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बांग्लादेश की पाकिस्तान से दोस्ती और ढाका में चीन की चाल
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बांग्लादेश और पाकिस्तान ने गुरुवार को लगभग 15 साल के अंतराल के बाद विदेश सचिव स्तर का विदेश कार्यालय परामर्श आयोजित किया और व्यापार संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हुए द्विपक्षीय मुद्दों की पूरी श्रृंखला पर चर्चा की। यह बैठक पाकिस्तान के उप प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार की ढाका यात्रा से कुछ दिन पहले हुई।सरकारी समाचार एजेंसी बांग्लादेश संगबाद संस्था (बीएसएस) ने कहा कि बांग्लादेश के विदेश सचिव जशीम उद्दीन और पाकिस्तान की विदेश सचिव आमना बलूच ने राज्य अतिथि गृह पद्मा में आयोजित विदेश कार्यालय परामर्श (एफओसी) के दौरान अपने-अपने पक्षों का नेतृत्व किया।
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बीएसएस ने कहा कि बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हुए द्विपक्षीय मुद्दों की पूरी श्रृंखला पर चर्चा की। आमना बलूच ढाका बुधवार को पहुंचे, इसके बाद दिन के अंत में मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस और विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन से शिष्टाचार भेंट करने का कार्यक्रम बना रहे हैं।
आखिरी बार 2020 में आयोजित हुआ था एफओसी
बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच अंतिम एफओसी 2010 में आयोजित किया गया था।इस महीने बाद में दार की ढाका की नियोजित यात्रा 2012 के बाद से किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री की बांग्लादेश की पहली यात्रा होगी।
ढाका-इस्लामाबाद के बीच संबंध तब सबसे खराब स्थिति में थे जब पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का शासन था, विशेषकर 2010 के बाद जब ढाका ने बांग्लादेश के 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों के कठोर सहयोगियों पर मुकदमा चलाने की शुरुआत की। हालांकि, संबंधों ने एक सकारात्मक दिशा ली जब जुलाई 5 को छात्रों के नेतृत्व में हुई विद्रोह के बाद यूनुस की अंतरिम सरकार ने सत्ता संभाली।
बांग्लादेश में बीते साल एक बड़े घटनाक्रम में अगस्त में विरोध प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना की सरकार गिर गई। इसके बाद मोहम्मद यूनुस को नई अंतरिम सरकार का हेड बनाया गया। इस बदलाव का सीधा असर बांग्लादेश की विदेश नीति पर हुआ है। इससे जो देश प्रभावित हो रहे हैं, उनमें भारत का नाम प्रमुख है। मोहम्मद यूनुस सरकार ने जिस तरह से चीन और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाया है, उससे भारत के सामने क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पाकिस्तान की विदेश सचिव आमना बलोच की बांग्लादेश यात्रा के साथ दोनों देश दशकों पुरानी कड़वाहट भुलाकर दोस्ती के रास्ते पर बढ़े हैं। शेख हसीना की सरकार में बांग्लादेश ने भारत के साथ व्यापार, कनेक्टिविटी और दूसरे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया था। इसके उलट यूनुस सरकार के आने के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान और चीन का दखल बढ़ा है और भारत से उन्होंने दूरी बनाई है।
भारत के सामने प्रभाव बढ़ाने की चुनौती
भारत की चिंता दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए बढ़ी है क्योंकि बांग्लादेश की पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ रही है और चीन का प्रभाव भी ढाका में बढ़ रहा है। शेख हसीना के सत्ता में रहते हुएपिछले 15 सालों में भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार बहुत बढ़ा था। साल 2024 में यह 12 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। भारत बांग्लादेश को सामान बेचने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया था लेकिन अब चीजें बदल गई हैं।
भारत के चीन और पाकिस्तान से रिश्ते ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण रहे हैं। दूसरी ओर बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का बड़ा व्यापारिक भागीदार है। ऐसे में बांग्लादेश के साथ सहयोग भारत के लिए बहुत जरूरी है। बांग्लादेश में पाकिस्तान और चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चिंता का विषय है। भारत को बांग्लादेश के साथ अपनी सीमा पर कड़ी नजर रखनी होगी क्योंकि पाकिस्तानी एजेंसी पूर्वोत्तर में हिंसा भड़का सकती हैं।
व्यापार को भी संभालना होगा
भारत और बांग्लादेश में व्यापार के मुद्दे पर कई चुनौतियां देखने को मिली है। भारत ने बांग्लादेश को तीसरे देशों को निर्यात के लिए दिया सस्ता ट्रांसशिपमेंट रूट भी रद्द कर दिया गया है। इससे बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ों के व्यापार को नुकसान हो सकता है। खासतौर से 2026 में बांग्लादेश को अल्प विकसित देश का दर्जा मिलने के बाद रेडीमेड कपड़ों के मामले में भारत से उसकी सीधी प्रतिस्पर्धा हो सकती है।
भारत और बांग्लादेश को व्यापार संभालने के लिए मिलकर कनेक्टिविटी परियोजनाओं को जारी रखने की जरूरत है। भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्ते और ढाका में चीन के प्रभाव पर नजर रखनी चाहिए। इस सबके बीच उसे दक्षिण एशिया में अपनी भूमिका नहीं छोड़नी चाहिए। भारत को बांग्लादेश और इस क्षेत्र में दूसरे देशों को राजनीति और आर्थिक प्रभाव बढ़ाने का मौका नहीं देना चाहिए।