बिहार.. पटना.. पारस.. चंदन.. शूटर.. पुलिस.. प्रशासन.. समाज की विडम्बना

बिहार.. पटना.. पारस.. चंदन.. शूटर.. पुलिस.. प्रशासन.. समाज की विडम्बना

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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हमारा समाज अजीब विडंबनाओ वाला कुनबा है। बिहार जो अपने प्रखर व समृद्ध सभ्यता के लिए जाना जाता था उसका पहिया एकदम से उल्टा घूम गया है और इसके प्रत्येक क्षेत्र में आप अधोगति देख सकते है।

एक समय देश और विश्व को कई प्रकार की सहायता करने वाला यह बिहार अब अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पटल से भी पीछे छूटता हुआ नजर आ रहा है।
जो परिवार एक बार यहां से अन्य प्रदेशों व देशों में निकल जाता है वह दोबारा यहां आने की कोशिश नहीं करता है, जो यहीं रह गए हैं जिनकी कुछ खेती-बारी है, उनकी सरकारी नौकरी है और ऐसा कोई उपाय नहीं लग रहा है जिसकी वजह से वह बाहर चले जाएं।

पिछले 35 वर्षों से बिहार में समाजवादी विचारधारा की सरकार है, परन्तु अभी भी संपत्ति का उचित बंटवारा नहीं है। विडंबना है कि यहां का प्रत्येक परिवार यह चाहता है कि हमारे घर में एक आईएएस अधिकारी, एक नेता और एक रंगदार पैदा हो, जिसकी वजह से समाज में हमारी पद- प्रतिष्ठा कायम रहे। पिछले कुछ समय से बिहार में अपराध लगातार बढ़ रहे हैं इसका मूल कारण राजनीतिक और सामाजिक है।

राजनीतिक इसलिए है कि यह बात दिखानी है कि जो 1990 से 2005 की सरकार थी उससे कोई बेहतर कानून व्यवस्था के मामले में नीतीश कुमार नहीं है, दूसरे सामाजिक स्तर पर कई प्रकार के मुद्दे है जो चुनाव के समय में ही उभरते है, उसे भी लेकर अपराध उभर रहा है। सत्ता पक्ष में बौखलाहट है, सत्ता पक्ष से पकड़ ढीली पड़ती जा रही है।

राष्ट्रीय जनता दल की भी पकड़ उतनी मजबूत नहीं हो रही है केवल मुसलमान और यादवों में उनकी पैठ रह गई है, ऐसे में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज दशकों से लंबित बिहार के मूल मुद्दों को उभार रहे हैं। जाति और धर्म से इतर होकर वह कुछ मुद्दों को रखकर लोगों को बटोरने में सफल हो रहे हैं लेकिन यह आने वाला समय बतायेगा कि प्रशांत किशोर इससे सत्ता पाने में कितना सफल होते हैं।

बरहहाल हमारा समाज यह मान चुका है सारी समस्याओं का हल राजनीतिक तंत्र में है तो इसके लिए सरकार का बदलना आवश्यक है जो पर्याप्त नहीं है। हमें अपने आप को कर्तव्यनिष्ठ बनाते हुए समाज को बदलना होगा।

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