वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए समन्वित प्रयास जरूरी

वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए समन्वित प्रयास जरूरी

क्रिएटिविटी, नवाचार और नवोन्मेष के संदर्भ में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण है महत्वपूर्ण,
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में हर स्तर पर सहभागिता का लेना होगा संकल्प

1001467106
1001467106
previous arrow
next arrow
1001467106
1001467106
previous arrow
next arrow

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विशेष आलेख

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

आज देशभर में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जा रहा है। इसको मनाने का उद्देश्य वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के महत्व को समझना, बच्चों और युवाओं में विज्ञान के प्रति रुचि विकसित करना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सामान्य आशय यह होता है कि किसी भी तथ्य को स्वीकृत प्रदान करने के पहले उसका विश्लेषण कर लिया जाय। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के दौर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्व कहीं बहुत ज्यादा बढ़ गया है। डिजिटल क्रांति के दौर में प्रतिदिन हमारे सामने हजारों तथ्य आते हैं। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि धैर्य रखा जाए और तथ्यों की वास्तविकता का मूल्यांकन कर लिया जाय, फिर उसे स्वीकार किया जाए। साथ ही, वर्तमान में जोर नवाचार, नवोन्मेष पर दिया जा रहा है। ऐसे में छात्रों में क्रिएटिविटी के विकास में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्व सर्वविदित है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की सार्थकता इसी में हो सकती है कि सभी स्तर पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाने का सार्थक और समन्वित प्रयास किया जाए।

आवश्यकता वैज्ञानिक दृष्टिकोण के महत्व को समझे जाने की भी है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सामान्य अभिप्राय यह होता है कि हम ज्ञान प्राप्त करने और समस्याओं के समाधान के संदर्भ में वैज्ञानिक विधियों और तकनीकों का प्रयोग करते हैं। यह दृष्टिकोण हमें वास्तविकता को समझने और उसके बारे में सही जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।

सभी के अंदर हर तथ्य के संदर्भ में प्रश्न पूछने और फिर उसका उत्तर ढूंढने की कला का विकसित होना जरूरी है। ऐसा करने से हमारा व्यवहार तार्किक और वस्तुनिष्ठ हो जाता है। इस क्रम में हम अनुसंधान और विश्लेषण के प्रति प्रेरित होते हैं। हमारे सामने हजारों तथ्य आते हैं जिनमें कुछ बेहद संवेदनशील भी होते हैं। हम सिर्फ सूचनाओं पर भरोसा नहीं कर सकते। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में तो बिल्कुल नहीं। ऐसे में हम सभी को धैर्य रखना चाहिए और हर सूचना को मूल्यांकन के बाद ही स्वीकृति प्रदान करना चाहिए। जब हम मूल्यांकन और विश्लेषण करते हैं तो हमारे विचारों में भी व्यापकता आती है।

इस क्रम में अध्ययन एक अनिवार्य आवश्यकता भी बन जाया करती है। हमारे व्यक्तित्व में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास वास्तविकता को समझने में हमारी मदद करता है हमारे हर संदेश का निराकरण करता है। जानकारी का विश्लेषण और मूल्यांकन हमें निष्पक्ष सोच का स्वामी बनाता है। क्योंकि विश्लेषण के दौरान हम हर तथ्य के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं से परिचित होते हैं। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही हमें नई चीजों को सीखने और नई जानकारी को स्वीकार करने के लिए सक्षम बनाता है, जो नवाचार और नवोन्मेष के लिए बुनियादी ढांचा को सृजित करता है।

हम अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं। कट और पेस्ट कल्चर का विकास हमारे छात्रों की रचनात्मकता पर नकारात्मक असर डाल रहा है।देखा जा रहा है कि शैक्षणिक संस्थानों में छात्र विज्ञान मॉडल्स को बनाने के लिए यू ट्यूब आदि सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं। स्कूलों के स्तर पर इस प्रवृति को समर्थन और प्रोत्साहन भी दिया जाता है लेकिन बच्चों में मौलिकता के विकास को प्रोत्साहन जरूरी है। नवाचार और नवोन्मेष के दौर में छात्रों में क्रिएटिविटी के विकास की आवश्यकता भी है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास से निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता भी सुनिश्चित होती है। इससे एआई के निर्णय और कार्य मानवीय पूर्वाग्रह से मुक्त रह पाते हैं। साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधान, विश्लेषण और मूल्यांकन डाटा की विश्वसनीयता और गुणवत्ता को भी सुनिश्चित करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से उत्पन्न होने वाले नैतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को समझ सकते हैं। जब हमारे व्यक्तित्व में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मूल आधार विश्लेषण समाहित हो जाता है तो हम हर स्तर पर जिम्मेदारी और जवाबदेही से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकते हैं।

डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

 

छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास क्रांतिकारी और सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। इसके महत्व को समाज, प्रशासन, शैक्षणिक संगठन, परिवार आदि के स्तर पर समझे जाने की आवश्यकता है। छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास से जहां उनके समस्या समाधान कौशल में उत्कृष्टता को प्राप्त किया जा सकता है वहीं स्वतंत्र चिंतन की भावना का भी विकास हो सकता है। इससे छात्रों के आत्मविश्वास में वृद्धि, उनमें नैतिक और सामाजिक मूल्यों के विकास, नवाचार और उद्यमिता के भावना के विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है। इससे छात्र सामाजिक जिम्मेदारी के भाव से भी सुसज्जित हो सकते हैं।

छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। प्रशासनिक स्तर पर अटल टिंकरिंग लैब जैसी परियोजनाओं को सार्थक और प्रभावी आधार पर अमल में लाया जाय। शैक्षणिक संस्थान विज्ञान प्रयोगशालाओं का सुव्यवस्थित संचालन, विज्ञान क्लबों के गठन, विज्ञान प्रतियोगिताओं के आयोजन, वैज्ञानिक प्रतिभाओं के प्रोत्साहन के प्रयास करें। शिक्षक छात्रों को प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करें और उन्हें निरंतर तथ्यों के विश्लेषण के प्रति प्रोत्साहित करें, वैज्ञानिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें तो छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सकता है। छात्रों के अभिभावक भी बच्चों में क्रिएटिविटी के विकास को सहयोग और समर्थन दें, उनको प्रोत्साहित करें। छात्र स्वयं भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाए, वैज्ञानिक सिद्धांतों को समझने का प्रयास करें और वैज्ञानिक गतिविधियों में उत्साहपूर्वक भाग लेने का प्रयास करें। इन सब प्रयासों से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास आसानी से हो सकता है।

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर देश भर में विविध आयोजन होते रहते हैं। इन आयोजनों का मुख्य उद्देश्य विज्ञान के प्रति जागरूकता का प्रसार और विज्ञान के प्रति लगाव की भावना को विकसित करना ही होता है। विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में विज्ञान प्रदर्शनी, प्रतियोगिताओं, व्याख्यानों का आयोजन होता है। वैज्ञानिकों को सम्मानित किया जाता है। विज्ञान शिविरों का आयोजन कर विद्यार्थियों को विज्ञान संबंधी गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाता रहता है। निश्चित तौर पर ऐसे आयोजन विज्ञान के प्रति विद्यार्थियों के लगाव को बढ़ाने में काफी हद तक कारगर साबित होते हैं। लेकिन आवश्यकता इस संदर्भ में सतत् प्रयासों की कहीं ज्यादा है। साथ ही अभिभावकों के बीच भी विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के महत्व को बताने की भी आवश्यकता है। भारत सरकार की नई शिक्षा नीति 2020 का पूरा जोर ही छात्रों में रचनात्मकता का प्रसार है।

भारत सरकार की अटल टिंकरिंग लैब पहल विद्यार्थियों में नवाचार, क्रिएटिविटी, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित के विषयों में छात्रों की रुचि को बढ़ावा देने में कारगर भूमिका निभा रही है। आवश्यकता इस बात की है कि इस पहल को औपचारिक के बजाय व्यवहारिक आधार पर छात्रों में डिजाइन सोच और समस्या समाधान कौशल के विकास में सम्पूर्ण सहायता प्रदान करे। अटल टिंकरिंग लैब पहल के तहत टिंकरिंग लैब स्थापित की जाती है। जहां छात्र विभिन्न प्रकार के उपकरणों और सामग्रियों का उपयोग करके नवाचार को संबल प्रदान करते हैं। प्रशिक्षण, कार्यशालाओं, प्रतियोगिताओं के आयोजन, मेंटरशिप के माध्यम से छात्रों में नवाचार, नवोन्मेष की भावना को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे पहल सराहनीय हैं और इनकी निरंतरता कायम रखने के प्रयास होने ही चाहिए।
बिहार सरकार के स्तर पर भी हाल में स्कूलों में विज्ञान प्रयोगशालाओं के विकास, विज्ञान शिक्षा के लिए विविध योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। लेकिन आवश्यकता इन प्रयासों को और प्रभावी बनाने की भी है।

हम आज डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं। हमारे बच्चों में क्रिएटिविटी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास एक अनिवार्य तथ्य है। इसके लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। हर स्तर पर सार्थक प्रयास हो तो छात्रों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण नवाचार, नवोन्मेष और उद्यमिता को बढ़ावा देगा। जो हमारे उज्जवल और शानदार भविष्य का मजबूत बुनियाद भी बनेगा। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर हम सभी को छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में सहभागी बनने का संकल्प लेना चाहिए।

यह भी पढ़े

महाशिवरात्रि के दिन श्रद्धालुओं ने किया विशेष पूजन-अर्चन।

विस अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की शुभकामनाएं दी

हिंद महासागर व्यापार तथा आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण केन्द्रः परमिता त्रिपाठी

श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय में विज्ञानम-2025 का आगाज

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!