क्या पाक उच्चायोग के कर्मचारी भ्रष्टाचार के जरिए वीजा आवेदकों का शोषण करते हैं?

क्या पाक उच्चायोग के कर्मचारी भ्रष्टाचार के जरिए वीजा आवेदकों का शोषण करते हैं?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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भारत में पाकिस्तानी उच्चायोग सेंटर में जासूसी और रिश्वतखोरी के बड़े कांड का खुलासा हुआ है जिसके तार पंजाब  व हरियाणा से जुड़े बताए जा रहे हैं। हरियाणा के पलवल जिले से गिरफ्तार वसीम अख़्तर का मामला पाकिस्तान उच्चायोग (PHC) के वीजा डेस्क में सिस्टमैटिक भ्रष्टाचार और जासूसी नेटवर्क का खुलासा करता है। वसीम अख़्तर, जो मूल रूप से गाँव कोट, हठिन, पलवल का निवासी है, को 30 सितंबर 2025 को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (OSA & BNS) के तहत गिरफ्तार किया गया।

हरियाणा के एक सिविल इंजीनियर वसीम अकरम की गिरफ्तारी ने भ्रष्टाचार और पाकिस्तान उच्चायोग के वीजा डेस्क का जासूसी के लिए दुरुपयोग करने के एक और मामले का पर्दाफाश किया है। हरियाणा के पलवल निवासी अकरम को मंगलवार को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (ओएसए) की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया। सूत्रों ने ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ को बताया कि वह कथित तौर पर पाकिस्तान उच्चायोग के अधिकारी जफर उर्फ ​​मुजम्मिल हुसैन के लिए डेटा सप्लायर के रूप में काम करता था।

कसूर में अपने रिश्तेदारों से मिलने पाकिस्तान जाने के लिए वीजा के लिए आवेदन करते समय उसकी मुलाकात उच्चायोग के अधिकारी से हुई थी। शुरुआत में वीजा आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था, लेकिन बाद में सिविल इंजीनियर द्वारा 20,000 रुपये की रिश्वत देने के बाद वीजा स्वीकृत हो गया। जांचकर्ताओं ने बताया कि इसके बाद, अकरम मई 2022 में कसूर गया।

अकरम का जासूसी के लिए कैसे इस्तेमाल किया गया

पाकिस्तान उच्चायोग का अधिकारी जफर कथित तौर पर पाकिस्तान से लौटने के बाद व्हाट्सएप के जरिए अकरम के संपर्क में रहा। पलवल निवासी अकरम ने कमीशन का वादा करने के बाद वीजा सुविधा कोष के लिए अपना बैंक खाता उपलब्ध कराया। कथित तौर पर अकरम के खाते में लगभग पांच लाख ट्रांसफर किए गए, और बिचौलियों के जरिए और भी नकद भुगतान किए गए। उसने कथित तौर पर उच्चायोग के अधिकारी को 2.3 लाख रुपये दिए, जिसमें 1.5 लाख नकद शामिल थे। उसने अधिकारी को सिम कार्ड भी दिए।

अकरम पर ओटीपी उपलब्ध कराने और भारतीय सेना के जवानों की जानकारी अपने कथित हैंडलर के साथ साझा करने का भी आरोप है। जानकारी रखने वाले अधिकारियों ने बताया कि “पलवल मॉड्यूल” मलेरकोटला और नूह में पहले उजागर हुए उसी पैटर्न से मेल खाता है। मलेरकोटला मामले का भंडाफोड़ इस साल की शुरुआत में ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुआ था,

जिसमें दानिश उर्फ ​​एहसान उर रहीम नाम के एक अन्य पाकिस्तानी अधिकारी ने कथित तौर पर स्थानीय लोगों को वीजा दिलाने का वादा करके जासूसी के लिए उनका इस्तेमाल किया था। कथित भर्ती करने वालों को संवेदनशील रक्षा संबंधी जानकारी के बदले में छोटे यूपीआई ट्रांसफर मिलते थे।

ट्रैवल इन्फ्लुएंसर ज्योति मल्होत्रा ​​के खिलाफ जासूसी मामले में भी दानिश का नाम सामने आया था। यह देखा गया है कि पाकिस्तान उच्चायोग के कर्मचारी भ्रष्टाचार के जरिए वीजा आवेदकों का शोषण करते हैं और उन्हें सिम कार्ड और खुफिया जानकारी मुहैया कराने के लिए मजबूर करते हैं। नूह में भी यही देखने को मिला, जहां अरमान नाम के एक व्यक्ति को उच्चायोग के अधिकारी को सिम कार्ड और रक्षा एक्सपो के वीडियो मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

वसीम अख़्तर का प्रोफ़ाइल

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