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जाति जनगणना को लेकर केंद्र का निर्णय - श्रीनारद मीडिया

जाति जनगणना को लेकर केंद्र का निर्णय

जाति जनगणना को लेकर केंद्र का निर्णय

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्र सरकार ने जनगणना कराने से जुड़ा बड़ा एलान किया है। केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक में लिए गए फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि मोदी सरकार अगली जनगणना के साथ जातीय आधार पर लोगों की गणना भी करेगी। इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने विपक्षी दलों को घेरा और कहा कि कांग्रेस ने सिर्फ राजनीति के लिए जातीय मुद्दों को उठाया है। उन्होंने दावा किया कि जातीय जनगणना से सामाजिक ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा।

गौरतलब है कि इससे पहले भी कई मौकों पर जातिगत जनगणना की मांग उठती रही है। लेकिन सरकार ने इन मांगों को दरकिनार कर दिया। हालांकि, अब बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र ने जातीय सर्वे कराने का फैसला किया है। इसी के साथ आजाद भारत में पहली बार जातिगत जनगणना का रास्ता लगभग साफ हो गया है।

देश में आखिरी बार कब हुई थी जातिगत जनगणना?
देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। इसके बाद हर दस साल पर जनगणना होती रही। 1931 तक की जनगणना में हर बार जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद से हर बार की जनगणना में सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए। अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े 1931 के बाद कभी प्रकाशित नहीं किए गए।

जातिगत जनगणना की जरूरत क्या है?

  • 1947 में देश आजाद हुआ। 1951 में आजाद भारत में पहली बार जनगणना हुई। 1951 से 2011 तक हुई सभी 7 जनगणनाओं में एससी और एसटी की जातीय जगनणना हुई, लेकिन पिछड़ी व अन्य जातियों की जाति आधारित जनगणना कभी नहीं हुई। 1990 में उस वक्त की वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करके पिछड़ों को आरक्षण दिया। उस वक्त भी 1931 की जनगणना को आधार मानकर ही आरक्षण की सीमा तय की गई। 1931 में देश में पिछली जातियां कुल आबादी का 52 फीसदी थीं।
  • कई एक्सपर्ट मानते हैं कि मौजूदा समय में देश की कुल आबादी में पीछड़ी जातियों की संख्या कितनी है इसका ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एससी और एसटी वर्ग के आरक्षण का आधार उनकी आबादी है, लेकिन ओबीसी आरक्षण का आधार 90 साल पुरानी जनगणना है। जो अब प्रासंगिक नहीं है। अगर जातिगत जनगणना होती है तो इसका एक ठोस आधार होगा। जनगणना के बाद उसकी संख्या के आधार पर आरक्षण को कम या ज्यादा करना पड़ेगा।
  • जातिगत जनगणना की मांग करने वालों का दावा है कि ऐसा होने के बाद पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के लोगों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति का पता चलेगा। उनकी बेहतरी के लिए उचित नीति का निर्धारण हो सकेगा। सही संख्या और हालात की जानकारी के बाद ही उनके लिए वास्तविक कार्यक्रम बनाने में मदद मिलेगी। वहीं, इसका विरोध करने वाले कहते हैं कि इस तरह की जनगणना से समाज में जातीय विभाजन बढ़ जाएगा। इसकी वजह से लोगों के बीच कटुता बढ़ेगी।
  • क्या भारत में कहीं जातिगत जनगणना हुई है?
    भारत में अब तक दो राज्यों- बिहार और कर्नाटक में जातीय सर्वे हुआ है। दरअसल, राज्य सरकारें जनगणना नहीं करा सकती हैं। यह काम केवल केंद्र सरकार करती है। इसलिए राज्य सरकार इसे सर्वे का नाम देती हैं।यानी वृहद स्तर पर इन राज्यों में भी जातिगत जनगणना अब तक नहीं की गई है। इसके अलावा तेलंगाना में रेवंत रेड्डी ने भी जातिगत सर्वेक्षण कराया। इसके आंकड़े भी प्रकाशित किए गए। इसमें पिछड़े वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा निकल कर आई थी।

    कर्नाटक में जातीय सर्वेक्षण का क्या हुआ?
    2014 में उस वक्त की सिद्धारमैया सरकार ने जातीय सर्वे किया था। इसका नाम सामाजिक एवं आर्थिक सर्वे दिया गया था। 2017 में इसकी रिपोर्ट आई, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया।  दरअसल, अपने समुदाय को OBC या SC/ST में शामिल कराने के लिए जोर दे रहे लोगों के लिए यह सर्वे बड़ा मौका बन गया। अधिकतर ने उपजाति का नाम जाति के कॉलम में दर्ज कराया।

  • इसके चलते कर्नाटक में अचानक 192 से अधिक नई जातियां सामने आ गईं। लगभग 80 नई जातियां तो ऐसी थीं, जिनकी जनसंख्या 10 से भी कम थी। एक तरफ OBC की संख्या में भारी वृद्धि हो गई, तो दूसरी तरफ लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रमुख समुदाय के लोगों की संख्या घट गई। इसके बाद इस जातीय सर्वे को सार्वजनिक नहीं किया गया।बिहार में रिपोर्ट में क्या आया था?
    दूसरी तरफ अक्तूबर 2023 में जारी हुए बिहार के जातीय सर्वे में सामने आया था कि राज्य में सबसे ज्यादा पिछड़ा वर्ग की आबादी है। राज्य कुल 63 फीसदी आबादी इस वर्ग से आती है। इनमें 27 फीसदी आबादी पिछड़ा वर्ग के लोगों की है। वहीं, 36 फीसदी से ज्यादा अति पिछड़ी जातियों की आबादी है। वहीं, अनुसूचित जाति की आबादी करीब 20 फीसदी है। जो 2011 की जनगणना में महज 15.9 फीसदी थी। वहीं, सामान्य वर्ग के लोगों की आबादी 15 फीसदी है।

    1. तेलंगाना में क्या था जातिगत सर्वे का नतीजा
      तेलंगाना में फरवरी 2025 में जातिगत सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी हुई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य की कुल आबादी 3.70 करोड़ है, जिसमें मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को छोड़कर पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी 46.25 प्रतिशत है। सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार राज्य की जनसंख्या में पिछड़े वर्ग (46.25 प्रतिशत) के बाद अनुसूचित जाति (17.43 प्रतिशत), अनुसूचित जनजाति (10.45 प्रतिशत), मुस्लिम पिछड़े वर्ग (10.08 प्रतिशत) और अन्य जातियां (13.31 प्रतिशत) शामिल हैं।
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