COP 27: तेल व गैस की उपयोगिता को कम करने की है कोशिश

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अनिर्णय के बीच पर्यावरण सम्मेलन समाप्ति की ओर

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मिस्त्र के शर्म अल-शेख में हो रहे अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन (सीओपी 27) में गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र ने पहला मसौदा पेश किया। इस मसौदे में तेल और गैस का चरणबद्ध तरीके से उपयोग बंद करने पर कुछ नहीं कहा गया है। दोनों प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग बंद करने का प्रस्ताव भारत का था जिसे यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों का समर्थन प्राप्त था। इन्हीं दोनों प्राकृतिक उत्पादों (तेल और गैस) के उपयोग से पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।

संयुक्त राष्ट्र के मसौदे में कोयले से पैदा की जाने वाली बिजली की मात्रा को कम करने और तेल व गैस की राशनिंग किए जाने के कदमों को प्रचलन में लाने के लिए कहा गया है। सदस्य देशों को ऐसा परिस्थितियों को देखते हुए करने के लिए कहा गया है। कहा गया है कि उपयोग और आवश्यकता में संतुलन बनाकर पर्यावरण सुधार के लिए कदम उठाने हैं।

विकसशील देशों से विकसित देश मांग रहे हैं मदद

कुछ ऐसी ही बात 2021 में ग्लास्गो में हुए पर्यावरण सम्मेलन (सीओपी 26) में कही गई थी। इस बारे में फिलहाल भारतीय पर्यावरण मंत्रालय ने कोई टिप्पणी नहीं की है। कहा है कि पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा का दौर अभी जारी है, इसलिए कुछ कहना जल्दबाजी होगी। विदित हो कि पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के नेतृत्व में भारतीय दल सम्मेलन में भाग ले रहा है।

सम्मेलन में भाग ले रहे विकासशील और गरीब देशों ने पर्यावरण सुधार के कार्यों के लिए विकसित देशों से आर्थिक सहायता की मांग की है। विकसित देशों ने 2009 में 2020 से 100 अरब डालर प्रतिवर्ष की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की थी। लेकिन उसके दो साल बाद भी विकसित देशों ने सहायता शुरू नहीं की और न ही उसे निकट भविष्य में देने का उन्होंने इरादा जाहिर किया है।

हर संभव तरीके से वायुमंडल का तापमान कम करने की है कोशिश

भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील ने इस पूर्व घोषणा को पूरा करने की मांग की है। कहा है कि संपन्न राष्ट्रों ने ही पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है और अमेरिका अभी भी सबसे ज्यादा हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करने वाले देशों में शामिल है। संयुक्त राष्ट्र के मसौदे में पेरिस समझौते के प्रविधानों के अनुसार पर्यावरण सुधार के हर उपाय पर जोर दिया गया है। कहा गया है कि हर संभव तरीके से वायुमंडल का तापमान कम किया जाए, इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस के नजदीक रखने की कोशिश की जाए। 20 पेज का यह मसौदा 8,400 शब्दों का है।

पर्यावरण सम्मेलन के अंतिम दौर में वार्ता मुश्किल होती जा रही है। गुरुवार के बाद शुक्रवार को अंतिम दिन भी यही स्थिति बनी रहने के आसार हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सम्मेलन में भाग ले रहे देशों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। असहमति का सबसे बड़ा बिंदु विकसित देशों द्वारा पूर्व घोषणा के अनुसार विकासशील देशों और गरीब देशों को आर्थिक मदद के लिए तैयार नहीं होना है। बिना आर्थिक मदद और उन्नत तकनीक के गरीब देशों के लिए पर्यावरण सुधार के लिए कड़े कदम उठा पाना संभव नहीं होगा, क्योंकि उन कदमों से देशों के आर्थिक हित सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।

पेरिस में तापमान की सीमा हुई थी निर्धारित

यूरोपीय संघ के पर्यावरण मामलों के प्रमुख फ्रांस टिमरमैंस ने कहा है कि सम्मेलन में बातचीत का आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा है। सोचकर डर लग रहा है कि इन वार्ताओं का अंत होगा या नहीं। अगर पर्यावरण सम्मेलन अनिर्णय का शिकार हुआ तो हम सभी का नुकसान होगा। संयुक्त राष्ट्र के गुरुवार को सार्वजनिक हुए मसौदे में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर जोर दिया गया है। तापमान की यह सीमा पेरिस समझौते में निर्धारित हुई थी। इसके अतिरिक्त मसौदा किसी अन्य बिंदु पर जोर देता या सीमा निर्धारित करता प्रतीत नहीं होता। वैसे सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे मिस्त्र ने सम्मेलन की सफलता को लेकर आशा बंधाई है। कहा है कि कुछ बिंदुओं पर सहमति के संकेत मिल रहे हैं।

प्राकृतिक उत्पादों पर लगे पांबदी, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों ने किया समर्थन

बता दें कि मिस्त्र के शर्म अल-शेख में हो रहे अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन (सीओपी 27) में गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र ने पहला मसौदा पेश किया। इस मसौदे में तेल और गैस का चरणबद्ध तरीके से उपयोग बंद करने पर कुछ नहीं कहा गया है। दोनों प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग बंद करने का प्रस्ताव भारत का था जिसे यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों का समर्थन प्राप्त था। इन्हीं दोनों प्राकृतिक उत्पादों (तेल और गैस) के उपयोग से पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।

 

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