नगरों के नीति निर्माताओं को बेहतर नियोजन के लिए काम करना होगा,कैसे ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बीते दिनों दिल्ली और आसपास के इलाकों में भारी बारिश के एक दिन के बाद ही पानी से भरी सड़कें, रेंगते यातायात, टूटे वाहन और घुटनों तक गहरे पानी में चलने वाले नागरिक जैसे परिचित दृश्य देखने को मिले. दो हफ्ते पहले बेंगलुरु में कई जगहों में भारी जलजमाव की स्थिति थी. ऐसी दुखद स्थितियां शहरी नियोजन की कमियों की तरफ इशारा करती हैं. नालियों की बेहतर निकासी क्षमता की कमी और झीलों व नदियों पर ध्यान न देने के साथ शहरी स्थानों को कंक्रीट में बदलने का जोर हर तरफ दिखता है.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, बेंगलुरु जैसे शहर ने ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स 2020 में क्वालिटी ऑफ लाइफ मेट्रिक के तहत सौ में से 55.67 स्कोर किया, राजधानी होने के बावजूद दिल्ली 57.56 तक पहुंचा, जबकि भुवनेश्वर का स्कोर सिर्फ 11.57 था. एक आदर्श दुनिया में यह स्थिति अस्वीकार्य है. पश्चिम में 1898 में एबेनेजर हॉवर्ड द्वारा चलाये गये गार्डन सिटी आंदोलन ने शहर के केंद्र में काम के माहौल को विकेंद्रीकृत करने की मांग की थी.

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