धंधा करने वाले बड़े लोग जनभावनाओं का विशेष ध्यान नहीं रखते,क्यों?

धंधा करने वाले बड़े लोग जनभावनाओं का विशेष ध्यान नहीं रखते,क्यों?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क 

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पाकिस्तान के साथ मैच खेलने के पीछे बीसीसीआई की क्या मजबूरी है, यह तो वहाँ बैठे लोग ही जानते होंगे। वैसे भी धंधा करने वाले बड़े लोग जनभावनाओं का विशेष ध्यान नहीं रखते। उनकी दृष्टि केवल और केवल धन पर टिकी होती है। वो देहाती कहावत शायद इन्ही के लिए है कि अपना काम बनता तो भांड में जाये जनता… पर कल सूर्य कुमार यादव ने अपना फर्ज बखूबी निभाया है।

खबरों में है कि सूर्य कुमार यादव ने न टॉस के समय पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ मिलाया, न ही मैच खत्म होने पर… बीच में भी खिलाड़ियों ने कभी उनको भाव नहीं दिया। बीसीसीआई के साथ अनुबंध में बंधे खिलाड़ी अपने स्तर से अधिकतम इतना ही कर सकते थे, और उन्होंने बखूबी किया। इसके लिए सूर्य को बधाई बनती है।

कल बीसीसीआई जन भावना के साथ खड़ी नहीं थी, लेकिन टीम इंडिया जन भावना के साथ खड़ी दिखी। जीत के बाद के सम्बोधन में सूर्य कुमार ने जीत भारतीय सेना को समर्पित की, मंच से पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को श्रधांजलि दी और उस आतंकी कृत्य की भर्त्सना की। यह सुखद था, वे इस मंच का बेहतर उपयोग कर गए।

पाकिस्तान को हराना कोई बड़ी बात नहीं। क्रिकेट ही नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में बार बार पराजित हो चुके पाकिस्तान को हरा कर अब किसी को कोई विशेष खुशी क्या ही होगी। उसे हराना वैसे ही है जैसे किसी मरे हुए जानवर को गोली मारी जाय… इतना तय है कि यह मैच खेल कर बीसीसीआई ने अपनी फजीहत ही कराई है।

मैंने आज ही कहीं पढा कि “पहलगाम में गोली चलाने वाले आतंकियों ने भी हाथ नहीं मिलाया था।” यह बात व्यंग्य में कही जा रही है। इस आक्रोश को खारिज नहीं किया जा सकता। जन भावना तो यही है कि मैच होना ही गलत था। समझ नहीं आता कि सरकारें इसकी अनदेखी क्यों कर जाती हैं…

खैर! बधाई सूर्य कुमार यादव! तुम इतना ही कर सकते थे, तुमने खूब किया…

आभार-सर्वेश तिवारी श्रीमुख

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