वैश्विक मानव की संकल्पना के सबल संपोषक थे दीनदयाल उपाध्याय
प्रखर विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जयंती पर विशेष आलेख
✍️डॉ. गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पंडित दीनदयाल उपाध्याय मूल रूप से विचारक थे। विचार का प्रकटीकरण एक उन्मुक्त साधना होती है। एक विचारक जाति, धर्म, राजनीतिक विचारधारा से बिलकुल अलग एक पृथक मानसिक अस्तित्व रखता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी एक विचारक ही थे, उनके विचार भी राजनीतिक निष्ठा से अलग संदर्भ रखते रहे।
विचार एक सार्वभौमिक और सारगर्भित तथ्य होता है। जिसका मूल्य उद्देश्य ही मानवता के कल्याण को संदर्भित होता हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद और अंत्योदय की संकल्पना देकर उस वैश्विक मानव की कल्पना कर डाली, जिसके अस्तित्व का आधार ही मानवता है, जो इंसानियत के अनमोल मूल्यों को संजोने की ख्वाहिश रखता है।
हर व्यक्ति के जीवन के अनुभव ही उसके विचार को संपोषित करते हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का बचपन बेहद परेशानियों में गुजरा। उस मासूम से बच्चे की व्यथा को समझिए जिसे बचपन में ही मां बाप के साए से मरहूम होना पड़ा। बाल्यकाल में झेली गई व्यथा ने गरीबी के समाधान के विचार के लिए उपाध्याय जी को प्रेरित किया।
विचार मंथन की प्रक्रिया में संवेदना का समावेश हुआ और अंत्योदय की महान संकल्पना अस्तित्व में आई । अंत्योदय से सामान्य अभिप्राय समाज के अंतिम छोर पर मौजूद व्यक्ति के अधिकतम कल्याण से ही होता है। यहीं अंत्योदय समाज के समावेशन की प्रक्रिया को भी ऊर्जस्वित और प्रेरित करती है। अपने विचारों से राजनीतिक मार्गदर्शन देनेवाले दीनदयाल उपाध्याय समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए राजनीतिक व्यवस्था को प्रेरित और उत्साहित करते रहे।
साथ ही, एकात्म मानववाद की संकल्पना को प्रस्तुत कर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जड़ और चेतन के बीच के पूरक तत्व को उजागर किया। एकात्म मानववाद के कई आयाम पंडित जी ने माना। व्यक्तिगत स्तर पर देखा जाए तो बुद्धि और हृदय के बीच अंतर का समाप्त हो जाना ही एकात्म मानववाद का परिचायक तथ्य है।
फिर द्वितीय स्तर पर समाज और व्यक्ति के बीच के फासले का समाप्त होना, तृतीय स्तर पर समाज और राष्ट्र के बीच के अंतर का समाप्त हो जाना, चतुर्थ स्तर पर राष्ट्रों के बीच भावों का एकीकरण आदि भी एकात्म मानववाद के परिचायक तथ्य रहे हैं। जब अंतराष्ट्रीय स्तर पर मानवता एक स्वर में गुंजायमान होती है तो विश्व मानव की संकल्पना धरातल पर उतरती है। यह विश्व मानव व्यापकता का प्रतीक चिन्ह बन जाता है।
वसुधैव कुटुंबकम् और सर्वे भवन्तु सुखिन की संकल्पना भारतीय संस्कृति के उदात्त स्वरूप को प्रकट करती आई है तो सांस्कृतिक वैविध्य के प्रति विशेष आकांक्षा भी पंडित जी के विशेष राष्ट्रवादी दृष्टिकोण की ही परिचायक है। जहां संस्कृति के प्रति संवेदनशील आग्रह राष्ट्रवादी विचारधारा के सृजन का आधार बन जाती है।
भारतीय संस्कृति विविधता और व्यापकता के मिश्रित स्वरूप की कहानी संजोती आई है।
वैश्विक मानव की संकल्पना के संदर्भ में पंडित दीन दयाल उपाध्याय की सोच कुछ मूलभूत भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को ही संदर्भित दिखती है । सकारात्मक सोच, सहिष्णुता, सहयोग की त्रिवेणी बहाने का संदेश देकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने समाज में समरसता और सद्भाव के बुनियाद को भी मजबूत करने का महान संदेश दिया।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने अपने सारगर्भित विचारों से उस राजनीतिक व्यवस्था को मार्गदर्शन दिया, जो भ्रष्टाचार और अनैतिक आचरण से तबाह होती जा रही थी। पंडित जी का संदेश संवेदना, संचेतना, समावेशन का था लेकिन उनका लक्ष्य समाज में सकारात्मकता की बयार बहाकर विश्व मानव की उस संकल्पना को सुप्रतिष्ठित करना था जो समावेशन की प्रक्रिया द्वारा अंत्योदय के लक्ष्य को प्राप्त कर सके।