ईस्टर मृत्यु पर जीवन के विजय का त्योहार है.

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गुड फ्राइडे के बाद ईस्टर का त्योहार मनाया जाता है.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ईस्टर संडे इस वर्ष 31 मार्च को मनाया जाएगा. यह त्योहार ईसा मसीह के पुनर्जीवित होने की खुशी में मनाया जाता है. गुड फ्राइडे को प्रभु यीशु मसीह क्रूस पर टांग दिए गए थे, जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी, लेकिन ईस्टर संडे को वे पुनर्जीवित हुए. ईस्टर की कोई तय तिथि नहीं है, तो यहां हम आपको बताएंगे कि ईस्टर पर्व का इतिहास क्या है और इस त्योहार को मनाने की तिथि कैसे निर्धारित की जाती है.

क्या है ईस्टर का त्योहार

संत अलबर्ट काॅलेज के फादर प्रफुल्ल बाडा ने बताया कि ईस्टर का त्योहार ईसा मसीह से पहले यहूदी समाज के लोग मनाते थे. वे इसे ‘सन ऑफ गॉड’ की आराधना के दिवस के रूप में मनाते थे. मिस्र में यहूदियों पर काफी अत्याचार होता था, जिससे बचने के लिए वे वहां से भागे तो रास्ते में लालसागर पड़ गया, तब उन्होंने अपने ‘सन ऑफ गॉड’ को याद दिया, तो उन्होंने लालसागर पर डंडा मारने को कहा, जिससे वहां जमीन दिखने लगी और वे वहां से बचकर भाग निकले. इसे वे पार लगना कहते हैं, यानी गुलामी से स्वतंत्रता की ओर जाना.

ईसा मसीह भी यहूदियों के इन रिवाजों को मानते थे. लेकिन जब ईसा मसीह को गुड फ्राइडे के दिन क्रूस पर चढ़ाया गया और उनकी मौत हुई, उसके बाद वे रविवार के दिन पुनर्जीवित हो गए. उनके मृत्यु से जीवन की ओर जाने की खुशी में ईस्टर का त्योहार ईसाई मनाते हैं. ईसाई धर्मावलंबी मौत में विश्वास नहीं करते. उनका मानना है कि यह शरीर तो मिट्टी से बना है और एक दिन नष्ट होगा, किंतु आत्मा अजर-अमर है. ईसा मसीह ने मौत को गले लगाकर जीवन का रास्ता तय किया. यह मृत्यु पर विजय पाने का त्योहार है, जिसे ईस्टर के रूप में मनाया जाता है.

कब मनाया जाएगा ईस्टर, यह कैसे तय होता है?

यीशु मसीह के पुनर्जीवित होने के त्योहार ईस्टर की तिथि वैज्ञानिक तरीके से निर्धारित की जाती है. वसंत ऋतु के इक्वीनॉक्स यानी 21 मार्च, जिस दिन रात और दिन बराबर होते हैं, उसके बाद जो पूर्णिमा तिथि आती है, उसके बाद आने वाले रविवार को ईस्टर मनाया जाता है. हालांकि 8वीं शताब्दी तक ईस्टर को निर्धारित करने के लिए कोई नियम नहीं थे, लेकिन बाद में यही विधि सर्वमान्य हो गई.

क्या पास्का और ईस्टर का त्योहार एक ही है?

पास्का या ईस्टर एक ही त्योहार को कहा जाता है. पास्का ग्रीक भाषा का शब्द है. ईस्टर को मृत्यु पर जीवन की विजय का पर्व माना जाता है. पास्का शब्द का प्रयोग ईस्टर ब्रेड या केक में इस्तेमाल होने वाले अंडे के लिए भी किया जाता है. पास्का यानी पार लगना, यह मृत्यु से जीवन की ओर जाने का त्योहार है.

ईश्वर सर्वशक्तिमान है, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं
सवाल है कि हमारे पापों की कीमत चुकाने के लिए यीशु ने क्यों दुख सहना स्वीकार कर लिया? यीशु ने कई लोगों के पाप अपने शब्दों से दूर कर दिया था तो पूरी मानव जाति के लिए क्या वह ऐसा नहीं कर सकता था? ईश्वर सर्वशक्तिमान है और उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है. इसका जवाब है ईश्वर प्रेम है. ईश्वर मनुष्य के कारोबार में हस्तक्षेप नहीं करता है और इसलिए उसने अपना नियम भंग नहीं किया, पर प्रेम की वजह से उसने मनुष्य के स्वरूप में या यों कहे, मनुष्य के अवतार में वह इस धरती पर आया. शैतान के उकसावे पर आदम और हव्वा के द्वारा वर्जित फल खाने की वजह से मानव जाति आदिम पाप की चपेट में आयी. तब ईश्वर ने निष्कलंक कुंआरी माता मरियम, जो पवित्रात्मा से गर्भवती होती है, यीशु को जन्म दिया.

आज है विजय/मुक्ति का दिन
यीशु के जन्म के बाद शैतान उन्हें मारने की कोशिश करता है. अंतत: वह क्रूस मृत्यु के द्वारा यीशु को मारने में सफल भी होता है, पर यीशु मरने के बाद भी शैतान पर विजय पाते हैं. इसलिए हम कह सकते हैं कि आज विजय/मुक्ति का दिन है. क्रूस मृत्यु के द्वारा यीशु ने हम सभी को पाप की गुलामी से मुक्त किया है. जिस अनंत जीवन में उसने प्रवेश किया है उसी अनंत जीवन में प्रवेश करने का हम सभी को अधिकारी भी बनाया है यदि हम उसके मार्ग का अनुसरण करते हैं.

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