैसे रख दिए । मुझे लगा था कि इस लड़के को बढ़िया से अपनी ड्यूटी बजाने का फीडबैक तो मिलना हीं चाहिए था ।

रेलगाड़ी का एक कूपा, जितनी देर की यात्रा होती है , उतने देर का घर हीं होता है । वही बैठना , वहीं सोना , खाना – पीना , गपशप और लैट्रिन – बाथरूम , सब वहीं । घर पर भी तो हम वही करते हैं । केवल रोटी कमाने वाला काम नहीं होता है । थोड़ा संकोच छोड़ दिया जाय तो ट्रेन में खाली समय में पहली बोगी से आखिरी बोगी तक कुछ बेंच कर यात्रा का खर्च निकाला जा सकता है 😄। श्रीमति जी से मैने कहा कि दो किलो आटे की लिट्टी बना दो , ट्रेन में बेंच लेंगे । पता नहीं क्यों वह बहुत गुस्सा गई और बोली ,

” मुझे नहीं जाना आपके साथ । अब मेरे ऐसे बुरे दिन नहीं आ गए हैं कि आपके साथ लिट्टी बेचूं ।”

बड़ी मुश्किल से उसे मना कर साथ लेकर आया हूं ।

ट्रेन बिल्कुल समय से चल रही थी और नीयत समय जम्मूतवी स्टेशन पर पहुंच गई । यद्यपि हमें पहले मां वैष्णो देवी जाना था , फिर भी हम श्री अमरनाथ यात्रा के लिए बनने वाले RDIF कार्ड वाले शिविर में चले गए । वहां के कर्मियों ने सुझाव दिया कि पहले श्री अमर नाथ जी की यात्रा कर लें , क्योंकि अभी भीड़ कम है । हमने उनकी बातों पर भरोसा कर पहले श्री अमर नाथ यात्रा का मन बना लिया और RDIF कार्ड बनवा लिया । अमरनाथ यात्रियों के लिए यह कार्ड बनवाना जरूरी होता है । इस कार्ड को स्कैन करने पर यात्री की पूरी जानकारी पता चल जाती है । सभी यात्रियों के गले में यह कार्ड जरूरी होता है ।

हम कार्ड बनवा कर श्री अमरनाथ बेस कैंप , भगवतीनगर आ गए । लंबी लाइन में लग कर , तमाम सुरक्षा जांच के बाद हमने बेस कैंप में प्रवेश ले कर बस की टिकटें ले लीं । नहा – धो कर साथ में ले जाने वाले सामानों के अतिरिक्त सामानों को ” क्लाक – रुम ” में जमा कर और भोजन कर थोड़ा आराम करने के मूड में आए हीं थे कि ‘अनाउंसमेंट ‘ होने लगी कि पहाड़ों पर भारी बारिश की वजह से यात्रा स्थगित हो गई है ।

हमारा सारा जोश और उत्साह हवा हो गया और हम अगले ‘ अनाउंसमेंट ’ के इंतजार में अपनी – अपनी जगह पर जा के सो गए । यह प्रायः तय हीं था कि अगले दिन बेस – कैंप में हीं रहना है और शायद उसके अगले दिन भी । बस – कैंप से बाहर जा नहीं सकते थे क्योंकि बाहर चले जाने पर अंदर आना बहुत मुश्किल था । इसलिए मन को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि एक – आध दिन यही रहना है और भंडारे का भोजन चखना है ।

बेस – कैंप पर महाराष्ट्र के झालना से आए एक ग्रुप को देखा । 21 महिलाओं के इस ग्रुप के साथ एक बुजुर्ग पुरुष भी थे । जैसा कि उन्होंने बताया , ” राम – कृष्ण ” जप ग्रुप के सदस्य थे । सभी महिलाएं लगभग 50 से ऊपर की थीं और ग्रुप के पुरुष सदस्य 70 पार के लग रहे थे । बेहद जिंदादिल इस ग्रुप के सदस्यों नें जब अपने क्षेत्र की पारंपरिक ” राम – कृष्ण ” नृत्य शुरू किया तो इन राम – कृष्ण को भक्ति में लीन महिलाओं का सबने जोरदार तालियों से उत्साह वर्धन किया ।

एक यात्री को मैने पैर में घुंघरू बांध कर घूमते – टहलते देखा । जब मुझे घुंघरुओं की आवाज सुनाई पड़ी तो मेरी नजरें ढूंढने लगी कि घुंघरू कहां बज रहे हैं । तब तक गेरुआ वस्त्र धारण किए तेजी में चलते एक 65 वर्ष के आसपास के व्यक्ति दिखे । मैं उनसे कुछ पूछ पाता तबतक वो कहीं ओझल हो गए ।

विविध रूप , विविध लोग , पूरा देश यहां एक हीं जगह समाहित दिख रहा है । लंगर की लाइन में अमीरी – गरीबी , ऊंच – नीच , जात – पात सबका भेद मिट गया है । सभी लाइनों में धैर्य से खड़े हो कर लंगर खा रहे थे । दो लंगर बेस – कैंप के अंदर थे और अनेक लंगर बेस – कैंप के बाहर भी थे । इन लंगर वालों की सेवा – भाव अद्भुत है । 1 जुलाई से हीं लगातार यात्रियों को निःशुल्क भोजन करा रहे हैं और यात्रा की समाप्ति तक उनकी यह सेवा जारी रहेगी ।

कल यात्रा के स्थगन की सूचना से यात्री थोड़े हतोत्साह जरूर थे लेकिन धैर्य में कोई कमी ना थी । कमरे और डारमेट्री तो कल हमारे आने के पहले हीं फूल चुके थे , श्री अमरनाथ यात्रा ट्रस्ट द्वारा सभी को गद्दे और तकिए दिए गए थे और उन्हें जिसे जहां उचित जगह मिली , बिछा के सो गए । हमने भी यात्री – निवास के विस्तृत बरामदे में गद्दे बिछाए और ढेर हो गए ।

दिन आसानी से गप – शप और मोबाइल को पेरते गुजर गया और शाम लोगों को देखते – सुनते बीत गया । रात में स्नान वगैरह करके , लंगर खा के आए हीं थे कि अनाउंसमेंट होने लगा कि कल यात्रा जायेगी । सारा परिसर भोले बाबा की जय के घोष से गूंज उठा । अब यह निश्चित हो गया कि कल रात्रि डेढ़ बजे हम बस से पठानकोट के लिए चल पड़ेंगे ।
बस की टिकट हम कल हीं ले चुके थे । अतिरिक्त सामान भी ” क्लॉक – रुम ” में जमा हो चुका था और ले जाने वाला बैग रेडी ।

यहां कई लोग ऐसे मिले , जो कई – कई बार यह यात्रा कर चुके थे । हमारी यह पहली यात्रा थी , इसलिए हमारा उत्साह कुछ अलग हीं था ।

रात्रि के ग्यारह बज गए हैं । अब कल रात का डेढ़ बजने का इंतजार है , जब हम पठानकोट तक की यात्रा का पहला पड़ाव पूरा करेंगे ।
कठिन चढ़ाई और यात्रा की थकान की वजह से यह पोस्ट विलंब से चस्पा कर पा रहा हूं , क्षमा

तीर्थ यात्राओं में कदम – कदम पर ठगने वाले अपनी ताक में लगे रहते हैं कि कब मौका मिले और वो आपकी जेब से कुछ झटक लें । तीर्थ यात्राओं के बहाने बिना किसी धार्मिक भावना के, महज पर्यटन के लिए जत्थे के जत्थे लोग तीर्थ स्थलों पर जाने लगे हैं । इस बेतहाशा भीड़ की वजह से अक्सर छोटी – बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं । इस भीड़ के आगे प्रशासन विवश है और लाख इंतजामात के बावजूद अव्यवस्थाएं हो जाती हैं ।

जैसा कि पिछले पोस्ट में मै बता चुका हूं , 16 को हम जम्मू स्थित भगवती नगर बेस कैंप में प्रवेश कर 17 की सुबह यात्रा शुरू करने वाले थे , लेकिन पहाड़ों पर भारी बारिश की वजह से 17 वाली यात्रा स्थगित हो गई थी और हम उसके दूसरे दिन यानी 18 को यात्रा शुरू कर पाए ।

हम रात के 12 बजे हीं उठ कर पहलगाम वाली बस पकड़ने के लिए तैयार हो गए । हमने 555 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से अपने पांच जनों के ग्रुप के लिए डीलक्स बस की टिकट ली थी । सीट नंबर था 5 से 8 और 34 । मुझे समझ में नहीं आया कि चार जनों की सीट एक जगह और एक का 34 नंबर । बस में जाने पर पता चला कि बस में 1 से 33 नंबर तक की हीं सीटें थी । जब मैं 34 नंबर सीट ढूंढते – ढूंढते परेशान हो गया तो पता चला कि आगे वाली ड्राइवर के केबिन वाली सीट हीं 34 नंबर थी और ड्राइवर उसी पर सोया पड़ा था ।

उसने कहा कि बस चलने पर मेरी सीट मुझे मिल जाएगी । मैं आश्वस्त हुआ कि चलो बस खुलने पर हीं सही , सीट तो मिल जाएगी । जब बस खुलने को हुआ तो उसने मुझे बुलाया और मेरी सीट बताई । उस सीट पर उसने पटरा रख कर चार लड़कों को बैठाया था । मेरा तो माथा घूम गया कि साढ़े पांच सौ किलोमीटर की दूरी मैं वहां बैठ कर कैसे पूरी कर पाऊंगा । थोड़ी देर तो किसी तरह उस चार अंगुल की जगह पर बैठा , लेकिन नीचे पैर रखने की कोई जगह हीं नहीं थी ।

उस स्थिति में मैं साढ़े पांच सौ क्या पांच किलोमीटर की दूरी भी नहीं तय कर पा सकता था । मैने ड्राइवर को कहा कि मेरी सीट दो , पूरी की पूरी , ऐसे मैं यात्रा नहीं कर पाऊंगा । प्रखर विरोध पर उसने उन लड़कों को वहां से हटाया और पटरा हटा कर मैं आराम से बैठा । जहां आपका हक बनता हो , वहां विरोध जरूर करना चाहिए और वह भी जबरदस्त विरोध ।

जम्मू से पहलगाम बेस – कैंप तक जाने वाली सभी बसें और छोटी गाड़िया सेना के ‘ कानवाय ‘ के साथ करीब साढ़े चार बजे सुबह चलीं । जम्मू से पहलगाम तक के लिए जब यह जत्था चला तो सेना की अभूतपूर्व सुरक्षा – व्यवस्था दंग कर देने वाली थी । जिस इलाके या शहर से यह ‘ कानवाय ‘ गुजरती थी , किसी दूसरे वाहन को चलने की इजाजत नहीं थी । किसी गली या मुख्य सड़क पर निकलने वाली सड़क को बिल्कुल ‘सिल ’ कर दिया गया था । प्रत्येक लगभग 500 मीटर की दूरी पर सेना के जवान बेहद ” अलर्ट मोड ” में तैनात थे । मुझे लग रहा था कि सड़क पर ऐसी चाक – चौबद व्यवस्था प्रधानमंत्री की हीं होती होगी ।

हमारी ‘ कानवाय ‘ अभी जम्मू से 60-70 किमी हीं पहुंची होगी , तब तक दाहिने साइड से एक खाली ट्रक गोली की रफ्तार से आई और हमारी बस के ठीक आगे चल रही एक सफेद इनोवा गाड़ी को जबरदस्त टक्कर मारती हुई बीच के डिवाइडर को पार कर सड़क के बाई तरफ एक पुराने घर में घुस गई । यह सब पलक झपकाने भर के समय में हो गया । उस गाड़ी में भी अमरनाथ यात्री सवार थे और टक्कर इतना जोरदार था कि गाड़ी के ऊपर बंधे सारे सामान सड़क की दूसरी तरफ जा गिरे । बस कुछ सेकेंड का अंतर था नहीं तो उस बेकाबू ट्रक का शिकार हमारी बस हीं होती और मैं उस बस में सबसे आगे बैठा था ।

मेरी क्या स्थिति होती इसकी बस मैं कल्पना कर सकता था । गाड़ी में बैठे तीन तीर्थ यात्री बुरी तरह जख्मी हो गए थे । पूरी ‘ कानवाय ‘ रोक दी गई और बहुत त्वरित कार्रवाई करते हुए घायलों की एंबुलेंस से ले जाया गया । मिनटों में भारी संख्या में पुलिस और सेना के जवान और अधिकारी घटना स्थल पर इकट्ठा हो गए और दस मिनट के बाद जत्थे को रवाना कर दिया गया ।

जब हम पहलगांव बेस – कैंप पहुंचे वहां टेंट गिरोह सक्रिय था । पांच – पांच सौ रुपए दे कर वे टेंट दे रहे थे । यह पांच सौ रुपया , टेंट के सरकारी किराए से अलग था । स्थानीय लोग इस कार्य में लगे थे । सार्वजनिक शौचालय के सभी बाल्टियों को एक बन्दा अपने पास रख , पचास – पचास रुपए में दे रहा था । यह सरासर बदमाशी थी और परदेश से आए यात्री , पचास रुपए दे कर बाथरूम जाने को विवश थे । वस्तुतः दस – बारह टेंट को एक कश्मीरी छेका कर रखता था और जो यात्री खाली टेंट ढूंढते हुए आते थे , उनसे हजार रुपए से लेकर पांच सौ तक ले कर टेंट मुहैया कराते थे । यात्री किसी तरह रात भर विश्राम करने का जगह तलाशते थे और इसी का फायदा कश्मीरी उठाते हैं ।

पहलगांव बेस कैंप जिसे शायद ” नुनुवान बेस – कैंप ” भी कहा जाता है , पर लंगर की जबरदस्त व्यवस्था थी । हम खा – पी कर आराम करने लगे । रात्रि दो बजे से हमे चंदनवाड़ी के लिए प्रस्थान करना था और चंदनवाड़ी से बाबा श्री अमरनाथ के लिए हमारी यात्रा शुरू होनी थी ।

चंदनवाड़ी से आगे की यात्रा के अनुभव।
24 जुलाई की रात हम अपने – घर पहुंच गए । मुझे छोड़ कर मेरे ग्रुप के अन्य चार सदस्य शारीरिक क्षमता से अधिक पैदल चलने की वजह से पस्त हो गए थे । मेरी भी हालत बहुत अच्छी नहीं थी , इसलिए यात्रा के बारे में रुक – रुक कर लिखा पा रहा हूं ।

अब पहलगांव बेस – कैंप से आगे ….

पहलगांव बेस – कैंप में हम रात को आराम से सोए और सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गए । भंडारे पर केवल चाय – बिस्किट ले कर हम बेस – कैंप से बाहर निकले और दो सौ रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से भाड़ा दे कर एक टैक्सी से चंदनवाड़ी पहुंचे ।

चंदनवाड़ी पहुंचते – पहुंचते पौ फट चुकी थी और हमने अपने आप को चारों तरफ से ऊंचे पर्वतों के बीच एक खूबसूरत घाटी में पाया । हरे – भरे ऊंचे – ऊंचे पहाड़ हमे सम्मोहित कर रहे थे । कुछ देर काश्मीर की उस खूबसूरती को हम निहारते रहे , फिर फ्रेश हो कर चेकिंग – पॉइंट पर लाइनों में लग गए । हां , लाइन में लगने के पहले हमने अपने सामान एक ” पिट्ठू ” कर उसे सौंप दिए । उससे ” शेषनाग ” तक जाने का तय हुआ और हम खाली हाथ , चलने के लिए सुविधाजनक स्थिति में हो गए । सामान ले कर चढ़ाई करना और लंबी दूरी चलना हमसे संभव हीं नहीं था ।

चंदनवाड़ी से हमारी पैदल यात्रा शुरू होनी थी । चंदनवाड़ी के बाद हमारा पहला पड़ाव ” पिस्सु – टॉप” था । कहने को तो यह तीन किलोमीटर की चढ़ाई वाला रास्ता था , लेकिन हमें जितना चलना और चढ़ना पड़ा , मुझे यह दूरी छह किलोमीटर से कम नहीं लगी । गनीमत यही थी कि यह रास्ता ऊबड़ – खाबड़ और पथरीला नहीं था । हमारे साथ मेरे पड़ोसी श्री शिवाकांत तिवारी जी थे । अक्सर हमारी यात्राएं साथ – साथ होती हैं । हम दो पुरुष , हमारी पत्नियां और शिवाकांत जी की बड़ी शाली ग्रुप में थीं । कुल दो पुरुष और तीन महिलाएं ।

श्री शिवाकांत जी बेहद जिंदादिल और ऊर्जावान व्यक्ति हैं । वे सफर को उबाऊ नहीं बनने देते । सबको “हंसाते – बोलाते ” ले जाते हैं । मैं उम्र में सबसे बड़ा हूं तो मेरा विशेष खयाल करते हैं । सच में कहा जाए तो हमारे ग्रुप के ” पावर – बैंक ” हैं । मैं निश्चिंत रहता हूं कि चलो शिवाकांत जी हैं , कभी कोई प्रॉब्लम होगी तो सम्हाल लेंगे । इधर कुछ वर्षों से मेरी जितनी भी यात्राएं हुई है , उन्हीं की वजह से हुई है । मेरा ” रोआं – रोआं ” उन्हें आशीर्वाद देता है ।

थोड़ा – थोड़ा विश्राम करते हम ” पिस्सु – टॉप ” पहुंच गए । वहां भी फ्रेश होने की और खाने – पीने की पर्याप्त व्यवस्था थी । कुछ देर ” पिस्सु – टॉप ” पर रुकने के बाद हम अगले पड़ाव ” जोजीवॉल ” , ” नागाकोटी ” और इस दिन के अंतिम पड़ाव ” शेषनाग ” के लिए चल पड़े ।

” शेषनाग ” पहुंचते – पहुंचते सबके हौसले पस्त हो चुके थे । यद्यपि आसपास के मनोरम दृश्य सबको सम्मोहित कर रहे थे लेकिन थकान इतनी हो गई थी ऐसे दृश्यों को देख कर जो खुशी चेहरों पर आनी चाहिए थी , आ नहीं रही थी ।

पहाड़ों की चोटियों पर सफेद बर्फ के विशाल ग्लेशियर दिख रहे थे तो नीचे स्वच्छ नीले जल से भरा अलौकिक ” शेषनाग ” झील । किवदंती है कि महादेव जब माता पार्वती को अमर – कथा सुनाने के जा रहे थे तो यहीं उन्होंने अपने गले के नागों को छोड़ा था ।

” शेषनाग ” पर ऑक्सीजन की बहुत कमी महसूस हो रही थी और मुझे छोड़ कर सबकी तबियत खराब हो गई थी । माथे में चक्कर और उल्टियों की शिकायत हो गई थी और सांसे फूल रही थी । यहां भी हमने 600 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से टेंट लिए और उपर से 600 अतिरिक्त देकर रात बिताई । भंडारे की व्यवस्था यहां भी थी और गरम पानी और कहवा आसानी से मिल जा रहे थे ।

अगले दिन हमें पवित्र गुफा तक की यात्रा करनी थी । यह तय था कि यह यात्रा पैदल नहीं करनी है , घोड़े पर करनी है । कोई भी पैदल चलने की स्थिति में नहीं था ।

” शेषनाग ” से पवित्र गुफा तक की यात्रा।
श्री अमरनाथ यात्रा , अंतिम भाग ,

शेषनाग में हम सुबह – सुबह तैयार हो गए । आगे की यात्रा घोड़े से करने का प्रोग्राम शेषनाग पहुंचते पर हीं बन गया था ।स्नान करने की अच्छी सुविधा नहीं होने के कारण निर्णय यह हुआ कि गुफा पर जहां घोड़े हमें छोड़ेंगे , वहीं स्नान कर लेंगे ।

घोड़े की पर्ची कटाते – कटाते सात बज गए । एक घोड़े का सरकारी रेट एक दिन पहले करीब तीन हजार था लेकिन दूसरे दिन श्राइन बोर्ड द्वारा पांच सौ रुपए कम कर ढाई हजार कर दिए गए थे । हमारी तीन हजार रुपए की बचत हो गई जिसे हमने भोले बाबा का आशीर्वाद समझ कर हमने सर – आंखों पर लिया ।

शेषनाग के बाद अगला पड़ाव ” महागणेश टॉप ” था , जिसकी चढ़ाई बहुत दुरूह थी । यदि हमने घोड़ा नहीं किया होता तो हममें से कोई इस चढ़ाई को पूरा नहीं कर पाता ।
” महागणेश टॉप ” के बाद रास्ते बेहतर थे फिर भी बहुत आसान नहीं थे ।

हमारा काफिला एक प्रायः समतल रास्ते से गुजर रहा था कि मेरे घोड़े के आगे वाले दोनों पैर मुड़े और घोड़ा धड़ाम से गिरा । कहने की जरूरत नहीं है कि घोड़े के साथ मैं भी गिरा । मैं नीचे और पूरा का पूरा घोड़ा मेरे ऊपर । घोड़े वाले जल्दी से आए और उन्होंने घोड़ा उठाया । घोड़ा तो उन्होंने उठा लिया लेकिन मेरी तरफ उनका ध्यान नहीं था । जब मैं चिल्लाया तो उन्होंने मुझे उठाया ।

मुझे जितना गुस्सा होना था हुआ लेकिन उसका घोड़े वालों पर कोई खास असर नहीं हुआ । मुझे एक सफाई वाले में बताया कि किसी की हड्डी भी चटख जाए तो इन घोड़े वालों को कोई परवाह नहीं होती । इन्हें बस अपने पैसों से मतलब होता है । अतः यात्रियों से अनुरोध है कि घोड़े पर खुद अपना बैलेंस बना कर बैठें और अपनी हड्डियों का खयाल खुद रखें । मेरे साथ गनीमत थी कि जहां मैं गिरा था , पत्थर नहीं थे , केवल नरम मिट्टी और घास थे । यदि मैं घोड़े के साथ पथरीली जगह पर गिरा होता तो वहां से घोड़े पर नहीं स्ट्रेचर पर हीं लाद कर जाता । बाबा की कृपा थी कि थोड़े बहुत खरोच के सिवा और कोई इंज्यूरी नहीं हुई ।

पवित्र गुफा से पहले जहां घोड़ों नें हमें उतारा वहां से थोड़ी दूर पर गरम और ठंडे पानी से नहाने की व्यवस्था थी । हमने ठंडे पानी से हीं नहाना प्रेफर किया ताकि थकान उतरे और ताजगी आए । अच्छी धूप खिली थी और नहाने के लिए ग्लेशियर का बेहद ठंडा पानी । कड़क धूप की वजह से ठंडे पानी में नहाने में कोई तकलीफ नहीं हुई और वाकई हम बहुत तरो – ताजा हो गए ।

” क्लॉक – रुम ” में सामान और मोबाइल रखने की व्यवस्था थी । लेकिन लंबी लाइने थी सामान जमा करने की भी और वापस लेने की भी । हमने अपना सामान , मोबाइल सहित पिट्ठू को सौंपा और सबकुछ बाबा के भरोसे छोड़ बाबा बर्फानी की गुफा की तरफ चल पड़े । यद्यपि बाबा बर्फानी दस – पंद्रह दिन पहले हीं अंतर्ध्यान हो चुके थे , हमने उनके स्थान के दर्शन किए । हमने यह मान कर बाबा के दर्शन किए कि स्थूल रूप में ना सही सूक्ष्म रूप में तो बाबा हर जगह विराजमान हैं । हम इतने कष्ट से गिरते – पड़ते बाबा के घर तक आए हैं , यह तो बाबा देख हीं रहे होंगे ।

बाबा बर्फानी के गुफा के पास पहुंच कर सभी भाव – विभोर हो गए । कितने लोगों के आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी , हाथ जुड़े थे और और सबकुछ जैसे ठहर सा गया था । दो कबूतर हमने देखे , लेकिन वे सफेद नहीं थे । केवल भूरे रंग के दो कबूतर ठीक बर्फानी बाबा की गुफा के ऊपर एक जगह एक साथ बैठे थे । मेरे हाथ अनायास हीं उनकी तरफ जुड़ गए । कबूतर हमेशा समूह में रहते हैं । मंदिरों पर सैकड़ों की संख्या में कबूतर रहते हैं लेकिन वहां केवल दो थे , मात्र एक जोड़ी ।

अब हमारे लौटने की बारी थी । बालटाल वाले रास्ते से हमने लौटना शुरू किया । हमारा सामान पिट्ठू के जिम्मे था । चढ़ने में तो कठिनाई थी हीं , उतरना भी आसान नहीं था । शरीर को बहुत कायदे से सम्हाल कर उतरना पड़ रहा था । रात्रि करीब 12 बजे हम बालटाल बस – कैंप पहुंचे और एक – दो घंटे विश्राम कर जम्मू के लिए चल पड़े ।

जम्मू जाने के लिए एक इनोवा गाड़ी हमने ली थी और दोपहर होते – होते जम्मू पहुंच गए । इनोवा हमें श्रीनगर के ” डल – झील ” , केसर के खेत और काश्मीर के कई खूबसूरत वादियों से होते हुए जम्मू लाया । ड्राइवर नें बहुत प्रयास किया कि हम ” डल – झील ” में बोटिंग करें और केसर खरीदें लेकिन कमीशन कमाने की उसकी मंशा पर हमने पानी फेर दिया । हमने ना तो बोटिंग किया नहीं केसर खरीदा । मन हीं मन हमे कोसते हुए उसने हमे जम्मू उतारा और बहुत दुखी मन से वापस लौट गया ।

हमें 26 जुलाई को वापस आना था , लेकिन सभी इतना थक गए थे कि 26 वाली टिकट कैंसिल करा के जम्मू से दिल्ली और फिर दिल्ली से गोरखपुर की ट्रेन पकड़ कर निर्धारित वापसी से पहले पहुंच गए ।

हमारी पूरी यात्रा में कहीं हमें बारिश नहीं मिली । यदि थोड़ी भी बरसात हो जाती तो हमारी यात्रा बहुत मुश्किल हो जाती ।
बाबा की इस बार अनुमति थी कि आ जाओ , मेरा घर देख लो , तो सकुशल जा के वापस आ गए ।

जय बाबा बर्फानी ,
भूखे को अन्न ,
प्यासे को पानी.

– इति श्री अमरनाथ यात्रा ।

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