देश में कुकुर को लेकर कलह जारी है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आला अदालत को दिल्ली की गलियों में जारी ‘कुत्तागर्दी’ नागवार गुजरी लिहाजा उसने स्वतः संज्ञान लेते हुए ‘गलियों के गुंडों’ को शेल्टर हाउस में कैद करके रखने का आदेश जारी कर दिया। साथ ही अदालत ने ये ताकीद भी किया कि अगर कोई श्वान समर्थक ‘डॉगानुराग’ दिखाकर अदालती कार्रवाई के अमल में दखल दे तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाए।
ये आदेश जारी होते ही पूरा देश कुकुरबाजी में तल्लीन हो गया है। विमर्श जिस तरीके से कुत्ताकेंद्रित हो चला है उससे एकबारगी तो लगता है कि कहीं अगला विश्वयुद्घ इसी मुद्दे पर ही ना छिड़ जाए। पूरा समाज कुत्ता विरोध और समर्थन में दो फाड़ नजर आ रहा है। व्यक्ति की स्वतंत्र और सामूहिक पहचान अब धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र जैसे संकुचित आधारों से परे हट कर कुत्ता विरोधी या फिर कुत्ता समर्थक के तौर पर आकर सिमट गई है। अब व्यक्ति या तो कुत्ता समर्थक है या फिर कुत्ता विरोधी।
श्वानप्रेमी कुत्तों की वफादारिता, चौकीदारिता की दुहाई देकर उसे मनुष्य का सबसे भरोसेमंद साथी साबित करने में उतारू हैं तो श्वानविरोधी कुत्तों की ‘कुत्तई’ का हवाला देकर उसे समाज के लिये सबसे बड़ा खतरा बता रहे हैं।
वैसे देखा जाए तो दोनों पक्षों की दलीलें अपनी-अपनी जगह सही है। ऐसे उद्धरणों की कमी नहीं जहां कुत्तों ने अपनी वफादारी साबित करके अपनी श्वानधर्मिता को निभाया है तो वहीं ऐसे सैकड़ों उद्धरण मय वीडियो सबूत के मौजूद हैं जहां इन कुत्तों ने मासूम बच्चों और असहाय बुजुर्गों को निशाना बनाकर अपनी ‘कुकुरकुकर्मिता’ का परिचय दिया है।
देश में चल रही ‘कुकुरगीरी’ से कोई नहीं बच सका है। एनिमल और ह्यूमन एक्टिविस्ट्स के साथ-साथ धर्माचार्यों और सोशल मीडियाई इन्फ्लुएंसर के बीच भी कुत्तों की प्रासंगिकता और औचित्य के साथ-साथ उनके धार्मिक-पौराणिक-ऐतिहासिक महत्व को लेकर बहस छिड़ गई है।
कोई श्वानप्रेमी काल भैरव के वाहन का हवाला देकर कुत्तों के धार्मिक पक्ष को पुनर्स्थापित करने की कोशिश में जुटा है तो कोई इसे यम का दूत बताकर इसका यमलोक से डॉयरेक्ट कनेक्शन जोड़कर कुत्ता विरोधियों को उनकी हरकतों के अंजाम के प्रति आगाह कर रहा है।
वैसे कुत्ता विरोधियों के पास भी कुत्ता को धर्मविरुद्ध ठहराए जाने की माकूल दलीलें उपलब्ध हैं। कुत्ता विरोधी लाबी वायरल बाबा अनिरुद्धाचार्य समेत दूसरे कई कथावाचकों के प्रवचनों के वीडियो को वायरल करके कुत्ता पालन को धर्मविरुध निरूपित करने में जुटी है।
वैसे कुत्ता प्रसंग ने दोनों ही पक्षों के वैचारिक विरोधाभास को उजागर कर दिया है। मटन-मछली को भकोसने वाली बिरादरी जब कुत्तों को शेल्टर हाउस में भेजने के आदेश को पशुक्रूरता बताकर इसके खिलाफ आवाज उठाती है तो ये ‘कुत्तापंती’ वाकई बड़ी क्यूट लगती है। कुत्तों को शेल्टर हाउस में भेजने के हिमायती लोग इन पशुप्रेमियों के इसी दोहरे चरित्र को आधार बनाकर ताना मार रहे हैं कि अगर इन कुकुरवादियों का श्वानप्रेम इतना ही हिलोर मार रहा है तो वे ही क्यों नहीं पांच-पांच शेरुओं को पालने की जिम्मेदारी आपस में बांट लेते हैं?
कुल मिलाकर देश में कुकुर कलह जारी है और फिलहाल सुलह की कोई उम्मीद नजर आ नहीं रही है।