मिथिला चित्रकला के कलाकार, मृणाल सिंह की सराहनीय प्रस्तुति

मिथिला चित्रकला के कलाकार, मृणाल सिंह की सराहनीय प्रस्तुति

श्रीनारद मीडिया, पटना (बिहार):

1001467106
1001467106
previous arrow
next arrow
1001467106
1001467106
previous arrow
next arrow

बिहार ललित कला अकादमी, पटना में आयोजित 2 अगस्त से तीन दिवसीय लोक चित्रकला प्रदर्शनी में मृणाल सिंह की प्रयोगत्मात चित्रकथा ने मुख्य चर्चा बटोरी।  इनकी चित्रकला शैली विशिष्ट और महीन कचनी होने के कारण, इन्हें अन्य कलाकारों से अलग पहचान देती है।

इनका विषय “पिया मोर बालक, हम तरुणी…” नामक गीत था, जिसे उन्होंने कागज़ पर चित्रांकित किया। यह गीत कवि कोकिल विद्यापति द्वारा रचित, मैथिल समाज क एक लोकप्रिय गीत है।  महाकवि के इस वियोग प्रधान गीत में व्यथित युवती की अपने पति के स्नेह को पाने की व्याकुलता को दर्शाया गया है। इस कथाचित्र में, गीत की तरुणी नायिका को अहम् रूप से चित्रित करते हुए, गीत की प्रमुख पात्रों जैसे ‘बटोहिया’, ‘हाट के लोग’, ‘धेनु गाय’ आदि को भी चित्रांकित किया गया, जो जीवंत अनुभव देता है।

कलाकार ने विषय का विशेष अध्ययन करते हुए, कथित कथाचित्र को भावनापूर्ण रूपरेखा दी है। उनकी व्याख्यान की शैली और चित्रकला को संगीत एवं परंपरा से जोड़ने के ढंग को प्रचुर सराहना मिली।

 

प्रदर्शनी के मुख्य अतिथि श्री अशोक कुमार सिन्हा, अपर निदेशक (बिहार संग्रहालय) ने कलाकार की खूब प्रशंसा की। यहाँ आये हुए राज्य एवं राष्ट्रीय पुरस्कृत कलाकारों ने भी मृणाल को विशेष रूप से बधाईयां दीं।

“पिया मोर बालक, हम तरूणी…”

कलाकार: मृणाल सिंह
इस कथाचित्र को वास्तविकता में लाने की प्रेरणा:

“पिया मोर बालक, हम तरुणी…”, उन गीतों में से है एक है जिसकी संगीत ने मेरे किशोर मानस पटल पर गहरा छाप छोड़ा था। स्व. शारदा सिन्हा जी के कंठ से वह सुरबद्ध गीत, मेरी आत्मसुख का मानो एक जरिया था। जैसे-जैसे मेरी मानस बुद्धि विकसित हुई, मेरी मानवीयता का भी विकास हुआ। जीवन की इस काल में जब मैं संवेदनाओं को समझ सकता हूँ, मुझे इस गीत के अर्थ को समझने के क्रम में मेरा ह्रदय करुणा से व्यथित हो उठा। इस गीत को चित्रांकन करने की प्रेरणा, मात्र संवेदना को चित्रण करना ही नहीं, अपितु इसे अनुभव भी करना था। मैंने इस चित्रकथा में, मैथिल कोकिल विद्यापति रचित इस गीत की युवती नायिका की अपने पति के स्नेह को न पाने की व्यथा और उसकी भावना को कागज़ पर चित्रांकित करने का प्रयास किया है।

यह चित्रकथा, एक प्रयोगात्मक चित्रकला है, जिसे मुख्य रूप से मधुबनी चित्रकला की कचनी शैली में चित्रण किया गया है। गीत की नायिका को विशेष रूप से चित्रांकन करते हुए उसे केंद्रित किया गया है और अन्य पात्रों को नायिका के दोनों तरफ रखा गया है।

विवरण:

पिया मोर बालक,हम तरूणी। कौन तप चुकी भेलौ जननी।।

पहिरि लेल सखी दछिनक चीर। पिया के देखैत मोरा दगध शरीर।।

मेरी कल्पना के अनुसार, १४वीं शताब्दी काल में पुरुषों के बहुविवाह और किशोरियों की बाल विवाह की प्रथा थी। कदाचित, यही पृष्टभूमि रही होगी, इस कविता को रचने के लिए।

व्यथित युवती, अपनी स्त्रीत्व की अस्तित्व को प्रश्नचित्त करते हुए श्रृंगार करती है। जैसा की चित्र में देखा जा सकता है की उसे साज सज्जित किया गया है और मांग भरते हुए दिखाया गया है। नायिका श्रृंगार करते हुए, यह आशा रखती है की उसका पति उससे मोहित हो। परन्तु, ऐसा हो न सका। इस कृत के फल स्वरुप, नायिका का पुष्परुपी ह्रदय मानो, अग्नि से दग्ध हो उठा है। जिसे चित्र में विशेष रूप से दिखाया गया है। उसके नाक के नथिये में ऊरती हुई चिड़िया का चित्रांकन किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है की नायिका, अपनी सभी बंधनों को तोड़कर एक बड़ी उड़ान भरना चाहती है। और कान की बाली में मछली का अभिप्राय नायिका की तरप को जल बिन मछली की तरप से तुलना की गयी है।

 

पिया लेल गोद कए चलली बाजार। हटिया के लोक पूछे के लागु तोहार।।

नहि मोर देओर कि नहि छोट भाई। पूरब लिखल छल स्वामी हमार।।

नायिका और उसके पति की दूरी को देखते हुए, जब हाट के लोग उनके सम्बन्ध के बारे में पूछते हैं तो, नायिका यह कहते हुए वियोग करती है की न ही वह उसका देवर है, न ही उसका छोटा भाई है। विधाता ने उसे उसका स्वामी बनाया है। चित्र में हाट के लोगों को और उसके देवर एवं छोटे भाई को प्रतीकात्मक रूप से दिखाया गया है।

 

बाट रे बटोहिया कि तोहि मोरा भाई। हमरो समाद नैहर लेने जाय।।

कहिहुन बाबा किनै धेनु गाय। दुधवा पिलायक पोसता जमाई।।

नहि मोर टाका अछि नहि धेनु गाइ। कोन विधि पोसब बालक जमाई।।

भनइ  विद्यापति सुनू  ब्रजनारि। धैरज धय रहु मिलत मुरारी।।

नायिका, राह पथिक को भाई कहकर बुलाती है, और यह आग्रह करती है की उसका संवाद, उसके नैहर लेते जाये। मिथिला में, गृहस्थ की सम्पन्नता, उनकी माल-जाल (मवेशियों) से आँका जाता है। तो नायिका, अपने पिता को यह संदेश भेजती हैं की अब उनसे, अपनी पति की सेवा नहीं होती, और आप एक गाय खरीदकर, आप ही अपने जमाई की सेवा कीजिये। इसका यह अभिप्राय है की, पति से दूर होकर कुछ ही पल के लिए सही, उसकी ह्रदय की वेदना शांत हो। परन्तु, उन्हें निराशापूर्ण उत्तर मिला की उनके पिता के पास उतना धन नहीं है, जिससे वह गाय खरीद सकें अथवा गाय भिजवा सकें। इसका अभिप्राय है की पिता चाहते हैं की नायिका अपने पति की सेवा करे और अपने गृहस्थ जीवन का निर्वाह करे। चित्र में इसी का चित्रांकित करते हुए, बटोहिया का पत्र ले जाते हुए और गाय का दर्शाया गया है।

पद के अंतिम पंक्ति में विद्यापति, नायिका को सांत्वना देते हुए यह कहते हैं कि वह धीरज रखें, उन्हें कृष्ण स्वरुप पति का स्नेह और प्रेम अवश्य मिलेगा। कृष्ण की छवि को दर्शाने के लिए, उनकी मुरली और मोर पंख को चित्रांकित किया गया है।

कलाकार का परिचय

मृणाल, मूल रूप से “भीठ भगवानपुर ड्योढ़ी, मधेपुर, मधुबनी” के निवासी हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा और पालन-पोषण पटना, बिहार में हुआ और वर्तमान में दिल्ली में स्थित हैं। और ‘आई आई ऍम-बेंगलुरु’ से ‘एम् बी ए’ की पढाई के पश्चात, कॉर्पोरेट क्षेत्र में तकनिकी नेतृत्व की भूमिका में कार्यरत हैं। कला, साहित्य और संस्कृति में इनकी अभिरुचि होने के कारण, अपनी अभिव्यक्ति के लिए इन विधाओं में निरंतर कर्मशील हैं।

 

यह भी पढ़े

सारण जिला के कुख्यात 10 संसीमित बंदियों का किया गया कारा स्थानांनतरण

नेमदारगंज में मारपीट के दो मामले: पुलिस ने 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया

आई.टी.आई. परीक्षा उत्तीर्ण कराने के नाम पर ठगी करने वाले गिरोह का भंडाफोड़ः 04 अभियुक्त गिरफ्तार

आईआईटी-बॉम्बे की एक छात्र ने हॉस्टल की 10वीं मंजिल से लगा दी छलांग

 “नशा मुक्त सारण” के तहत भारी मात्रा में गांजा के साथ सोने, चांदी और हीरे के आभूषण एवं नगद राशि बरामदः 04 अभियुक्त गिरफ्तार

जो भारत के हित में होगा, वही सरकार करेगी- पीएम मोदी

केस में पीएम मोदी और मोहन भागवत का नाम लेने को कहा जा रहा था – प्रज्ञा ठाकुर

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!