नशामुक्ति : जीवन का पुनर्जन्म
✍️ परिचय दास सर
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नशामुक्ति अभियान पिछ्ले दिनों हर विश्वविद्यालय, हर संस्थान में चलाया गया। जागृति के यत्न हुए। ‘नशामुक्ति’ एक ऐसा शब्द है जो सुनने में मात्र एक नारा प्रतीत होता है लेकिन उसके भीतर जीवन की गहनतम पीड़ा, आशा और पुनर्जन्म का संगीत छिपा है। यह शब्द उन डगमगाते कदमों का सहारा है जो नशे की अंधेरी गुफाओं में खोकर अपने ही अस्तित्व को भूल चुके हैं। यह शब्द उन आँखों की रोशनी है, जो धुएँ और शराब की धुंध में धुँधली हो गई थीं और यह शब्द उन घरों की साँस है, जिनमें नशे की आग से रिश्ते राख हो गए थे।
नशा, चाहे किसी भी रूप में हो—शराब, अफीम, तंबाकू, चरस, सिगरेट या फिर आधुनिक युग के नये रासायनिक मिश्रण—मनुष्य को धीरे-धीरे एक खाई की ओर धकेलता है। आरंभ में वह सुख का भ्रम देता है, मित्रता का छलावा रचता है लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरता है, वह मित्र शत्रु बनकर शरीर और आत्मा दोनों को खा जाता है। यह उसी तरह है जैसे कोई विषधर साँप मुस्कुराकर अपनी ठंडी जीभ से माथे को सहला दे और व्यक्ति उसे प्रेम समझकर गले लगा ले। नशे की गिरफ्त में पड़ा व्यक्ति धीरे-धीरे अपने ही शरीर का कैदी बन जाता है, अपनी ही आत्मा का शत्रु हो जाता है।
नशामुक्ति उस कैद से मुक्ति का गीत है। यह आत्मा के पुनरुत्थान की कथा है। जैसे कोई नदी गंदगी, कचरे और मृत पदार्थों से भरी हो और अचानक एक झरना उसमें उतरकर उसे निर्मल बना दे, उसी प्रकार नशामुक्ति जीवन को शुद्ध करती है। यह केवल चिकित्सा नहीं, यह आत्मा का शोधन है। यह केवल संयम नहीं, यह आत्मा की पुनर्स्थापना है।
नशामुक्ति का मार्ग कठिन है। यह सीधी सड़क नहीं, बल्कि काँटों से भरी, अंधेरों से ढकी, फिसलन भरी पगडंडी है। जो व्यक्ति इस मार्ग पर चलने का संकल्प करता है, वह स्वयं के विरुद्ध युद्ध छेड़ता है। यह युद्ध बाहरी नहीं, भीतरी है। इसमें तलवार नहीं चलती, इसमें मनोबल की आँधी उठती है। इसमें गोली नहीं चलती, इसमें इच्छाशक्ति का प्रकाश जगता है। इसमें खून नहीं बहता, इसमें वासनाओं और अभिलाषाओं का त्याग बहता है।
नशामुक्ति का अर्थ केवल ‘ना’ कहना नहीं है। यह ‘हाँ’ कहना भी है—हाँ जीवन को, हाँ प्रेम को, हाँ स्वास्थ्य को, हाँ परिवार को। नशे से ‘ना’ कहना एक निषेध है लेकिन नशामुक्ति जीवन को ‘हाँ’ कहने का उद् घोष है। जब कोई व्यक्ति नशे को छोड़कर अपनी संतान की आँखों में देखता है, तो वहाँ उसे भविष्य की उजली किरणें दिखाई देती हैं। जब वह नशे से मुक्त होकर अपनी पत्नी का हाथ थामता है तो वहाँ उसे विश्वास की पुनर्स्थापना दिखती है। जब वह नशे से दूर होकर अपने बूढ़े माता-पिता के चरण छूता है तो वहाँ उसे जीवन का आशीर्वाद मिलता है। यही नशामुक्ति का वास्तविक सौंदर्य है।
नशा केवल व्यक्ति को ही नहीं, परिवार और समाज को भी खा जाता है। गाँव का किसान जब खेत से लौटकर शराब पीने बैठता है तो उसकी मेहनत की कमाई शराब की बोतल में बह जाती है। शहर का मजदूर जब तंबाकू और बीड़ी में अपना दिन जला देता है तो उसके बच्चों की भूख बढ़ जाती है। बड़े पद पर बैठा अधिकारी जब नशे का शिकार होता है तो उसकी निर्णय क्षमता भ्रष्ट हो जाती है। नशा एक व्यक्ति को खोखला करता है लेकिन उसका कंपन पूरे समाज को हिला देता है। इसलिए नशामुक्ति केवल व्यक्तिगत प्रयास नहीं, सामाजिक आंदोलन भी है।
नशामुक्ति में सामूहिक चेतना की आवश्यकता होती है। यह किसी एक डॉक्टर, किसी एक प्रवचनकर्ता या किसी एक साधु की आवाज़ से पूरी नहीं होती। यह तब पूरी होती है जब समाज एकजुट होकर कहता है—“हम नशे के दास नहीं, हम जीवन के साधक हैं।” यह तब पूरी होती है जब बच्चे अपने माता-पिता को नशे से रोकते हैं, जब मित्र अपने मित्र का हाथ पकड़कर उसे शराब की गली से बाहर निकालते हैं, जब स्त्रियाँ अपनी हिम्मत से घर की शराब की बोतलें फोड़ देती हैं, जब बुजुर्ग अपनी स्मृतियों से नशे के खतरों की कहानियाँ सुनाते हैं।
नशामुक्ति का संघर्ष भीतर भी चलता है। नशे की लत एक ऐसी बेल है जो शरीर की नसों में जड़ें जमा लेती है। जब उसे काटा जाता है तो पीड़ा होती है, शरीर काँपता है, नींद उड़ जाती है, भूख मर जाती है। यह वही पीड़ा है जैसे कोई वृक्ष अपने शरीर से गुँथी बेल को अलग करने की कोशिश करे लेकिन जब वह वृक्ष बेल से मुक्त हो जाता है, तो उसकी शाखाएँ फिर से खुल जाती हैं, पत्तियाँ हरी हो जाती हैं और उसमें फूल लगने लगते हैं। यही पीड़ा सहने के बाद व्यक्ति पुनर्जन्म पाता है।
नशामुक्ति में आध्यात्मिकता का भी योगदान है। जब व्यक्ति ध्यान करता है, प्रार्थना करता है, साधना करता है तो उसका मन भीतर से शक्ति पाता है। नशा जो शून्यता देता है, उसका उपचार यही आध्यात्मिक भराव है। नशे में व्यक्ति अपनी पीड़ा भूलने का भ्रम पालता है लेकिन नशामुक्ति में व्यक्ति अपनी पीड़ा का सामना करता है और उसे पार करता है। नशे में व्यक्ति झूठे सुख में गिरता है लेकिन नशामुक्ति में वह सच्चे सुख की ओर उठता है।
नशामुक्ति का अर्थ है जीवन के प्रति उत्सव की भावना। नशा जीवन को जला देता है, जबकि नशामुक्ति जीवन को खिलने देती है। यह व्यक्ति को अपने भीतर की गंध और रंग लौटाती है। जैसे किसी उपेक्षित बगिया को माली फिर से सींच दे और उसमें फूल खिलने लगें, वैसे ही नशामुक्ति आत्मा की बगिया को सींच देती है।
आज आवश्यकता है कि नशामुक्ति केवल सरकारी योजनाओं का हिस्सा न रह जाए। यह गीतों, कहानियों, कविताओं, चित्रों और नाटकों का हिस्सा बने। यह विद्यालयों के पाठ्यक्रम में आए, यह मोहल्लों के नुक्कड़ नाटकों में गूँजे, यह विवाह गीतों में पंक्तियों के रूप में झलके। नशामुक्ति तब ही पूर्ण होगी जब वह जीवन का स्वाभाविक संस्कार बन जाएगी।
नशामुक्ति एक लंबी यात्रा है। इसमें ठोकरें हैं, असफलताएँ हैं, पुनः-पतन हैं लेकिन इसमें उठने का साहस भी है। जिसने नशे से मुक्त होकर जीवन को अपनाया है, वह वास्तव में मृत्यु से लड़कर लौट आया है। ऐसे लोग समाज के लिए दीपक हैं। वे अपने अनुभव से दूसरों को राह दिखा सकते हैं।
नशामुक्ति की ओर उठाया गया हर कदम एक नई सुबह है। यह केवल व्यक्ति का नहीं, पूरे समाज का पुनर्जन्म है। जब कोई बच्चा अपने पिता को शराब छोड़ते हुए देखता है, तो उसके हृदय में विश्वास का बीज बोया जाता है। जब कोई पत्नी अपने पति को नशे से लौटते हुए देखती है तो उसके आँसुओं में कृतज्ञता झलकती है। जब कोई समाज अपने युवाओं को नशे से बचा लेता है तो वहाँ भविष्य की सुबह उज्ज्वल हो उठती है।
नशामुक्ति अंततः जीवन के पक्ष में खड़ा होना है। यह आत्मा का उत्सव है, शरीर का सम्मान है, परिवार का पुनर्निर्माण है और समाज का नवजीवन है। नशा चाहे कितनी भी गहरी खाई क्यों न बनाए, नशामुक्ति का प्रकाश उससे कहीं अधिक गहरा है। यही कारण है कि नशामुक्ति केवल एक शब्द नहीं बल्कि एक कविता है, एक प्रार्थना है, एक ज्वाला है और एक आशा है—जो हर उस जीवन को नया अर्थ देती है जो नशे की जंजीरों से मुक्त होकर उड़ना चाहता है।