बिहार के मोकामा में चुनावी हिंसा और समीकरण
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने सख्त कार्रवाई की है. आयोग ने बाढ़ और मोकामा के तीन अधिकारियों का तत्काल तबादला कर दिया, जबकि एक अधिकारी को निलंबित करने का आदेश जारी किया है. इसके साथ ही स्थानीय एसपी का भी तबादला कर दिया गया है.
इसी तरह, राकेश कुमार, एसडीपीओ बाढ़-1, और अभिषेक सिंह, एसडीपीओ बाढ़-2 का तबादला कर दिया गया है और उनकी जगह 2022 आरआर बैच के आनंद कुमार सिंह और आयुष श्रीवास्तव को नियुक्त किया गया है. चुनाव आयोग ने हटाए गए तीन अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही का भी निर्देश दिया है. पटना ग्रामीण के पुलिस अधीक्षक (SP) ने बताया कि यह कार्रवाई दो स्टेशन हाउस अधिकारियों (SHO) – घोसवारी एसएचओ मधुसूदन कुमार और भदौर एसएचओ रवि रंजन को इसी मामले के सिलसिले में दिन में निलंबित किए जाने के बाद की गई है.
अनंत सिंह के विरोधी बताते हैं कि जब भी अनंत सिंह का चुनाव फंसता है, वो हिंसा का सहारा लेते हैं. इससे दो फायदे होते हैं – एक तो विरोधी डर जाते हैं और दूसरा उनका ‘कल्ट’ बढ़ता जाता है. साल 2000 के चुनाव से जोड़कर लोग याद करते हैं कि तब भी अपने भाई दिलीप सिंह की हार सामने देख बसावनचक में बच्चू सिंह नाम के शख़्स की हत्या के पीछे अनंत सिंह का हाथ था. लेकिन इसका फ़ायदा तब उन्हें मिला नहीं. इसबार चूँकि मोकामा में सूरजभान सिंह चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं और चुनाव में उनके अलावा दूसरा कोई मजबूत कैंडिडेट नहीं है तो अनंत सिंह को अपना सिंहासन डोलता नज़र आ रहा है.
मोकामा का हुआ नुकसान?
चुनाव में जो भी हो, लेकिन यह सच है कि बाहुबल की राजनीति अक्सर विकास के मुद्दों को पीछे धकेल देती है. मोकामा से लगातार जीतन के बाद अनंत सिंह का ध्यान क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास के बजाय अपने दबदबे और राजनीतिक वर्चस्व को बनाए रखने पर अधिक रहा. राजनीति में आने और अकूत संपत्ति कमाने के बाद भी उन्होंने अपराध की दुनिया को कभी नहीं छोड़ा. यही कारण है कि उनका नाम अपराध और हिंसा से जुड़ता रहा. मोकामा में सड़क, बिजली, पानी, जलनिकासी, शिक्षा, स्वास्थ्य और टाल क्षेत्र के पुनरुद्धार जैसे जनहित के बड़े कामों में उनकी राजनीतिक ऊर्जा लगी ही नहीं.
मीडिया के कैमरे पर सुशासन की सरकार को अंग विशेष की सरकार कह कर अनंत सिंह देशभर में पॉपुलर हो गए. मगर उनकी इस लोकप्रियता का सबसे बड़ा नुकसान मोकामा को ही झेलना पड़ा. उनकी पूरी राजनीति व्यक्तिगत करिश्मे और सत्ता के समीकरणों पर टिक गई. प्रशासन और सत्ता के साथ उनके तनावपूर्ण रिश्तों का सीधा असर भी क्षेत्र पर पड़ा.
सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन, निवेश, सड़क और उद्योग से जुड़ी परियोजनाएँ अक्सर राजनीतिक टकरावों की भेंट चढ़ती रही. विकास परियोजनाओं के लिए आवंटित फंड का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं हो पाया. भ्रष्टाचार के कारण जो काम हुए उसकी गुणवत्ता खराब रही.
एक लाख हेक्टेयर में फैला मोकामा टाल अक्सर बाढ़ या सुखाड़ झेल रहा होता है. उद्योग उजड़ चुके हैं और युवा पलायन कर रहे हैं. इसका कारण सिर्फ बिहार सरकार की उपेक्षा नहीं, बल्कि स्थानीय नेतृत्व की स्वार्थपरक सियासत और सीमाएं रहीं. कितनी अजीब विडंबना है कि एक दबंग और बाहुबली नेता का इलाका असहाय बना रहा.
बग्घी में काला चश्मा और हैट चढ़ाए अनंत सिंह के विधानसभा जाने की सुर्खियां खूब बनीं, लेकिन अनंत आजतक विधानसभा में क्षेत्र के लिए कोई सवाल नहीं उठा सके. यही वजह है कि आज अनंत सिंह के वीडियो कितने भी वायरल होते हैं, उनका विधानसभा क्षेत्र मोकामा बिहार के मानचित्र पर अपनी चमकदार जगह खो चुका है.
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